अनिल श्रीवास्तव "अनिल अयान"

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अनिल श्रीवास्तव "अनिल अयान"

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देखो ! मामा न बनाना।

देखो ! मामा न बनाना।

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देखो बात बात में मामा न बुलाया करो, मामा न बनाया करो, क्योंकि इस समय क्या.. पुराने समय से मामा लोगों ने भानजों का उद्धार नहीं किया। इतिहास गवाह रहा कि, कंस, शकुनि जैसे मामाओं ने कितना भानजों के बारे में सोचा और भानजों के भविष्य के बारे में कभी सोचा है, तो फिर आज का क्या कहा जाए। हम तो मनाते हैं कि नानी याद दिला दे कोई पर मामा की याद न दिलाए। इस समय भी कुर्सी का लालच ऐसा छाया हुआ है कि कोई भी ऐरा गैरा नत्थू खैरा मामा बनकर वोट माँगने गली कूचों में चला आता है। क्या उनको इतनी भी शर्म लिहाज नहीं है कि भानजों को अपने घर बुलाकर दान दक्षिणा की व्यवस्था करना चाहिये। परन्तु ये भीख मंगई से मामा लोग कम बाज आएंगे पता नहीं। जब भी देखो हाथ जोड़े खड़े हो जाते हैं खीस निपोर कर वोटम दानम करोति। अन्नम दानम करोति.....।आदि आदि।

आज के समय में मामा की इतनी इमेज खराब है कि लोग मामा को मामू समझकर मजाक उड़ाने लगे हैं। अर्थात जिसे यह न कहना हो कि उल्लू न बनाओ, वो सीधे कहते हैं देखो मामू न बनाना। मतलब हद है अब तो रिश्तों की कद्र तक किसी को नहीं रह गई है। ना कोई रिश्ते बनाना चाहता है, और रिश्ते बन भी गए तो निभाना नहीं चाहता। हमारे यहाँ कब कोई मामा जी सुनने को तैयार नहीं है। लोग सोचते हैं मामा जी मतलब बेमतलब की थू थू करवाना। आज कल मामा जी कुछ सुन नहीं रहे, सुन लेते हैं तो समझते नहीं, और समझ भी लिए तो काम का कुछ करते भी नहीं। हमेशा कुछ न कुछ बतंगा खड़ा करते रहते हैं। वर्तमान समय में मामा अपने भानजे भांजियों में जान नहीं छिड़कते बल्कि। जान निकालने का माद्दा रखते हैं। यह तो नजरिये का दोष हैं कि वो भूतकाल के मामा और वर्तमान काल के मामा की नजरों में भेद नहीं कर पाता और मामा जी को अतिथि देवो भवः का रूप मानकर सिर माथे बिठाता है।

इतिहास गवाह रहा है कि मामाओं ने हमेशा भानजों और भांजियों की लुटिया डुबोने का काम किया है। अपने स्वारथ की पूर्ति के लिए भाजनों की जान की बाजी लगाने से भी उन्हें गुरेज नहीं रहा। मामला जब जेब भरने और कैमरे के सामने खुद स्थापित करने का हो तो मामा जी भानजों से दो कदम आगे निकल जाते हैं, फोटो खिंचाने से लेकर टांग अड़ाने में मामा ही मामा नजर आते हैं, मामा लोगों को भानजों की बेरोजगाई से कोई लेना देना नहीं हैं, मामा लोग भांजियों की पूजा तो खूब मन से करते हैं किंतु उनकी सलामती के निर्णय लेने में सदियों लगा देते हैं। मामा के रहने से भानजे भानजियाँ इतना प्रसन्न होते हैं कि मामा जी आए, मामा जी आए... लेकिन जब वायदों के सिगूफे के अलावा मामा जी ठेंगा दिखा कर चले जाते हैं तो वही मामा जी फूटी आखिंन नहीं सुहाते हैं। वैसे मामा लोगों के रहने से ननिहाल आबाद रहता है। यह बात अलग है कि मामा ही आजकल मामू बनाने की गति को बढ़ाने में सबसे आगे हैं। इसीलिए योजनाएँ फीकी पड़ी हैं, कुर्सियाँ खाली पड़ी हैं, उम्मीदें जुगाली कर रही हैं और तो और भानजे भांजियाँ अतिथि तुम घर कब जाओगे इस उम्मीद से मामा जी के स्वागत के लिए खड़ी रहती है।



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