ईमानदारी प्रणम्य थी
ईमानदारी प्रणम्य थी
कल दोपहर को मैग्जीन पीडीएफ सबको भेजकर जैसे ही घड़ी पर नज़र पड़ी तो देखा कि धानी की वापसी का समय हो चुका है। धानी छुट्टियों में स्कूल में लगे समर कैंप में ट्रेनिंग ले रही थी, सुबह मां के साथ जाना और 11-30 बजे मेरे साथ वापिस लौटना तय था। मैंने आफिस का शटर गिराया और मोबाइल लोवर के जेब में डालकर धानी को लेने बाइक से उसके स्कूल चल दिया। बगल में प्रेस वाले सुरेश भैया ने पूछा तो लौटेंगे अभी?धानी को घर छोड़कर लौटूंगा। रास्तेसे में खुदाई की वजह से सड़क बहुत ही खराब हो चुकी थी। एम पी नगर की सड़कों के हाल तो और बदतर थे। इसी दस्चा दच्ची में मेरा मोबाइल जेब से खिसक गया। रामाकृष्णा कालेज के पास जेब में हाथ गया तो मोबाइल गायब था। मन में आया कि जिस रास्ते से आया था उसी रास्ते में वापिस लौटकर देखते हैं शायद मिल जाए। गिरे पैसे और मोबाइल मिल जाए तो भाग्य ही है। गाड़ी 10 की स्पीड से ले जाते हुए और नजरों के स्कैनर से सड़क स्कैन करते हुए वापस कार्यालय पहुंचा। सुरेश भैया ने पूछा जल्दी आ गए। मैं बोला कि भैया समय खराब चल रहा है मोबाइल गिर गया है। वो बोले आफिस में तो नहीं रख दिए? मैंने आफिस में भी देखा तो मोबाइल था ही नहीं। मैं वापिस चल दिया। धानी को लेने। इस, बीच सुरेश भैया ने फोन लगाया तो घंटी जा रही थी। वो बोले आप जाइए मैं कोशिश करता हूं, शायद कोई ईमानदार मिल जाए तो वापस कर दे। मैंने कहा कहाँ भैया, अब वो जमाना नहीं है, घर में दस गालियां खाना तय ही है। धानी को स्कूल से लेकर वापसी में उसे भी कहा कि एक तरफ तुम देखना एक तरफ मैं। मोबाइल मिले तो बताना। रास्ते में धानी बोली पापा आपके मोबाइल का कवर दिखा। मैंने गाड़ी घुमाकर और रोक कर देखा तो काला मोबाइल कवर था पर मेरा नहीं था। रास्ते भर यही ख्याल, गरीबी में आटा गीला, पांच साल पहले रेडमी नोट एट प्रो 14000 में उस समय लिया था। उससे समाचार भेजना फोटो खींचना, रिकार्डिंग करना और तो और पूरा बैंकिंग, कियोस्क, आनलाइन क्लासेज, मीटिंग्स वेबीनार आदि करता रहा, बहुत सी महत्वपूर्ण वीडियो क्लीपिंग्स थी। एक झटके में सब खत्म। आज के समय पर कम से कम बीस हजार रुप
ए चाहिए तब तो ऐसा मोबाइल मिलेगा। पूरा बिजनेस उसी से। तीस हजार की सैलेरी में बीस हजार मोबाइल पर कैसे खर्च करेंगे। पत्नी से मांग नहीं सकते। मुसीबतें भी बिना बुलाए आ ही जाती हैं। अब तो खाली हाथ हो गये, चार दिन में पारिवारिक शादियां अलग से उसके खर्चे भी देखना। यही सब सोचते सोचते अपने आफिस पहुंचा , तभी बगल से सुरेश भैया आवाज लगाए, सर जी आपका मोबाइल मिल गया। मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ। मेरे मुंह से निकला क्या बात कर रहे हैं सुरेश भैया।। कैसे मिला। सुरेश भैया बोले आपके जाने के बाद मैं लगातार घंटी करवाता रहा, तभी अचानक फोन उठा वहां से से किसी बुजुर्ग की आवाज आई। मैंने बोला कि मेरा मोबाइल गिर गया है, आप कहां हैं मैं आकर ले लेता हूं। सामने वाले ने कहा कि बरदाडीह रेलवे के पास पहुंच रहा हूं। कुछ खर्चा पानी दे दीजिए और मोबाइल ले ले लीजिए।
वो मारुति नगर की शुरुआत में ही सुरेश भैया के कहने पर दुकान तक आया। सुरेश भैया ने उसे 200 लिए और नाश्ता पानी कराया। उसने मोबाइल सही सलामत सुरेश भैया को दे दिया। सुरेश भैया ने जब मुझे यह घटना और उस इंसान के बारे में बताया तो मुझे की, वो बहुत ही ईमानदार था। वो हजार दो हजार भी मांग सकता था, या फिर रखे रहता बेंच देता तो आठ दस हजार आराम से मिल जाता। पर वो निहायत ही ईमानदार था। मैंने सुरेश भैया को पैसे आनलाइन भेज दिया। मैंने कहा भैया वो आदमी वाकई भगवान ही था। आज के समय पर वर्ना गिरे पैसे मोबाइल कभी नहीं मिलते। सुरेश भैया ने कहा है सकता है कि आपकी नीयत गलत नहीं रही थी तो आपके लिए किसी ने गलत नहीं किया। आपकी ईमानदारी काम आ गई। पूरे घटनाक्रम में भगवान रूप में सुरेश भैया और वो अनजान व्यक्ति जिसे मैं नहीं जानता था मेरे सामने थे। सुरेश भैया ने यदि छोटा भाई समझ कर मदद नहीं की होती तो न वो इंसान मिलता ना मोबाइल मिलता। पच्चीस हजार तो लगने ही थे। क्योंकि मेरा पूरा काम सिर्फ स्मार्टफोन से ही चलना था। मैं हृदय से इन दोनों इंसान के रुप में भगवान स्वरूप ईमानदार व्यक्तियों को प्रणाम करता हूं। । ईश्वर दोनों को स्वस्थ और प्रसन्न चित्त रखे। दोनों को कोई कष्ट न हो।