इश्क़ करते हैं और करते भी नहीं (भाग-1)
इश्क़ करते हैं और करते भी नहीं (भाग-1)
वो मिलते है हमको और मिलते भी नहीं इश्क़ करते है और करते भी नहीं
मैं रोज़ खिंच के लाता हूं उसको करीब अपने वो करीब आते है और आते ही नहीं
मुझको बेइंतेहा इश्क़ है उसको रोज़ बताता हूं
वो सुन भी लेते है और सुनते भी नहीं
लाखो नज़रो से बचाके रखना चाहता हु उसको
जो किसी से नज़रे मिल जाये हमसे मिलती ही नहीं
एक लड़कीं है जिसको इश्क़ करता एक लड़की है जिसको खोने से डर लगने लगा है अब मिझको इतना इश्क़ हो गया है उससे की उसके बिना आने वाला वक़्त सोचते हुए दिल सहम जाता है
आज से कुछ 7 महीने पहले जिस लड़की से मिला था न सोचा नहीं था आज उस लड़की के बिना एक पल भी सोचना मुश्किल हो जायेगे मेरे लिए मैं उसको इस कदर इश्क़ कर बैठूंगा मैं जनता ही नहीं था
आखिर कब और कैसे मिझको उससे इश्क़ हो गया
सोचता रहता हूं कि कब मैंने उसको अपने दिल अपनी ज़िंदगी अपनी इस दुनिया का एक बड़ा सा हिस्सा बना लिया
कब और कैसे
क्या जब पहली बार मूवी देखी थी तब
तब जब पूरी मूवी मैंने और उसने गले लगक
र देखी थी
या तब जब उसको प्रोपोज किया था
या तब जब मूवी के बाद सुबह 5 बजे तक मैं और वो आगे की ज़िंदगी कैसे बिताएँगे ये बात करते रहे तब
या तब जब उसके सात पहली बार चाय पी थी और वो चाय की जगह हमारी रोज़ मिलने वाली जगह बन गई तब
या तब हुआ होगा शायद जब उसके इश्क़ से मैने उसको इश्क़ करते देखा और सोच बेठा ये मिझको कितना प्यार करेगी तब
या तब जब मैंने उसको अपने सबसे करीब आते मह्सूस किया तब पता है जब भी मैं और वो आसे करीब होते थे न तो एक बात पक्की होती थी
हमारी लड़ाई लेकिन कहते है ना जहा इश्क़ हो वह लड़ाई होना लाजमी है
वो अक्सर कहा करती है मुझसे की ये प्यार हो या लड़ाई दोनो प्यार से ही होने चाइये और हम इस वक़्त कभी अलग नहीं होने चाइये
ये बात भी मुझको इन सात महीनों के दरमियां समझ आयी
देखो न कब और कैसे मैंने उसकी बातों को मानना शुरू कर दिया उसकी चीज़ों को समझना शुरू कर दिया
खुद को उसके सामने रखना शुरू कर दिया
To be Continued......