Krishna Raj

Drama

3  

Krishna Raj

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इंसानी हक की लड़ाई..

इंसानी हक की लड़ाई..

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अजी हम तो स्वतंत्र हैं.. और इतने आजाद हैं कि बिना पंख उड़ कर दिखा दें.. और हमारी इस आजादी को महसूस करने का हक देश का संविधान दे ही चुका है.. और हमारे मौलिक अधिकार की स्वतंत्रता तो सबसे अलग ही है.. और अभिव्यक्ति की आजादी तो हमारा कुदरती हक है.. और वो तो माँ की गोद से ही सीख लिया था.. रो रो कर सारा घर आसमान तक पहुंचा देते थे.. अजी उस वक़्त बोल नहीं सकते थे न.. और ये हक तो हम से कोई छीन ही नहीं सकता न.. बड़े हुए तो शर्तें लागू हुईं... दिल किया कोई छोटी सी फिल्म बनायी जाए.. अरे रुकिए भी, क्या आप लोग जौहर तक पहुंच गए.. अजी उनकी तरह फिल्म नहीं, बल्कि आस पड़ोस की समस्या को लेकर, भई अपनी जहां तक पहुंच, है कि नहीं.. हाँ तो हम फ़िल्म की बात कर रहे थे, तो बस लग गए काम से.. पता चला कि इसके लिए हमें होम मिनिस्ट्री से परमीशन की जरूरत पड़ेगी और वो मिल भी जाएगी.. पर उसे देखने के लिए हम स्वतंत्र हैं... पर दूसरों को दिखाना?????? अजी शर्तें लागू हैं न।

फिर सोचा चित्रकारी पर जोर आजमाइश की जाए... बस रंग और कूची लेकर बैठ गए, पर बनाये क्या??? सोचा यार ब्रश तो चलाएँ पहले... एक बार जो ब्रश कैनवास पर चला तो पेंटिंग खत्म करने के बाद ही हटा, और जो बना उसे देखकर हम खुद को हुसैन समझ बैठे, अपनी काबिलियत पर जरा भी शक नहीं हमे.. धड़ाधड़ पेंटिंग बना डाली.. सिर पैर पता नहीं चल पाया, हमारे मित्र ने देखा... ये क्या अनहोनी कर रही हो, हमने कहा माहौल को रंगीन कर रहे हैं.. हमारी दोस्त ने कहा, ओ मेरी भोली मैना अपनी कूची से किसी को निशाना बनाने से पहले जरा मोहल्ले में रहने का ख्याल करो... माइंड योर ब्रश जान मेरी... मतलब यहां भी शर्ते लागू...

अब सोचा भ्रमण किया जाए.. यायावर जो ठहरे, बस गाड़ी निकाली और उड़ने लगे.. रुकना और थमना सीखा ही नहीं.. पर लाल बत्ती ने रोक लिया.. अब जगह जगह लालबत्ती की शर्तें..

अब एक जगह बची जहां हम अपने हक... नहीं नहीं हक नहीं.. स्वतंत्रता कहना सही होगा... और बस इस जगह हमने अपनी स्वतंत्रता का परचम लहरा देने का फैसला किया.. फिर क्या था.. काग़ज़ कलम उठाई और सफेद कागज को काला करने की मुहिम में जी जान से जुड़ गए.. पर हाय रे बदकिस्मती... फिर हमारी दोस्त यमदूत की तरह प्रकट हुई.. मेरी मैना, जो लिखना है लिख.. जी भर कर लिख.. पर उन चीजों के बारे में लिख जिनके बारे में लोग नहीं जानते.. पर उन बातों के बारे में लिखते वक़्त जरा सतर्कता बरतने की जरूरत होगी जिसके बारे में सब लोग जानते हैं.. इस बारे में भूलकर भी कलम ना चलाना. नहीं तो किसी दिन प्रतिलिपि में मुझे तुम्हारे लिए ये खबर देनी पड़ेगी की "मुरुगन मर गया, माफ़ी... मर गई... तो माइंड योर पेन.. शर्ते........

सारी क्रिएटिविटी धरी की धरी रह गईं... माँ की गोद ही बेहतर थी हमारे हक की लड़ाई के लिए.. एकतरफा फैसला सुना देते थे...

अच्छा जी कहा सुना माफ़..



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