Mayank Kumar 'Singh'

Comedy

5.0  

Mayank Kumar 'Singh'

Comedy

पॉलिटिक्स पर थोड़ी हंसी मजाक

पॉलिटिक्स पर थोड़ी हंसी मजाक

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सभी को नमस्कार !


उम्मीद करता हूं, इन 5 सालों में बेरोजगारों की जमात जितनी थी उससे और अधिक बढ़ गई होगी। क्योंकि 5 साल निरंतर योगियों की तरह आप लोगों ने भी सपने में नौकरीरूपी ईश्वर का दर्शन तो अवश्य कर लिया होगा। और नहीं किए तो अभी देश में आगामी दिनों में राजनीतिक दलों द्वारा काफी सपने बेचे जाएंगे उसमें से नौकरी वाला सपना आप खरीद लेना, बिल्कुल मुफ्त है जैसे बेंगलुरु शहर में पानी की कमी से कई परेशानियां मुफ्त वहां के लोगों को दे दी गयी हैं। औऱ हां! आप सभी बेरोजगार रात को नींद में दफ़्तर जाना, सपने में ही, शादी-विवाह कर लेना और सुखी संपन्न परिवार बना, प्रधानमंत्री के सपने को पूरा करना, कहने का मतलब की जनसंख्या नियंत्रण करने वाला सपना। पर अफसोस ये सपना भी आप सपने में भी पूर्ण नहीं कर पाओगे! क्योंकि उन्ही के एक माननीय मंत्री जी, जो लोगों को सेकलुरीजम के पाठ पढ़ाते-पढ़ाते पाकिस्तान भेजने लगते हैं, वहीं खड़े होकर आपको ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने को कहीं बोल न दे। हां, लेकिन उसके लिए आपको हिंदू होना आवश्यक है! भाई नेताजी जो हिंदू धर्म का ठेकेदार ठहरे।

उनके जैसे एक और सांसद भी हैं जो किसी विशेष धर्म के ठेकेदार खुद को समझते हैं इतना बड़ा ठेकेदार की ट्रिपल तलाक बिल का ही विरोधी बन बैठे!

इन दोनों रत्नों को देखकर ऐसा महसूस होता है कि, इन्हें भगवान ने एक ही सांचे में बनाया हो और अलग-अलग धर्मों के कुल को कलंकित करने के लिए धरती पर पटक दिया हो।


चलिए अब सपने वाली बात को सपने में सुला देते हैं, राष्ट्रवाद की गोली देकर...!


और इन दोनों नेताओं को छोड़ आगे बढ़ते हैं...


महाराष्ट्र वाले राजनीति पर आते हैं...


यह कहानी चार पार्टियों के ड्रामेबाजी से शुरू होता हैं-एक है कट्टर हिंदूवादी पार्टी शिवसेना तो दूसरी अपने हिसाब से भारतीय संविधान को मानने वाली एनसीपी तो तीसरी सेकुलरिज्म के बहाने बात-बात पर कोर्ट जाने वाले नेताओं की पार्टी कांग्रेस तो वही सनातन धर्म एवं हिंदू धर्म के साथ-साथ चाणक्य की पार्टी बीजेपी... अब इस पार्टी के चाणक्य और चंद्रगुप्ता मौर्य के समय के चाणक्य में कितने समानताएं हैं यह तो आप और आने वाला इतिहास ही बताने में समर्थ है हम तो बस इतना ही बोलेंगे दोनों की कुटिया में थोड़ा फर्क है...!


अब हुआ यूँ की बीजेपी और शिवसेना आपस में मिलकर चुनाव लड़े और लड़ना भी चाहिए दोनों एक ही वंशज के हैं मतलब की हिंदू समर्थक। तो वही कांग्रेस और एनसीपी मनमुटाव के बीच किसी गोतिया-गोतनी के जैसे... अरे भाई, घबराइए नहीं कोई आइटम बम जैसा शब्द गोतिया-गोतनी नहीं है यह बिहार का बहुचर्चित शब्द है यह इतना बहुचर्चित शब्द है कि आपस में कितने मुकदमे दर्ज करवा देता है! और कहीं-कहीं तो दावत भी खिलवा देता है। गोतिया-गोतनी के बारे में मैं कुछ नहीं बोलूंगा ये सब काम गूगल पर छोडूंगा! वैसे भी गूगल के सीईओ भी भारत के ही हैं तो इतना तो बता ही देंगे इसी उम्मीद के साथ आगे बढ़ता हूं....!


24 अक्टूबर 2019 भारतीय इतिहास के पन्नों पर राजनीति शास्त्र का एक नया अध्याय लेकर आया यह अध्याय उसी प्रकार था जिस प्रकार मोहल्ले की प्रेम कहानी याद करके आज भी लोग अपनी अपनी दुनिया में खो जाते हैं यह भी कुछ ऐसा ही था...


सभी पार्टियां चुनाव कैंपेन में सपने बेचकर अपने अपने घर में 24 तारीख के ताक में बैठे थे अपने अपने मुनाफे को बटाेरने के लिए...


जैसे ही 24 तारीख की सुबह हुई वैसे ही तमाम न्यूज़ चैनलों में आकाशवाणी प्रारंभ हुई... सुबह से शाम ढलते -ढलते तक कईयों का सिंहासन डोला। तो कईयों ने अपनी इज्जत बचाई। तो कई जो प्रलोभन में किसी और पार्टी के दरवाजे से जनता को सपने बेचे थे जनता ने उन्हें ही सपने के हवाले कर दिया...! कुल मिलाकर उस दिन के रात तक सबको अपना-अपना मुनाफा मिल गया था, इस चुनाव परिणाम से। पर इस परिणाम से इतना तो तय हो गया था कि इस बार खरीदारी कम हुई, सपने कम बीके!


लेकिन भाइयों-बहनों मेन ड्रामा तो परिणाम आने के कुछ दिनों बाद शुरू हुआ जब शिवसेना मुख्यमंत्री पद के लिए अड़ गयी। शिवसेना किसी मंदोदरी की तरह कोप भवन में चली गयी और भाजपा की दशरथ वाली हालत हो गई अब बंद कमरे में कौन सा वचन कौन दिया था वह ससुर, ना हमको मालूम है, ना आपको...। लेकिन उसी वचन का सौगंध देकर शिवसेना शरद पवार जी के यहां चली गयी यहां शिवसेना का मतलब उद्धव ठाकरे और उनके नेताओं से हैं। और कांग्रेस जो पहले से कहीं बिन बैसाखी पड़ी हुई थी उसे खड़ा किया और साथ मिलकर खिचड़ी पका सरकार बनाने का ऐलान कर दिया। लेकिन समझने वाली बात है कि सरकार उसी की बनेगी मतलब ठेठ भाषा में समझाया जाए तो 145 बाराती जिसके घर नाचेंगे मुख्यमंत्री पद से उसी का ब्याह होगा। भाजपा के पास पहले से 105 अपने लोग नाचने के लिए थे बचे चालीस जिसको अच्छा खाना पीना का व्यवस्था बताकर लाना था। तो वे लोग इसमें पहले से ही से लगे हुए थे उन्हें अपने तरफ करने में... यह बात सार्वजनिक तौर पर सबको मालूम थी।


अतः सब अपने घर-घर के सदस्यों को लुकाना शुरू कर दिए जो बाराती के लिए पक्के जाने वाले थे। उन्हें छिपाकर होटलों में शिफ्ट कर दिया गया। तभी रात को आकस्मिक घटना घटित हुई जैसे प्राचीन काल में हुआ करती थी वैसे ही एनसीपी के 54 बारातियों का सरदार ना दिन देखा ना रात सीधा छुप छुपा कर देवेंद्र फडणवीस जो मुख्यमंत्री के शपथ लिए उनके साथ उप मुख्यमंत्री की शपथ सुबह के 8 बजे के करीब ले लीये। अब ससुर... यह बात बाराती को संगठित एवं एकत्रित करने वाले शरद पवार जी को पसंद नहीं आयी, उन्होंने अपना हंटर चलाया 53 बारातियों को अपना आंगन बैठाया। अब 54 वां जो भागा था उसका हाल उसी दुल्हन की भांति हो गयी, जो दूल्हे के भरोसे भाग तो गई थी, लेकिन ऐन वक्त पर साला दूल्हा धोखा दे गया। अब करें तो क्या करें अंतिम रास्ता बाप का मकान था तो वह 54वां भी अपने घोंसले में आ गया। तो फिर होना क्या था 54, 44, 56 सभी एक ही आंगन नाचे 56 बाराती था जिसका दूल्हा उसी का बना यानी मुख्यमंत्री उसी का बना, लेकिन कट्टर हिंदुत्व को लात मार के सेकुलर दुल्हा जो बना वह लोकतंत्र के लिए तो अच्छा है। अगर सच में वह सेकुलर हो गया है तो। सेक्युलरिजम ही एक धर्म होना चाहिए। लेकिन राजनीति के मछुआरों का कोई धर्म नहीं होता ना सिद्धांत होता है। यह सब सत्ता की केक खाने के लिए उस आंगन में नाचते फिरते हैं, जिस आंगन में बंदर भी नाचने से कतराता हो और मदारी नचाने से...!!


खैर देखिए मछुआरों का सरकार कब तक चलता है और महाराष्ट्र की जनता मछली कब तक बनी रहती हैं ।।


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