इश्क शहद सा
इश्क शहद सा
बात दरअसल उस वक्त की है जब राजन11वीं कक्षा में नई-नई दाखिले के साथ विद्यालय में प्रवेश किया था। काफी डरा सहमा सा अपनी स्कूली पारी का शुरुआत कर रहा था। आज विद्यालय में उसका पहला दिन था,बाल्यावस्था से ही थोड़ा शर्मीला मिजाज का था। एकांत जीवन यापन करने की आदत थी उसे। लेकिन आज कुछ मौसम का मिजाज अलग सा था क्योंकि मोहब्बत वाली जीन कहीं न कहीं उसके अंदर प्रवेश करने वाली थी।
दरअसल पहले दिन वह जैसे-तैसे कक्षा तक पहुंचा लेकिन किसी से खास जान पहचान नहीं बना पाया। हां एक दोस्त बना भी तो बिल्कुल भाजपा-शिवसेना नेताओं की तरह क्योंकि मजबूरी एवं जबरन की दोस्ती थी। एक दूसरे को एक ही बेंच पर जबरन एडजस्ट कर रहे थे दोनों। क्योंकि राजन क्लास में थोड़ा लेट पहुंचा था और क्लासरूम के बीच वाले रो में एक बेंच पर 1सीट शेष बचा हुआ था और उस सीट पर जो बन्दा बैठा हुआ था वह उस कक्षा का राज ठाकरे खुद को समझता था। तो मान कर चलो वहां एडजस्ट होने के लिए उसे खुद को अटल बिहारी वाजपेई जी की तरह शांत चित्त होकर एडजेस्ट करना पड़ा। इसमें कक्षा के जज साहिबा जोकि क्लास टीचर थी उनकी जबरन दखल देने पर !
समय का चक्र ऐसे ही बितता चला गया कुछ नए गठबंधन मतलब राजनीति वाले नहीं दोस्ती वाले होते गये काफिला बढ़ती गई कुछ नए मित्र बने और कुछ नए क्लासरूम वाले लाल विलास पासवान भी। कुल मिलाकर दोस्ती वाली सरकार एडजस्ट हो गयी। लेकिन इस दोस्ती वाली सरकार का सबसे अच्छा सहयोगी सोहन जो कि खुद को क्लास का राज ठाकरे समझता था वही बना।
लेकिन राजन की आंखें किसी और की ताक में पिछले 2 महीने से रहा करती थी। जब पहली बार कक्षा में प्रवेश किया था और क्लास टीचर के सामने वाले बेंच पर स्नेहा को देखा था उसी वक्त से कहीं ना कहीं दिल में स्नेहा अपना पैठ बना चुकी थी।
जब भी कक्षा के भागदौड़ से कुछ आजादी मिलती बस लग जाता अपनी मोहब्बत को हवा देने में। वैसे क्लास का राज ठाकरे जो खुद को समझते थे सोहन भाई उनका हाथ तो था ही उसके सर पर। तो उसे कक्षा का मॉनिटर भी बना दिया गया क्योंकि सोहन चाहता था कि कक्षा का मॉनिटर ऐसा हो जो उसके नियंत्रण में रहे और राजन इसमें फिट बैठता था तो बस उसके सहयोग से कक्षा का वह मॉनिटर भी बन गया लेकिन परिस्थितियां अलग थी यहां अध्यापिका ने यह नियम बना रखा था कि लड़कों का मॉनिटर लड़की होगी और लड़कियों का मॉनिटर लड़का होगा।
सोहन के अनुसार तो यह नियम आज के परिवेश जैसे कि नया ट्रैफिक रूल आया है वैसा था क्योंकि उसे पूर्ण विश्वास था कि थोड़ी भी गलती करने पर चालान सीधा कट जाएगा। लेकिन राजन के मोहब्बत के लिए यह मानो झमाझम बारिश में कहीं छावं मिलने जैसा था, लकड़ी में आग सुलगा लेने को !
समय बीतता गया समय के साथ अर्पिता और राजन की मॉनिटरिंग का भी आकलन क्लास में होने लगा अर्पिता मानो लड़कों के लिए हिटलर हो और राजन लड़कियों के लिए श्री मनमोहन सिंह अब इस तरह की परिस्थितियों में राजन का सबसे घनिष्ठ मित्र सोहन बागी हो गया। वह आए दिन पॉलिटिक्स करना क्लासरूम वाली प्रारंभ कर दिया वह नया उम्मीदवार खड़ा करवाता और कक्षा मॉनिटरिंग का इलेक्शन करवाता लेकिन स्थितियां बदल चुकी थी अब राजन को किसी सोहन की आवश्यकता नहीं थी लड़कियों के बीच वह अपना पैठ बना चुका था। जब भी वोटिंग होती तब वही विजई होता क्योंकि लड़कियों का पूरा समर्थन उसको प्राप्त था और लड़कों का कुछ जमात उसके साथ था। कुल जमा बात यह थी कि अब राजन कक्षा में एक प्रमुख बंदा बन चुका था।
कक्षा में आए दिन ऐसे ही पॉलिटिक्स होता रहा और इसी के बीच राजन की मोहब्बत भी चरम पर था क्योंकि स्नेहा से नजदीकियां बढ़ने लगी थी। दोनों की दिलों ने एक-दूसरे के लिए धड़कना प्रारंभ कर दिया था। कक्षा में वे लैला मज़नू कहलाने लगे थे। क्योंकि अब बात भी काफी बढ़ गई थी। कक्षा ग्यारहवीं के छात्र कम कॉलेज के छात्र ज्यादा दोनों दिखने लगे।
अब साथ में स्कूल में लंच किया जाता लंच में जो भी लाते ये दोनों आपस में मिलजुल कर क्लास के शोरगुल से कहीं अलग एकांत में किया करते।
दोनों पढ़ाई में कुशल थे स्नेहा की गणित उतनी अच्छी नहीं थी। तो वही राजन का अंग्रेजी में हाथ तंग था। लेकिन दोनों एक दूसरे की जरूरत थे क्योंकि जहां राजन की गणित सुपर थर्टी के आनंद कुमार के जैसा था तो वही स्नेहा का अंग्रेजी शशि थरूर जैसा यानी कुल मिलाकर दोनों ऐसे नाव पर बैठे थे जहां नाव को बीच मझधार से पार लगाने के लिए एक दूसरे की आवश्यकता थी।
तो बस क्या था लग गए दोनों एक दूसरे को सहारा देने में राजन क्लास में स्नेहा को गणित में चीरहरण होने से बचाता तो वही स्नेहा राजन को अंग्रेजी में।
कालांतर में समय का पहिया घूमता गया मोहब्बत ने अब तामझाम भी करना शुरू कर दिया घर में 6 घंटे की पढ़ाई में 5 घंटे व्हाट्सएप पर चैट ने ले लिए। चैट के दौरान रोज वे लोग शादी करते शादी के बाद पहली सुहागरात होती उसके बाद कुछ दिनों के बाद नए चिराग उत्पन्न होते वे पापा, मम्मी भी बन जाते और रात को 2:00 बजे तक दोनों का ब्रेकअप भी हो जाता ! रुकेगा जरा ! व्हाट्सएप वाला ब्रेकअप की बात कर रहा हूं। कुल मिलाकर जब तक वो ट्वेल्थ नहीं पास हो गए तब तक उन लोगों की लगभग2064 बार ब्रेकअप और उतने ही बार दोनों मिंगल भी हो गए। पढ़ने में तेज तो थे ही दोनों लेकिन मोहब्बत वाली नशा के आदी हो गए थे तो समय ऐसा चांडाल पहरी है जो बराबर इंसाफ करता है तो समय ने बराबर इंसाफ किया दोनों की कमजोर सब्जेक्ट कमजोर ही रह गई चैट की शैली जो व्हाट्सएप की थी वह ऐसी थी जो शेक्सपीयर एवं प्रेमचंद दोनों को चुल्लू भर पानी में डूबने को विवश कर दे। क्योंकि विवशता यह थी कि स्नेहा शेक्सपीयर वाली अंग्रेजी में चैट नहीं कर सकती थी क्योंकि हमारे राजन जी की अंग्रेजी में हाथ पहले से ही तंग था और वह हमारे पत्रकार रवीश कुमार की तरह थे।
तो वही स्नेहा पत्रकार बरखा की तरह थी औऱ वह प्रेमचंद्र वाली हिंदी समझने में असमर्थ थी। तो दोनों ने एक अलग ही भाषा का निर्माण किया जो चैट के लिए सार्थक हो वह भाषा थी उटपटांग भाषा जिसको हम कह सकते हैं अंग्रेजी-हिंदी का एक ऐसा संगम जहां दोनों भाषाएं प्रेम की जुबान तो बन गई थी लेकिन खुद में शर्मिंदा थी।
तो जो होता है वहीं हुआ स्नेहा जैसे-तैसे गणित में 33 का तिलिस्म तोड़ा और कुल 33अंक से ही गणित में पास किया। उसकी मार्कशीट में यह गणित मानो चौदहवीं का चांद हो। तो वही हमारे राजन जी के मार्कशीट में अंग्रेजी पूरे 36अंक के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हुए यह कह रही हो कि मैं इसलिए आ गई क्योंकि तुम्हारी आंसर शीट जिसने भी चेक किया हो उसकी बेटी की ब्याह ठीक हुई होगी। इस लिए वह अति प्रसन्न मुद्रा में तुम्हें कैसे भी 33 वाले बाउंड्री लाइन से 3 अंक ज्यादा देकर मुझे पहुंचा दिया यह हिदायत देते हुए की उसे प्रेमचंद के शरण में जाने को कह दो।
इस तरह दोनों ने जैसे-तैसे इंटरमीडिएट की परीक्षा फर्स्ट डिवीजन से लम सम 61, 62 प्रतिशत से पास की।
इस प्रकार इन दोनों का मोहब्बत वाली स्कूली पारी का अंत हुआ क्योंकि अब मोहब्बत की सेकंड इनिंग प्रारंभ होनेवाला था बहुत से मिस्ट्री के साथ।
अब हुआ यह कि राजन की भले ही मार्क्स अच्छे नहीं आए हो लेकिन वह गणित में अच्छा था तो इंजीनियरिंग में दाखिला मिल गया वह भी सरकारी कॉलेज में तो वही स्नेहा जबरन की विज्ञान विद्यार्थी थी। उसकी दिलचस्प विषय राजनीतिक विज्ञान एवं साहित्य था। तो उसने आगे की पढ़ाई पत्रकारिता में करने का निर्णय लिया। लेकिन ईश्वर के कृपा देखिए दोनों का दाखिला जिस शहर में हुआ वह दिल्ली था और दोनों का कॉलेज 5 किलोमीटर के फासले पर था। तो क्या था स्कूली इश्क जवां हो गई अब वह कॉलेज की लफंगे की तरह थी क्योंकि अब यहां पर छोटे शहर वाली अनुशासन खत्म सा हो गया था। अब ये लोग सब बंदिशों को छोड़कर इश्क की समंदर में गोते लगाने लगे कॉलेज में छुट्टियां होते ही दोनों घरके जगह देश भ्रमण पर निकल जाते थे जैसे प्रायः होता है और कुछ प्रेयसी तो ऐसे भी होती हैं जो बिन बियाहे ब्याही हो जाती हैं। इश्क की नशा ही कुछ ऐसा होता है प्रेमी भी जिम्मेदार बन्दा हो जाता हैं। तो राजन भी कुछ ऐसा ही हो गया था पूरी तरह से जिम्मेदार। जिम्मेदारी ऐसी कि मानो पूरा देश उसी के सर पर हो। और वैसे होना भी चाहिए क्योंकि गर्लफ्रेंड किसी देश से कम थोड़े होती हैं उनकी इतनी आशाएं एवं महत्वाकांक्षाये लड़कों से होती है कि मानो लड़कों को ऐसा प्रतीत होता है कि वह नेशनल,इंटरनेशनल दोनों पॉलिटिक्स का शिकार हो। तो बस क्या था राजन की भी स्थिति कुछ ऐसी थी।
दोनों का मोहब्बत ऐसा ही कॉलेज के जीवन में भी चलता रहा।
लेकिन 3 वर्ष बाद कुछ ऐसी घटना घटित हुआ जिसने इनकी मोहब्बत की कुंडली ही बदल दी !
दरअसल बात उस वक्त का है जब दोनों अपने कॉलेज के थर्ड ईयर में थे उस रोज झमाझम बारिश हो रही थी स्नेहा, राजन एक फार्महाउस पर सावन के महीने में अपने इश्क का सबसे सुनहरे लम्हों में खोए थे उसी वक्त स्नेहा ने राजन से पूछा मैं तुम्हारे साथ पिछले 5 सालों से एक अटूट रिलेशनशिप में हूं अब हमारी कॉलेज का कुछ ही समय बचा है तुम्हारा भी कॉलेज में केंपस सिलेक्शन आने वाला है और मेरा भी तो उम्मीद है कि हमारी नौकरियां भी कुछ समय बाद हो जाए आगे का क्या सोचा है।
उसकी बातों को सुनकर राजन उसकी जुल्फों के साथ खेलते हुए हंसा और कुछ नहीं कहा स्नेहा ने बताओ ना बताओ ना की धुन अला पे उससे फिर से वही प्रश्न किया, राजन ने हंसते हुए बिहारी अंदाज में कहा स्नेहा जी इतना काहे उबिया रहे हैं ! सदिया तो आप ही से करेंगे लेकिन इ जो छुप छुपा कर मिलते रहे हैं तथा इश्क में मदहोश होकर 5 साल जो जिंदगी काटे हैं, उस का मजा ही कुछ और है !
और यह बात बोलते- बोलते ही राजन, स्नेहा की आंखों में खो गया और उसके हाथों को चूमते हुए आई लव यू कहा और इश्क की एक शानदार होठों वाली चुंबन दे दिया !
स्नेहा भी कहीं न कहीं इश्क के इस सबसे सुनहरे पल में खुद को झोंक दी और दोनों ने जमकर रोमांस किया । लेकिन पता नहीं क्यों आज स्नेहा कुछ परेशान से थी अब उसे ऐसा लग रहा था कि आज ही अपने नाम को मैडम स्नेहा से मिसेज राजन बनवाना हो . .!
रोमांस के पलों के आनंद लेने के बाद स्नेहा ने राजन से कहा मैं तुमसे आज ही शादी करना चाहती हूं राजन ने कहा भला यह क्या बात हो गई शादी करेंगे और जरूरी करेंगे पूरे रीति-रिवाज के साथ और समाज के सामने लुक छुप के शादी करने का क्या मतलब स्नेहा जी, राजन बोल कर थोड़ा हंसा ।
स्नेहा बोली वह जब करना होगा कर लेंगे, मैं नहीं जानती मुझे अभी के अभी तुम्हारे नाम का सिंदूर लगाना है और हमेशा के लिए तुम्हारा हो जाना हैं !
राजन ने कहा क्या हुआ मुझ पर तुझे विश्वास नहीं क्या मैं कोई विजय माल्या हूं जो आज रात को ही भाग जाऊंगा। मैं तुम्हारा हूं ,तुम्हारा ही रहूंगा ! और हमेशा ऐसे ही तुम्हारे गोद में सर रखकर अपनी बिहारी भाषा की धुन पर परेशान करता रहूंगा।
स्नेहा बोली और मैं ऐसे ही तुझे प्यार से थप्पड़ जर दिया करूँगी। जैसे रोज ज़रा करती हूं। राजन हंसते हुए बोला यह तुम्हारे प्यार वाली थप्पड़ खाना ही मेरे लिए सबसे ज्यादा प्यार है बाबू, तुम्हारी इस थप्पड़ में मेरे लिए सबसे ज्यादा अधिकार है ! राजन यह बोलते हुए उठ कर बैठा और स्नेहा के गालों के पास अपना हाथ रखा और सर को चूम लिया। और फार्महाउस के जिस कमरे में बैठा था वहां फल की एक टोकरी में रखा चाकू को निकालकर अपनी उंगली की मांसपेशियों को कांटा और अपने खून से स्नेहा की मांग भर दी। स्नेहा भी पूरे दुल्हन की भांति राजन का आशीर्वाद लेकर उसे पति के रूप में स्वीकार करते हुए कहा, अपने अंग्रेजी भाषा में hubby आज पूरा लालू यादव लग रहे हो। राजन भी हंसते हुए कहा धत पगली ! इतना भी स्मार्ट नहीं हैं, तुम क्या दीपिका पादुकोण से कम लग रही हो।
और इस तरह से हम कह सकते हैं कि उन लोगों ने सामाजिक शादी तो उस रात नहीं की लेकिन राधा-कृष्ण वाली विवाह रचा लिया।
कालांतर में समय का चक्र फिर से एक नई दास्तां लिखा कॉलेज का पठन-पाठन का कार्य समाप्त होने के बाद दोनों बहुचर्चित कंपनियों का हिस्सा हो गए स्नेहा जहां बहुचर्चित इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का संवादाता बनी तो वही राजन एक बहुचर्चित कंपनी का एक सार्थक इंजीनियर।
नौकरी के1वर्ष बीत चुके थे सब ठीक चल रहा था लेकिन अचानक1 हफ्ते से स्नेहा का राजन से पहले की तरह बातें नहीं हो पाए थे काफ़ी कम बातें हुई। राजन को कुछ अटपटा सा लगना प्रारंभ हुआ। एक दिन उसने ना जाने कितनी बार स्नेहा को कॉल किया हो लेकिन स्नेहा के द्वारा फोन नहीं उठाया गया थक हार कर वह उस रात बेचैनी की मुद्रा में करवटें बदलता गया और ऐसे ही अगले दिन भी फोन मिलाता रहा लेकिन कोई जवाब नहीं आया।
अंत में उसने निर्णय किया कि वह स्नेहा से मिलने उसके दफ्तर जाएगा और वह लखनऊ से नोएडा के लिए निकल गया रास्ते भर स्नेहा को फोन लगाता रहा।
बहुत कशमकश के बाद एक व्यक्ति ने उसके कॉल को उठाया और वह व्यक्ति था एक इंस्पेक्टर श्री लालजी प्रसाद। राजन तो पहले से ही परेशान था उसने आओ ना ताऊ देखा सीधा लालजी जी को काफी कुछ सुनाने लगा। राजन ने उनसे कहा मेरी गर्लफ्रेंड का फोन तुम्हारे पास कैसे उसे कुछ औऱ ही आशंका होने लगा जो लगभग सभी यूपी और बिहार के बंदे को होते हैं। लेकिन लाल जी ने पुलिसिया अंदाज में उसे शांत किया उसके बाद एक पता नोट करवाया और वहां मिलने को कहा जब उस पते पर राजन पहुंचा तो वह सन्न रह गया क्योंकि आंख मूंदे बिस्तर पर स्नेहा लेटी थी और वह कोमा में थी। लालजी ने राजन को शांत करते हुए सारी घटना की जानकारी दी। और चलते बने।
उस दिन राजन ऐसा टूटा कि आज तक नहीं संभल पाया ! फार्म हाउस वाली रात आज भी उसे रुलाती हैं !

