Krishna Khatri

Drama

5.0  

Krishna Khatri

Drama

जानकी

जानकी

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जानकी तीन बच्चों की माँ एक बेटी दोनों बेटे, सास-ससुर, दो ननदें, एक देवर अच्छा-भला सुखी परिवार था। जानकी सबका बहुत ख्याल रखती थी अपने सास-ससुर का आदर और माता -पिता की तरह ही प्यार करती थी। ननदें, देवर वगैरह पूरा ‌परिवार खुश था जानकी से। सबकी शादियां हो गई सब अपनी-अपनी जिन्दगी में अच्छी तरह सेटल हो गये। जहाँ ननदें अपनी ससुराल में खुश थी वहाँ देवर भी बहुत खुश था। पढ़ी-लिखी खूबसूरत पत्नी जो वकील भी थी, देवर की अच्छी सर्विस, कंपनी में मैनेजर, एक प्यारा बच्चा। देवर सपरिवार साथ ही रहता था। सारे रिश्तदार और ननदें भी, रहते सब आगरा में ही थे। पति कमलनाथ भी बिरला में मैनेजिंग डायरेक्टर, अब भला इसके अलावा किसी को और चहिए भी क्या? सब अच्छा चल रहा था। अपने - अपने घर और अपने शहर आगरा में सब लोग आराम की सुखी जिन्दगी जी रहे थे लेकिन कहते है ना कुदरत जो कराये सो थोड़ा।


कमलनाथ का हार्टअटैक के कारण अस्पताल ले जाते हुए ही देहान्त हो गया। तब बच्चे छोटे-छोटे थे। घर - परिवार के सब ‌लोग,चाचा ससुर का परिवार और ननदें व उनका परिवार इत्यादि सब लोग आये हुए थे। बारह दिन खूब धमाधम रही मगर जानकी के दुख को कोई नहीं समझ पाया। मिलने आने वाली औरतें जब ये कहती, हाय वो गये पर ये अच्छा है कि भरा - पूरा परिवार छोड़ गये है। नसीब वाली हो वरना अकेले कैसे रहती? इस तरह की बेकार की बातें करने वाली औरतें यह नहीं सोच-समझ रही थी, इन बातों का जानकी को कैसा लगता होगा? अरे भाई उसने पति खोया है ना कि कुछ और चीज़ जैसे कि इसके बदले दूसरी है ना। जो घर खचाखच भरा हुआ था, बारह दिन बाद खाली हो गया लेकिन इन बारह दिनों में तमाशे भी खूब हुए। आने वालों का रवैया तो पूछो ही मत। कोई कहता बारह दिन दोनों टाइम मिठाई की अलग-अलग वैराइटी बननी चाहिए, इसी तरह नाश्ते में पूरी-कचौरी, समोसे, वड़ा, भले पकौड़े वगैरह उसके साथ भी कोई न कोई मिठाई होनी चाहिए जैसे मूंग दाल का सीरा, दूध-जलेबी, खीर इत्यादि रोज़ बनना चाहिए, रिपीट भी नहीं होनी चाहिए। इससे मृतात्मा तृप्त होगी। बेचारी ने बड़ी ननद से कहा - बाईसा आप जो ठीक समझें। सबसे ज्यादा पंचायत भी यही कर रही थी। भाई के अचानक इस दुनिया से जाने का ग़म तो नहीं मगर भाई के पीछे इतने ताम-झाम करने की चिंता ज्यादा हो रही थी। उसका कहना था, इससे भाई की आत्मा तृप्त होगी। भाई को एक दिन जाना ही था तो आज भरा-पूरा घर जो छोड़ गया तो नसीब वाली ही तो है। लोग भी पता नहीं क्या - क्या बिना सोचे -समझे कुछ भी कहते है, वो भी घर वाले रिश्तेदार। इस तरह के रवैए से मन वितृष्णा से भर गया। जाने लोग क्या-क्या सलाह देने लगे कोई नहीं सोच रहा था, क्या वाकई सलाह की जरूरत भी है या नहीं। उसने दबे शब्दों में कई बार बात की, मुझे पता है मेरी केपेसिटी और मेरे घर की हालत इसलिए प्लीज मुझे मैनेज करने दीजिए। इस कारण थोड़े - बहुत नाराज़ तो थे ही खासकर बड़ी ननद तो बहुत ज्यादा नाराज़ हो रही थी। भाई मर गया तो ऐसे कैसे बोल रही है? ऐसे वक्त ऐसी बातें करना शोभा देता है लोग क्या कहेंगे? ऊपर से जब जाने लगे उससे पहले सबसे कुछ देर के लिए इकट्ठा होने को कहा। सब इकट्ठे हो गए कुछ लोगों के दिल बड़े जोरों के धक-धक कर रहे थे डर के मारे, कहीं पैसे न माँग ले लेकिन पैसे नहीं माँगे तो धड़कनें ठिकाने पर आ गई। सबसे हाथ जोड़कर माफी माँगते हुए कहा,


“देखिए, मैंने अपना जीवनसाथी खोया है ना कि सामान। जो - जो आपमें से कुछ लोगों ने कहा था, क्या वो आप लोगों को शोभा देता है? फिर ये करना चाहिए, वो करना चाहिए, कोई शादी नहीं थी। घर से एक इंसान हमेशा के लिए चला गया था। उसका दुख किसी को नहीं हमें भी पता है क्या और कैसे करना चाहिए। ये किसी ने नहीं सोचा कि मेरे बच्चे कैसे पलेंगे अभी छोटे है। उनको पढ़ा-लिखा कर इनका सपना पूरा करना है मुझे और फिर ऊपर से ऐसी बातें -अच्छा हुआ भरा-पूरा परिवार छोड़ गया। कहते हुए कुछ भी नहीं लगा किसी को? लगता भी कैसे? खैर माफ कीजिएगा, कम से कम किसी और के यहाँ तो ऐसी बातें न करें, न कहें। ऐसे हालात में किसी के दिल पर क्या गुजरेगी इतना तो सोचना चाहिए लेकिन सोचता कौन है? सिर्फ सामने वाले की भद उड़ाने में ही तो अक्सर उन्हें मज़ा आता है। बाईसा, आप तो इसी घर की बेटी है ना? और आप भी?”


जानकी की बात तो सही थी, वो सुलझी हुई समझदार औरत है साथ ही उसकी ननदें भी तो पूछो ही मत। कुछ लोग नाराज़ होकर गये जिन्होंने कहा था। बाकी लोगों को जानकी का कहना अच्छा ही लगा। सारे मेहमानों के जाने के बाद हिसाब किया तो डेढ़ लाख का कर्ज हो गया। कमलनाथ के दोस्त धीरूभाई ने पचास हज़ार दिया और एक लाख भाई ने। वो सोच रही थी चुकाऊंगी कैसे? यह सोच-सोच कर हैरान और परेशान हो रही थी। धीरूभाई उसकी परेशानी पूरी तरह समझ रहे थे भाभी आप चिंता मत करो, भाई के प्रोवीडेंट फंड के पैसे एक महीने में मिल जायेंगे। तब आप चुकता कर देना इसमें कौन-सी मुश्किल है? यह जानकर जानकी की जान में जान आई।


अब आगे कुछ काम के बारे में भी सोचना पड़ेगा। पहले जिस स्कूल में सर्विस करती थी छोटे बच्चे की बीमारी के कारण छोड़नी पड़ी थी। बच्चा भी नहीं रहा और साल बाद पति भी साथ छोड़ गये। जानकी टीचर अच्छी थी ही, व्यवहार भी अच्छा था और इकतीस जनवरी को दस दिन बाद एक टीचर रिटायर होने वाली थी सो प्रिंसिपल ने उसे सर्विस पे रख लिया। बच्चों का और उसका स्कूल टाइम सेम था। बच्चे सेंट्रल स्कूल में पढ़ते थे इसलिए बच्चों की तरफ से निश्चिंत थी। एक फरवरी से ज्वाइन करने वाली थी, सास-ससुर को अपनी बहु पर नाज था, बेटे के जाने का ग़म तो था ही लेकिन जानकी को उन्होंने हमेशा हिम्मत बंधाई। आज बड़ी बेटी को भी उन्होंने मेहमानों के बिखरने पर डांटा,

“मोहिनी, तू हमारी बेटी है या बाहर की आई मेहमान, जो तू ऐसी बेहूदा बातें कर रही थी। तेरा भाई गुजरा है ना कि कोई गैर। फिर गैरों के लिए भी ऐसी बातें कौन करता है? भाई के जाने का तुझे दुख नहीं लेकिन क्या बनना चाहिए इसकी चिंता तुम्हें कुछ ज्यादा ही थी, है ना? कुछ तो शर्म करती”


पहले भाभी ने तो कहा ही तब भी गुस्सा तो आया ही था ऊपर से माँ की ऐसी बातें सुनकर गु्स्से में दो दिन बाद ही चली गई। उसके घर वाले तो बारह दिन करके चले गए थे वो रुक गई थी एक महीने के लिए। सवा महीने की पूजा के बाद जाने वाली थी लेकिन गुस्सा, बस चली गई। सर्विस की बात पर देवर ने कहा था, “भाभी सर्विस की क्या जरूरत है मैं हूँ ना”


तो माँ ने कहा “तू है तो फिर कर्ज क्यों लेना पड़ा? तुमने तो एक धेला तक खर्च नहीं किया। धीरू और इसके भाई सोहन ने सारा खर्च किया तब तू कहाँ था? कभी भी कोई सामान लाने गया? हमेशा धीरू दौड़ता रहा”


 “आप लोगों को मुझे कहना चाहिए था पर किसी ने भी कभी नहीं कहा”


“धीरू को भी किसी ने कभी कुछ नहीं कहा था लेकिन वो तो खुद आगे होकर अपने आप जरूरत का सामान ले आता था। भाई के कारण ही तो तू मैनेजर बना, उसी को भूल गया। आया बड़ा मैनेजर। जानकी भले नौकरी करें, किसी की मोहताज क्यों बने। डेढ़ लाख कर्ज भी तो उतारना है, बच्चे पढ़ाने है”


“क्यों, कर्ज कैसा?”


“देख जगू, अब तू बकवास मत कर। कमू भी मेरा बेटा और तू भी मेरा बेटा लेकिन फर्क भी खूब समझ रही हूँ”


“अम्मा, कैसी बातें कर रही हो? क्या घर में पैसे थे ही नहीं जो कर्ज? फिर मुझे बताना चाहिए था”


 “ठीक है अब बता दिया ना, चुका दे”


 इतने में उसकी बीवी सरिता एकदम किचन से बाहर आकर बोली “ये क्यों चुकायेंगे? भाई साहब भी तो मैनजिंग डायरेक्टर थे, क्या कमी थी?”


“कोई कमी नहीं थी सारा खर्चा कौन चलाता था? ऐसे तो बड़ा तुम लोग भाई साहब - भाभी कहते नहीं थकते थे और कमल की आंखें बंद होते ही तूने भी आंखें फेर ली। चलो अच्छा हुआ सारे भ्रम टूट गये। अब बस कोई बहस नहीं ऐसा कर तू अपने रहने का बंदोबस्त अलग करदे, तो तुम्हें कभी कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ेगा जगू, सच में मुझे शर्म आ रही है कि तू मेरा बेटा है”


 “अम्मा जी ऐसा मत कहिए सब साथ ही रहेंगे पहले की तरह”


“वाह भाभीजी, पहले आग लगाई अब पानी डाल रही है”


“सरिता बस एक शब्द नहीं। तुम जानकी की बराबरी कर ही नहीं सकती, समझी। इतनी देर से बाऊजी सुन रहे थे लेकिन अब पानी सिर से गुजर रहा था इसलिए आकर बोले, "प्लीज कमल की कसम सबको चुप हो जाओ। जानकी जो करना चाहे, मैं उसके साथ हूँ यह मेरा फैसला है। अब किसी प्रकार की बहस नहीं। सरिता अलग रहना चाहो रह सकती हो पर अभी सबके लिए अदरक इलाइची वाली चाय बना लाओ”


“जी बाऊजी” लेकिन मन ही मन जलती-भुनती बड़बड़ाती जा रही थी, उसके पीछे-पीछे जगू भी आया सुनकर बोला,


“देख सरिता, आज तक मैंने तेरी सुनी, तुमने जैसा कहा, मैं करता गया। हमें पता था, सारा खर्च धीरूभाई और सोहन भाईसाहब कर रहे है सरिता वे पराये होकर भी दौड़ रहे थे मगर मैं उनके बेटे जैसा था, चुप रहा, लानत है मुझ पर। हमने आज तक अपना खर्च अपनी रोटी पर भी नहीं किया, तेरी बातों में आकर इतना स्वार्थी बन गया। नहीं अब बस हो गया” कहते-कहते गला भर आया वहाँ से चला गया। सीधे जाकर अपनी भाभी के पास जाकर बैठ गया काफी देर तक कुछ नहीं बोला, बस भाभी को देखता रहा। जानकी ने उसकी तरफ देखा तो हैरान।


“अरे-अरे जगू क्या हो गया बच्चे?” बोला तो कुछ नहीं पर प्यार से बच्चे सुनकर फफक पड़ा। आज यह कितने महीनों बाद सुना जानकी को उसपर लाड आता तो जगू को बच्चे ही कहती थी। जगू को ख्याल आया भाभी नहीं बदली जरा भी पर उनका यह नालायक बच्चा बदल गया। उसे इस तरह फफकते देख जानकी से रहा नहीं गया अपनी बाहों में भर लिया। कुछ देर यूँ ही रहा, बाद में सयंत होकर बोला,


“भाभी माँ अपने बच्चे को माफ कर दो, मैं बहुत स्वार्थी हो गया था भाभी माँ” आज उसने जानकी में अपनी माँ को महसूस किया आज पहली बार भाभी माँ कहा था। इतने में सरिता चाय के साथ अपने ससुर की पसंद के प्याज के पकौड़े भी बनाकर लाई थी। वाकई वह पकौड़े बहुत अच्छे बनाती थी सबको ही पसंद आते थे पर बाऊजी को कुछ ज्यादा ही पसंद आते थे उसके हाथ के बने। जानकी ने जगू को बड़ी मुश्किल से चुप कराया।


 चाय के साथ पकौड़े देख ससुर ने कहा “सरिता, तेरे जाने के बाद ऐसे पकौड़े कौन खिलायेगा?”


“बाऊजी, आगे भी मैं ही बनाऊंगी। मैं कहीं नहीं जा रही हूँ मेरा घर तो यहीं है भाभी। आज तक जो भी हुआ उसमें मेरी गलती है। मैं अपनी मम्मी की बातों में आ गई थी। यह तो भला मेरी शीला भाभी का उस दिन जब आई थी। मेरा रवैया देखकर और मेरी माँ की वो बातें सुनकर कहा था “सरिता, एक बात बताओ, अगर मैं तुम्हारे मम्मी के साथ ऐसा करूं तो?”


“जो रिश्ते हमें मिल जाते है उन्हें जिंदा रखने के लिए प्यार, विश्वास और सब्र के साथ पूरी शिद्दत से निभाना पड़ता है। जीना पड़ता है तब रिश्ते जिंदा रहते है, परिपक्व होते है फिर खुद-ब-खुद निभते रहते है निभाने की जरूरत नहीं। तुम्हारे पास तो जानकी भाभी है और क्या चाहिए। अभी जब बात चल रही थी पैसे चुकाने की उस वक्त मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। कसम से भाभी आपके देवर की बातों ने, पश्चाताप ने, परिवार के प्रति प्यार ने मुझे हिलाकर रख दिया। तब शीला भाभी का बातें समझ में आने लगा। भाभी, मुझे भी अपनी बच्ची बना लो अपने जगू की तरह कहते-कहते फूट-फूट कर रो पड़ी। जानकी ने उसे भी अपनी बाहों लेकर चुप कराया और हल्की -सी चपत मारते हुए भरे गले से कहा “पगली बच्ची कहीं की। आज तुम दोनों ने मुझे बहुत रुलाया है, दोनों को पनिशमेंट मिलेगा”


 “हाँ भाभी” दोनों ने एक साथ कहा।


“आओ दोनों पास में आओ” और पास में आये तो जानकी ने दोनों को एक साथ अपने सीने से लगाते हुए भरी -भरी आवाज़ में कहा – “दोनों मेरे पागल बच्चे”


 “हाँ बेटा, तू बिल्कुल सही कह रही है। चलो सुबह का भूला शाम को घर तो आया। शाबाश मेरे जगू-सरिता”


 “दादाजी, आपने हमें तो कभी शाबाश बोला ही नहीं”


 “चल झूठी, कल ही तो बोला था”


“ पर आज तो नहीं बोला ना”


 “क्यों, आज किस लिए मेरी गुड़िया?”


“ होमवर्क पूरा करने के लिए”


 “अरे वाह-वाह शाबाश मेरी गुड़िया। लेकिन हमारा राजकुमार किधर है?”


 “आप दादी माँ को पूछो ना, गोदी में छुपाकर तो रखा है, वो देखो”


 “अच्छा तो शम्मीजी आपने छुपा रखा है हमारे राजकुमार को” इससे माहौल थोड़ा हल्का हुआ। “सरिता पुतर सब ठंडा हो गया। फिर से गर्म करके ले आ। आज मेरा कमू नहीं है जाते-जाते अपने परिवार को मिला कर गया”


 “नहीं बाऊजी, वे कहीं नहीं गये। यहाँ से यहीं ‌पर है बस शरीर नहीं है लेकिन वे तो है, देखिए ये बैठे है और कमल के ख्यालों में डूबी उससे पूछने लगी – “तुम सच में चले गए हो?” और जैसे कानों में आवाज आई – “मैं यहीं हूँ, तुम्हारे पास हूँ, तुम्हारे साथ हूँ पगली, मैं तुझमें ही तो हूँ”


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