जाल

जाल

2 mins
320


"मेरे घर नहींं आयेगी, तेरी ये लड़की। "

ऋतुराज के ये वाक्य छलनी कर गया मेरे दिल को। मेरा घर----जिस ईंट पत्थर को घर बनाने में मैंंने अपने पच्चीस साल हवन किये, क्या यह सुनने के लिये।

तेरी लड़की ---बिस्तर की भूख मिटाने को केवल शरीर ,? प्रेम नहींं, केवल वासना के क्षण ?

सिहर उठी मैंं। मतलब वो भ्रम था मेरा कि पति, बच्चो के साथ,--- ये घर भी मेरा है।

बेटा असमय ही काल के गाल समा गया। नशे की लत लील गई उसे। मैंने उसे संस्कार नहीं दिये न,ऋतुराज का ये मानना था। और बेटी,कितना समझाया मैंंने उसे---- "ये उम्र प्रेम मे पड़ने की नहीं है " "वो लड़का ठीक नहीं है। " "अपनी पढाई पर ध्यान दो" कहाँ सुना रेणू ने। एक दिन चुपचाप अपने और मेरे जेवर, नगदी लेकर भाग गई उस लड़के के साथ। इस घटना के बाद ऋतुराज ने मुझ्से फासले बढ़ा लिये। मानो मैं ही कसूरवार हूँ इसकी। छह माह बाद ही चोरी छुपे मेरे पास उसके फोन आने लगे। "माँ ये लोग अच्छे नहीं है" "मुझे मारते है" "चरित्र हीन कहते हैं। " "रवि ने मुझ्से शादी नहीं की" "मुझसे पैसे और जेवर भी छीन लिये" "मैं घर आना चाहती हूँ " मैंने फोन की बात ऋतुराज से की। जवाब मिला--तो फोन पर माँ, बेटी की बाते होने लगी। जैसी माँ, वैसी बेटी।"

माँ, बेटी को एक पलड़े पर तौल और दूरी बना ली ऋतुराज ने।

आज एक अनजान औरत बिना कुछ बोले एक कागज मेरे हाथ मे थमा गई। रेणू का था---मां प्लीज मुझे इस नर्क से निकालो, ये लोग मुझे कहीं बाहर भेजने की बात कर रहे थे। मुझे कमरे मे बंद रखते हैं। किसी से मिलने नहीं देते। बड़ी मुश्किल से ये पत्र भेज रही हूँ। मैं मर जाऊंगी माँ। आप और पापा मुझे माफ कर दो। पापा से कहो मुझे बचा ले घर ले आये मुझको "

रेणू ने उस घर का पता भी लिखा था कागज़ के पीछे। मेरा मन रेणू के लिये बेचैन हो गया। उम्मीद के साथ ऋतुराज को पत्र दिखाया और सुनने को मिला---मेरे घर-----तेरी लड़की। मैं अपने मे सिमट गई। बच्ची की पीड़ा का समन्दर मेरे अन्तर्मन मे ठांठे मारने लगा। बीज ऋतुराज का था तो क्या,नौ महिने मैंने अपना रक्त माँस देकर सीँचा है उसे। एक निश्वास बाहर खींची और निर्णय लिया। ये घर मेरा है, इस भ्रम जाल को तोड़ना है। दरिन्दों से बेटी को बचाना है। स्वयमेव मेरे कदम पुलिस चौकी की ओर बढ़ गये।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy