Mayank Kumar 'Singh'

Inspirational Tragedy

5.0  

Mayank Kumar 'Singh'

Inspirational Tragedy

एक अनहोनी

एक अनहोनी

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आज स्कूल में छुट्टी जल्दी हो गई थी। क्योंकि विद्यालय में क्षेत्रीय विज्ञान प्रदर्शनी का आयोजन होना था, जिसकी तैयारी के लिए विद्यालय परिवार को व्यवस्था बनानी थी

अतः प्रधानाचार्य के निर्देशानुसार विद्यालय में अवकाश जल्दी हो गया।

वैसे भी विद्यालय परिवार के लिए काफी हर्ष एवं उमंग का विषय था क्योंकि बहुत दिनों के बाद इस प्रकार का आयोजन उनके विद्यालय प्रांगण में होने वाला था। इसलिए इसकी तैयारी जोरों-शोरों से चल रही थी।

प्रायः विद्यालय में अवकाश होने का समय लम-सम दोपहर के 1:00 बजे का था। लेकिन आज सुबह के 11:00 बजे के करीब ही विद्यालय के पठन-पाठन का कार्य स्थगित कर दिया गया।

आज जल्दी अवकाश मिलने से सोहन, रमेश, सुमित तथा नितेश काफी उत्साहित थे। क्योंकि इन्हें पता था कि काफी समय बाद ऐसा मौका मिला है। वैसे भी लम-सम 2 घंटे का समय इनके पास अब अतिरिक्त बच गया था। और अब इन्हें अभिभावक से भी खेलने के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं थी। वेलोग छिप-छिपा कर आसानी से 2 घंटे का वक्त खूब उमंग एवं उत्साह के साथ आपस में मिलजुल कर व्यतीत कर सकते थे। अतः इन्होंने निश्चित किया की वेलोग सबसे पहले अपने शहर के मशहूर पार्क का भ्रमण करेंगे। उसके बाद शहर के नज़दीक एक छोटा जंगल जैसा दिखने वाला निर्जन स्थान पर भी जाएंगे, सीआईएसएफ के तैनात जवानों से छुप छुपा कर। और वहां के स्वादिष्ट आम और अमरूद के फलों का स्वाद चखेंगे। तो वेलोग अपनी योजना के अनुसार सबसे पहले पार्क की ओर निकलें तथा वहाँ लगे, खेलने के सारे वस्तुओं का ख़ूब उपयोग किया। तथा जमकर लुफ्त उठाएं। जब उन लोगों ने पार्क में खूब खेलकूद कर लिया, उसके बाद सोहन ने नितेश से कहा भाई आज काफी दिनों के बाद अच्छा लगा। नितेश ने भी हां में जवाब दिया। उसके बाद सुमित अपने सहपाठियों से कहा भाई आज खेलकर तो काफी मजा आया लेकिन शरीर में से गर्मी के कारण आग निकल रहे हैं।

हां दोस्त यह बात तो सही है, काफी गर्मी है आज। उसके स्वर में अपने भी स्वर सोहन, नितेश, रमेश ने भी मिलाए।

उन लोगों द्वारा इतना कहने के बाद सुमित ने सहपाठियों से कहां की दोस्तों मैं एक ऐसे तलाब के बारे में जानता हूं जो यहां से काफी नजदीक है तथा काफी खूबसूरत भी हैं। वहां पानी बर्फ की तरह गर्मियों में भी ठंडे रहते हैं ! आसपास का मौसम भी काफी खुशनुमा है। इर्द-गिर्द काफी हरियाली है। और हां ! वहां स्नान करने स्थानीय बस्ती के चुनिंदा लोग ही आते हैं। अतः हमें काफी एकांत का माहौल भी मिलेगा। अगर, तुम लोग बोलो तो अपने-अपने चेतक को उठाएं तथा निकल जाए मंजिल की ओर.... हा हा हा. . क्या बोलते हो तुमलोगों !

सुमित के इतना बोलने पर, सोहन बोला भाई नहीं यह सही नहीं होगा ! क्योंकि हम लोग पहले से ही अपने-अपने अभिभावकों से लुक छुप के आए हैं। तथा उसके बाद हमारे पास समय की भी पाबंदी है। मुश्किल से एक घंटा से भी कम समय बचा है हमारे पास। तथा हम लोगों में से तैरना सिर्फ तुम्हें और रमेश को आता है। न भाई न ये सब नहीं . .!

सोहन के इतना बोलते ही, सुमित ने बोला भाई कसम से जितना भी डरपोक देखा हूं इस दुनिया में, उनमें तुम सबके सरदार निकले . .हा हा हा . .।।

सोहन बोला भाई जो सोचना हैं सोच और जीतना हँसना हैं हँस, पर मैं नहीं आ रहा तुम्हारे साथ।

सोहन के मना करने के बात सुमित ने रमेश एवं नितेश से पूछा, भाई तुम लोगों का क्या विचार है।

रमेश ने कहा मेरे हिसाब से सुमित मैं तुमसे सहमत हूं। बार बार ऐसा मौका नहीं मिलता। रमेश के इतना बोलने के बाद नितेश ने भी उसके कहे शब्दों में अपनी भी हामी भरी।

रमेश तथा नितेश के हामी भरने के बाद, सोहन ने नितेश से कहा भाई तुझे तैरना नहीं आता, जबरदस्ती का पंगा मत लो ! फालतू के चक्कर में पड़ जाओगें।

नितेश ने उत्तर दिया भाई बार बार ऐसे मौके नहीं मिलते। वैसे भी डर के आगे जीत हैं . .हा हा हा।

सोहन ठीक है जैसा तुम्हें उचित लगे ! मेरा काम था समझाना सो मैंने समझा दिया, आगे तुम्हारी इच्छा।

नितेश भाई मैं तालाब के बीच में स्नान करने के लिए नहीं जाऊंगा, तुम चिंता मत करो। मैं तालाब के किनारे का एक कोना पकड़ कर ही स्नान करूंगा।

सोहन ठीक हैं, जैसा तुम उचित समझो।

सुमित भाई सोहन, तुम्हारे जैसा डरपोक नितेश नहीं है। वह अपना ध्यान रख लेगा।

सोहन (थोड़ा भन्नाते हुए बोला) ठीक हैं भाई , मैं समझ गया।

सुमित अच्छा हैं। जल्दी समझ गए ..हा हा हा।

रमेश कृपया, सुमित भाई हँसना बंद करो।

सुमित ठीक है गुरुजी, जैसा आप बोलो।

रमेश धन्यवाद आपका सुमित बाहुबली (थोड़ा व्यंग्यात्मक शैली में) . . . इतना बोल कर रमेश सोहन को समझाने लगता हैं। देख भाई तुझे स्नान नहीं करना है तो न सही, लेकिन साथ में चलना होगा दोस्ती के नाते।

रमेश के स्वर में स्वर नितेश और सुमित भी मिलाने लगते हैं। बहुत मनाने के बाद सोहन भी बेमन ही सही पर मान जाता हैं।

फिर वो लोग अपना चेतक यानी कि अपनी साइकिल लेकर निकल गए मंजिल कि ओर लेकिन जाने के क्रम में रास्ते में, नितेश ने कहा पहले हम उस जंगल में जाएंगे जहां आम, अमरूद खाने की बात हुई थी। सुमित ने कहा हां भाई ठीक है। वैसे भी रास्ते में ही जंगल भी पड़ता हैं। सभी लोगों ने फिर हँसते हुए कहा, तो फिर देर किस बात की चलते हैं . .!

अब वेलोग जंगल के पास पहुँच गए थे। अब समस्या यह थी कि जंगल में प्रवेश करने के लिए उन्हें सुरक्षाकर्मियों के नजरों में धूल झोंकते हुए आगे बढ़ना था। और वे लोग इसमें कामयाब रहे क्योंकि सुमित इन चीज़ों में माहिर था। तो जैसे तैसे इन लोगों ने सुमित कि सहायता से जंगल में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में कामयाबी हासिल कर ही ली। अब वेलोग ईंटो एवं पत्थरों से आम और अमरूद के पेड़ों पर आक्रमण बोल दिए। काफ़ी हद तक कुछ आम और अमरूद के फलों को ज़मीन पर गिराने में वे सब कामयाब भी हो गए। तभी वहां उपस्थित सुरक्षाकर्मियों को इसकी भनक लग गई। उन्होंने इन लोगों को खदेड़ना प्रारंभ किया। जैसे तैसे कुछ फलों के साथ वेलोगों अपनी जान बचाते हुए वहां से निकले। लेकिन, अपने योजना के अनुसार कुछ हद तक वे कामयाब रहे। कुछ दूरी पर पेड़ के छाए में बैठकर फलों को खाया तथा लंबी सांस ली इन सबों ने। फिर 5 से 10 मिनट के विश्राम के बाद वे लोग तलाब की ओर प्रस्थान किए।

तालाब के निकट पहुंचने के बाद वे लोग काफी आनंदित एवं मंत्रमुग्ध हो गए क्योंकि वहां का वातावरण काफी मनमोहक तथा प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर आनंद देने वाला था। नितेश ने सुमित से तालाब को देखने के बाद कहा भाई सही जगह लाए हो, मन खुश हो गया ! रमेश ने भी नितेश के सुर में अपने सुर मिलाये।

सुमित ने हंसते हुए कहा शुक्रिया दोस्तों ! अभी तो सिर्फ स्थान को देखकर इतना मंत्रमुग्ध हो रहे हो। तालाब में गोते लगाओ उसके बाद आनंद चरम पर होगा। और सुमित थोड़ा व्यंग्यात्मक शैली में कहा, क्यों सोहन तुम्हें जगह पसंद नहीं आई क्या ?

सोहन नहीं दोस्त, ऐसा नहीं है मुझे भी जगह काफी पसंद आई। लेकिन माफ करना यह जो तुम्हारी तालाब में गोते लगाने वाली बात है उसमें मैं शामिल नहीं हूं मैं नहीं गोते-वोते लगा रहा . .थोड़ा हंसी के साथ।

सुमित माफ करना दोस्त। लेकिन, तुमसे मेरी यही उम्मीद थी। हा हा हा . .

रमेश अब झगड़ना बंद भी करो तुमलोग।

नितेश हां सच में इतना तो ये दोनों अपने विद्यालय के पूरे 8 वर्ष के जीवन काल में नहीं झगड़े, जितना की आज।

सोहन भाई हम लोगों के बीच मतभेद है, लेकिन मन भेद नहीं। यह पिछले 8 वर्षों से निरंतर चलता आ रहा है कई मुद्दों पर। और उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में भी यह चलता रहेगा। हा हा हा . .। वैसे सच बोलूं तो इतनी कम आयु में जितना मैं अध्ययन किया हूं, तथा शिक्षकगण से सीखा हूं उसके अनुसार अपने विचार स्वतंत्र रखने के लिए मतभेद आवश्यक है। वैसे भी आठवीं कक्षा में अनुच्छेद 19 के विषय में हम लोगों ने पढ़ा भी है सामाजिक विज्ञान के पुस्तक में की यह हमें बोलने की स्वतंत्रता देता है। और वैसे भी कुछ विषयों में सभी के अपने अपने विचार होते हैं, जिसे साझा करना आवश्यक है। और ऐसा होने से सभी एक दूसरे का विचार को साझा कर पाएंगे, जिसके फलस्वरूप हमें किसी विषय पर निर्णय लेने में कुछ हद तक सहायता मिल सकती हैं। पर फिर मैं वही बात दोहराऊंगा मन भेद नहीं हैं हमारे बीच कुछ विषयों पर मतभेद हैं बस . . हा हा हा !

सुमित बिल्कुल सही पढ़ाकू . .हा हा हा।

नितेश तथा रमेश भी हँसने लगे। सोहन भी साथ में थोड़ा मंद मुस्कान लगाया।

सुमित तो चलो दोस्तों स्नान किया जाए।

सोहन को छोड़ सभी स्नान करने के लिए तालाब की ओर बढ़ें तभी उधर से एक बस्ती का भी नागरिक स्नान करने के लिए आ रहा था। जब वह नागरिक इनके सामने पहुंचा तो इन लोगों से पूछा कहां से आए हो - इन लोगों ने सारी जानकारी उसे उपलब्ध कराई।

सारी जानकारी लेने के बाद उस नागरिक ने हिदायत दिया कि तालाब की गहराई काफ़ी अधिक है इसलिए थोड़ा ध्यान से स्नान करना तुमलोगों।

सभी ने हां के ऊंचे स्वर में जबाव दिया बिल्कुल ध्यान रखेंगे।

उसके बाद वेलोग स्नान करने में तथा तालाब के भीतर हंसी मजाक करने में निमग्न हो गए तथा वो आदनी भी स्नान करके वहां से प्रस्थान कर गया।

सोहन उस तालाब के पास बैठकर इन लोगों को देख रहा था तथा निरंतर सावधानी बरतने को कह रहा था और खास करके नितेश को। लेकिन वेलोग इतना निमग्न हो गए थे कि उसकी बातों की अनदेखी किए जा रहे थे।

तभी एकाएक ऐसी घटना घटित हुई जिसकी इन लोगों ने कल्पना भी नहीं की थी। हंसी मजाक करते करते नितेश किनारे से थोड़ा दूर निकल गया था तथा रमेश एवं सुमित अच्छा तैराक होते हुए भी तालाब की गहराई को नापने में खुद को असमर्थ महसूस कर रहे थे। रमेश तथा सुमित तालाब के बीचों-बीच थे तथा बुरी तरह से थक चुके थे। तो वही नितेश कभी जल के ऊपर तो कभी नीचे छटपटाहट की स्थिति में था ऐसा महसूस हो रहा था कि अब इन तीनों की जिंदगी समाप्त होने वाली है। और सोहन को इसकी भनक लग गई थी। सोहन मदद के लिए चिल्लाया जा रहा था तथा आशा की कोई भी किरण नजर नहीं आ रही थी। तभी उसके नजरों के सामने कुछ केले का मंझौले पौधें दिखाई दिए। तो क्या था, वह जितना चिल्ला रहा था उससे कहीं ज़्यादा दम पौधें को उखाड़ने में लगा रहा था। और इन सबके बीच उसने तीन से चार केले के मंझौले पौधें जमीन से उखाड़ कर तालाब में फेंक भी डाली थी।

तभी अचानक कुछ चरवाहों का नजर उसके ऊपर पड़ा और तत्काल वे सब वहां इकट्ठा हो गए तथा तालाब में कूदकर उन सबों को निकाला। भगवान की दया से सोहन के द्वारा फेंके गए पौधें तत्काल उनके मित्रों के पास ही पहुंच गए थे जिसके कारण वेलोग उसके सहारे कैसे भी उस पर अधमरे लटके हुए थे। नितेश की हालत थोड़ी खराब सी हो गई थी। क्योंकि नितेश द्वारा तालाब का पानी काफी पी लिया गया था। पर चरवाहों के प्रयत्न से उसे होंश में लाया गया। रमेश तथा सुमित की भी स्थिति थोड़ी देर बाद कुछ ठीक हुई।

थोड़े अच्छे स्थिति में आने के बाद नितेश, रमेश तथा सुमित, सोहन के गले से लिपट कर फूट-फूटकर रोने लगे। सोहन भी दोस्तों संग भावनाओं में बह गया . .!

थोड़ी देर बाद चरवाहों के द्वारा सांत्वना देने तथा सोहन के द्वारा समझाने के बाद वे लोग शांत हुए।

कुछ देर बाद नितेश ने सोहन से कहा, इतनी कम उम्र में साक्षात मौत से सामना हुआ ! मुझे तो लगा था कि मैं मर ही गया हूं लेकिन आज तुम्हारे सूझबूझ तथा अटूट प्रेम ने मुझे नई जिंदगी दी है। शुक्रिया मित्र !

रमेश बिल्कुल सत्य बोल रहे हो नितेश आज तो मरते मरते बचा। यह जिंदगी सोहन की आभारी रहेगी !

सुमित हां दोस्तों उस ईश्वर से बड़ा और कोई नहीं है ! आज सोहन नहीं होता तो हम लोग काल के कपाल में समा ही गए थे। लेकिन सोहन की सूझबूझ ने हमें नई जिंदगी दी तथा मेरे मुंह पर तमाचा भी ज़ोरदार जरा प्रकृति ने, जो बेवजह मैंने सोहन का उपहास उड़ाया था। उसका परिणाम साक्षात सामने आ गई !

हम लोगों में सबसे शक्तिशाली एवं बहादुर तथा बुद्धिमान सोहन ही हैं !

सोहन मित्रों अब रुलाएंगे क्या आपलोगों मुझे ! अब ज्यादा सेंटी ना बनो (थोड़ा हँसते हुए)। मैंने बस अपना फर्ज़ निभाएं।

वहां पर मौजूद चरवाहों ने सोहन की पीठ थपथपाते हुए नितेश, रमेश तथा सुमित से कहा, सब ऊपर वाले की कृपा हैं। तुम लोग अपने मित्र सोहन के बदौलत ही सही सलामत हो। क्योंकि जिस तरह तुम्हारा मित्र सोहन केले के मंझौले पौधों को जमीन से उखाड़ रहा था। वैसे हमें तो ऐसा महसूस हुआ कि साक्षात ईश्वर इसके अंदर प्रवेश कर गए हो ! वैसे भी विपत्ति में साहसी लोगों का ईश्वर भी साथ देते हैं। और ये सब बोलते हुए चरवाहे वहाँ से जाने लगे तभी उन्हें रोककर इन लोगों ने चरवाहों को भावुकता के साथ शुक्रिया कहा !

उनलोगों ने भी कोई नहीं . . ये हमारा फर्ज था, इंसानियत के नाते . .बोलते हुए वहाँ से थोड़ा हँसते हुए चल दिए ।

सोहन, नितेश, रमेश तथा सुमित भी अपनी-अपनी साइकिल उठाकर गहरी चिंता में वहाँ से निकले क्योंकि शाम के 4:30 बज गए थे और वे लोग विद्यालय में छुट्टी होने वाले रोजाना के तय समय-सीमा से लगभग साढे तीन घंटे का विलंब कर चुके थे . .!


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