कभी तो पधारो म्हारे जेब
कभी तो पधारो म्हारे जेब
जेबकतरों से सावधान! सुनते सुनते हम असावधान से हो गए। क्योंकि अब जमाना जेबकतरों का नहीं रहा। क्योंकि अब जेब बुशर्ट और पैंट में न रखना ज्यादा फायदे में है। जब जेब नहीं तो रुपये रखने का ऐब नहीं। कुल मिलाकर बंदा बैरागी की तरह रोज कमाओ रोज खाओ। यह मानना है हमारे बजट नियंत्रक श्री श्री एक हजार आठ बजटीलाल दिल्ली वाले। जब से वो बजट की दशा देखें हैं तब से बजट की दिशा में दिशासूल सा हो गया है। बजट हमारे जेब की बजाय थैलियों में अपनी कृपा बरसा रहा है। वैसे भी खाने की रसोई गैस कुछ राहत की साँस ले रही होगी क्योंकि बड़ी मुश्किल से गिरी सम्हली है। इस कोरोना, ओमीक्रान ने बजट को कितना सुंदर बना दिया है। इसका गवाह हमारे गुजरे हुए पिछले दो साल रहे हैं। जिस प्रकार एक परिसर में कई शालाएँ लगाने से मास्टरों की संख्या अतिशेष हो जाती है, उसी तरह यूनियन बजट में रेल,वित्त वगैरह वगैरह मिला देने से संख्या तो बढ़ जाती है, उपयोग कुछ हम हो जाता है।
बजट के पहले बहुत से पूर्वानुमान लगाए जा रहे थे। हमारी जेबें चातक की भाँति बजट प्रस्तुत करने वाली माता जी को निहार रही थी। लेकिन बजट इतने साल से म्हारे जेब तक न पधार सका। हम तो मैया से अपनी अरजी ही लगाते रहे कि मैया कभी तो बजट को म्हारे जेब के आकार का बना दे। पर बजट जेब के साइज का तो न हो सका किन्तु घर के बजट का साइज जरूर बढ़ गया सुरसा के मुख की भाँति। रोजगार बेरोजगार का अनुपात कितना ज्यादा अंतर में है। युवाओं ने अब युवा नौकर बनने की बजाय युवा नेता बनना चयनित कर लिया। रही बात सपनों की तो दिन के काम, और रात के आराम में सपनों पर फिलहाल बजट का कोई कब्जा नहीं हो पाया। क्योंकि सपने फिलहाल इस बजट की पकड़ से बाहर हो चुके हैं। बजट की खासियत यह रही है कि नौकर और बड़ा नौकर बनेगा। मालिक और बड़ा मालिक बनेगा। किसान और बड़ा किसान बनने की रेस में दौड़ता रहेगा। व्यवसायी अब पैसे बैंक में क्यों रखेगा भाई, वो तो बैंक के लोन पर लदकर क्रिप्टो करेंसी में पैसा कमाएगा और सरकार को तीस प्रतिशत टैक्स देगा। बैंक उन्हीं को लोन देकर अपना लोन देने की औपचारिकता पूरा करेंगे ताकि वो भारत छोड़कर स्विस बैंकों में भारत का धन निवेश करें।
बच्चों को पढ़ाना सिर्फ आनलाइन ही रहेगा, आफलाइन भेजता यानि कि कोरोना का कहर बरपेगा। पर डिस्क्लेमर में यह भी है कि बच्चे वैसे पढ़ने के अलावा कुछ भी करें वो कोरोना फ्री रहेगे। जैसे नेता थूक लगाकर चुनाव के पर्चे बाँटने में और बिना मास्क लगाए दूसरों को मास्क लगाने में कोरोना फ्री हो जाते हैं। वैसे भी बजट में गरीबो और अमीरो की सुनवाई होती है, मध्यमवर्गीय लोग मात्र मध्य श्रेणी के हो जाते है, जिसे दोनों तरफ से शोषण झेलना ही है। वैसे बजट की आवक के पहले बाजार की सुख शांति शांतिपूर्ण हो जाती है, शेयर मार्केट धराशायी हो जाते हैं, बजट की महक से बजट पकने तक कम्पनियाँ अपना अपना फायदा देखती है। वैसे इस बार के बजट में तो ऐसी खिचड़ी पकी है कि रेल वाली मूँग और वित्त वाला चावल सबका पित्त बढ़ाने वाला है।मँहगाई वाले दिन अब और अच्छे होते जा रहे हैं। सड़कें तो हैं पर वाहन चलाने के लिए जेबें और छोटी हो गई हैं।उम्मीदें तो हैं पर उम्मीदें अपंग हो गई हैं। नौकरी पेशे वाले को कमाने में, खर्च करने में, खरीदने में, बेंचने में, बचाने में, टैक्स देने की आदत डाल लेनी है। संसद सत्रों में बजट सत्र की अंग्रेजी और अनुवाद वाली हिन्दी उसी तरह समझ के परे है जैसे कि संस्कृत भाषा के विद्वान से अंग्रेजी के अर्थ समझने की कोशिश की जाए। वो तो भला हो अखबारो और चैनलों का जिन्होने इतनी सरल अंग्रेजी और हिन्दी का सारांस आम जनता को उनकी भाषा में समझाने में सफलता प्राप्त की।
वैसे नौकरीपेशे वालों को बजट को अपने अनुरूप मानना भी उसी तरह है जैसे एक बूढा पति यह मान लेता है कि जवान खूबसूरत पत्नी उसी से प्रेम करती है, जिस प्रकार उसके बहुत से प्रेमी हो सकते हैं उसी तरह बजट की प्रेमिकाएँ बहुत सी होती है, जिसके लिए वो समर्पित होता है।बजट जैसा दिखता है वैसा होता नहीं है। जितने रुपयों में शून्यों की संख्या होती है उतनी ही दुविधाएँ भी इसी में छिपी होती हैं। सरकार जिसको घाटे की कंपनी बनाकार उद्योगपतियों को मुनाफा देती है। वो भी इसी बजट के द्वारा ही संतुष्ट की जाती है। एक सुंदर सुशील भारतीय उम्मीदों को पूरा करते बजट के आवक पर सभी को शुभकामनाएँ, इसलिए भी कि अब वो आत्मनिर्भर बनें और मालिक बनकर काम करें। क्योंकि यह ध्यान रखना चाहिये टेलर जितनी बड़ी जेब बजट के लिए बनाएगा, बजट उतना दूर होता जाएगा। बजट ध्रुवतारा है जो देखने में कितना अच्छा लगता है, पर हम पास जाने की नहीं सोच सकते हैं। इसी तरह दर्शन के प्रदर्शन से तृप्त होते रहें। हम तो अपने बजट नियंत्रक बजटीलाल दिल्ली वाले के प्रति आभारी हूँ जो किसी वाद से ग्रसित हुए बिना सलाह देता है, जो मानने योग्य बिल्कुल भी नहीं होती हैं।
