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अनिल श्रीवास्तव "अनिल अयान"

Drama

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अनिल श्रीवास्तव "अनिल अयान"

Drama

बांसुरी की बेदर्द तान

बांसुरी की बेदर्द तान

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जैसे से ही स्निग्धा अपने केबिन में पहुँची ,उसे अपनी टॆबल में एक खत दिखाई दिया. या यह कहें की अंतर्देशीय पत्र. जो आज कल चलन में कम हो चुका था. पत्र भेजने वाले का नाम था शिव कुमार, प्यार से सब उसे छोटू बुलाते थे जगह थी वही उसकी सबसे पसंदीदा अल्मोड़ा जहाँ पर उसकी दिल और जान बसा करती थी. आज इतने साल हो गए पुलिस की नौकरी किये हुये.उसे नाअल्मोड़ा भूला था और ना वह पहाडी माहौल,सब जैसे यादों के झरोखें में कैद उसके दिल में समाया हुआ था.बस झरोखा खोलना होता और हर याद उसके सामने आने लगती.

     पुलिस में एस.आई की परीक्षा पास करने के बाद आज उसके पास जेल विभाग ही है. उसने पहले एन.सी.सी किया.और फिर पुलिस की नौकरी की तैयारी की.अपराधियों पर उसकी विशेष रुचि थी.वह उनके जीवन और अपराध के बारे में जानना चाहती थी. इस सब के चलते उसने कई किताबें भी लिखी अपने अनुभवों को जोडकर.आज वह भोपाल के पास केंद्रीय जेल में पदस्थ है जहाँ पर म.प्र और आसपास के राज्य के वो अपराधी रखे जाते है जिनको आजीवन कारावास की सजा मिली हुई है. कई अपराधी तो आतंकी घटनाओं में शामिल होने की वजह से जेल में कैद है क्योंकि उनका केस आज अदालत की फाइलों में कैद है.इस जेल की वो अभिवावक की तरह है कई प्रमोशन आये,कई आफर आये. पर उसे इस जेल से जैसे बहुत प्रेम हो गया था. आज तीस साल की उम्र में जब उसके परिवार में कोई नहीं तो सिर्फ यह एक माध्यम है अपने को व्यस्त रखने में.

     स्निग्धा ने खत को बिना खोले अपनी पाकेट में रख लिया और काम में व्यस्त हो गयी.शाम को जब ड्यूटी से फुरसत होकर घर पहुची तो.उसे ध्यान आया कि उसे तो अभी वो खत भी पढ़ना है जोअल्मोड़ा से भेजा गया था. वह अपने बगले के बगीचे में बैठ कर चाय की चुस्की लेते हुये खत पढ़ना शुरू किया.दिनांक देख कर पता चला कि खत १५ दिन पहले भेजा गया था. और भेजने वाला छोटू था.उसका बहुत पक्का दोस्त.खत को पढने का मन ही नहीं हो रहा था.परन्तु बिना खत पढे यह भी पता नहीं चलता कि छोटू ने इतने सालों के बाद स्निग्धा को याद क्यों किया था.वह अपने दिल को सम्हालते हुये पढ़ना शुरू किया.

    

*  बडी मैडम जी,

     नमस्ते

           कैसी है आप,इधर कई सालों से आपकाअल्मोड़ा आना ही नहीं हुआ.पहले तो आप हर साल गर्मी की छुट्टियों में यहाँ आती थी. मैने इस साल बी.ए.पास कर लिया है. मै भी पुलिस में भर्ती होना चाहता हूँ.आप यदि नहीं होती मुझ जैसे पहाड़ी अनपढ को कौन इतना पढ़ाता .और पढ़ाई का महत्व बताता.आपने जो जो प्रस्ताव मेरे सामने रखा उसके लायक मै नहीं हूँ.लेकिन अब मै इस बारे में सोच सकता हूँ.समझ सकता हूँ.मुझे माफ करियेगा मैडम जी मै आपके किसी काम ना आ सका. आपने मुझसे जो कुछ माँगा वह कुछ ना दे सका मै आपको. पर मैडम जी बहुत बड़ा एहसान किया है आपने मुझपर मेरे बापू को वापिस मुझसे मिलवाकर.मेरा उनके सिवाय कोई नहीं है इस दुनिया में.बापू के कहने पर ही मैने आपको यह खत लिखने की जुर्रत की .वरना मेरी कहाँ हिम्मत थी कि आपको इंकार करने के बाद आपसे कुछ कह पाता. बापू आपको बहुत याद करता है और बहुत सा आशीर्वाद भी देता है.आप हमेंशा खुश रहें. मैडम जी एक बात कहूँ. याद तो मुझे भी बहुत आती है आपकी. कई बार याद करते करते आखें भी भर आती है. पर मेरा और आपका कोई मिलान नहीं है. मुझे हो सके तो माफी दे दीजियेगा.

                                                                                        आपका प्यारा छोटू. *


     खत बहुत बड़ा नहीं था पर दिल के तारों को हिलाकर झंकार उत्पन्न करने वाला था.जैसे किसी ने हाथ पकड़ कर अतीत के दरवाजों को खोल कर पुराने दृश्य दिखा दिया हो. स्निग्धा ने चाय खत्म करके आयी और अपनी पुरानी डायरी के पन्नों को पलट रही थी.

     उसे याद है कि जब माँ की कैंसर से मौत हुई तो पापाजी ने उसे अल्मोड़ा ताऊ जी के यहाँ दो महीने के लिये भेज दिया था. ताकि वह इस सदमें से उबर सके उस साल वह कक्षा नौंवी में थी. एकलौती बेटी और अपनी माँ को खोने का गम. ताऊ जी अल्मोड़ा के जमीदार आदमी उनकी हवेली में यूँ बहुत से नौकर चाकर थे. पर ताई जी का सबसे पसंदीदा नौकर था छोटू. पाँचवी पास करने के बाद वह पढ़ना बंद कर दिया था.उसकी रही होगी कोई मजबूरी. वह नहीं जानती थी. ताई जी ने छॊटू को उसकी देखभाल करने के लिये नियुक्त किया था. छॊटू उससे चाल पाँच साल छोटा रहा होगा. उसे ध्यान है कि एक बार खाना खाने की जिद में उसने छोटू के ऊपर खाने की थाली फेंक दी थी. और उसके माथे में गहरी चोंट लगी थी. और कुछ दिनों के बाद वो खुद छॊटू को अपने साथ लेने उसकी झोपड़ी में गई थी.

     हर साल उसका जाना होता था. गर्मी में वह छोटू को खूब पढ़ाती थी. और उसके साथ वह पहाड़ो की सैर किया करती थी. सुबह पहर और शाम पहर उसका घूमना छॊटू के साथ ही हुआ करता था. जब वह बारहवीं में थी तो उसने छोटू को इंगलिश बोलना भी सिखा दिया था. उसने पहाड़ी की ढलान में बैठे हुये अपनी दोस्ती का इजहार भी किया था. पर छॊटू की छोटी बुद्धि में यह सब समझ में नहीं आया. जब वह कालेज खत्म कर पुलिस की तैयारी करने जाने वाली थी तो उसका पंद्रह दिन के लिये अल्मोड़ा जाना हुआ था.अब तो पिता जी नहीं रहे रोड एक्सीडेंट में उनकी मौत हो गई थी.अब तो ताऊ जी ही उसका सहारा था. हवेली जाते ही उसने अपना सामान रखा और ताई जी से छॊटू के बारे में पूँछा. पता चला कि इस समय वह चौराहे में बाँसुरी बजाता है सप्ताह में एक बार आता है.स्निग्धा उसे ना पाकर बेचैन सी हो गई.वह सीधे छॊटू की झोपड़ी गयी. दादी से पता चला कि वह कही अपनी बाँसुरी लेकर गया है. इस समय हर शाम वह चौराहे में बांसुरी बजाता है और जो पैसे मिलते है उससे वह अपनी पढाई करता है और घर का खर्चा चलाता है. वह चौराहे तरफ गई तो देखी एक चबूतरे में वह ध्यान मग्न होकर बांसुरी बजाने में लीन था. कई लोग उसे अपनी हैसियत के अनुसार रुपये दिये और सैलानियों ने भी उसके फोटो और वीडियो बना कर उसे खूब सारा पैसा देगये. उसने जैसे ही देखा कि स्निग्धा उसको दूर खडे सुन रही है वह अपनी बांसुरी लेकर उसकी तरफ दौड़ गया.

      क्यों रे छॊटू इस समय कहाँ रहता है पता ही नही चलता. तू बांसुरी कब से बजाने लगा है. मुझे तो बताया ही नहीं.-स्निग्धा ने बहुत खुश होकर पूछा.

कहाँ मैडम जी इस समय धंधा मंदा है.चलिये आज मै आपको इसकी पार्टी देता हूँ.आप ही इस समय बहुत दिनों के बाद य यहा आती है. यहाँ से पास के गांव में मेला लगा है चलिये आपको घुमा कर लाता हूँ.-छोटू ने मुस्कुराते हुये उसके सामने प्रस्ताव रहा.

क्यों नहीं अब तो अपने प्यारे छोटू की मेहनत से कमाये पैसे से चाय पियूँगी.ठंड भी बढ़ रही है.-स्निग्धा ने छॊटू के गाल खींचते हुए बोली

अच्छा यह तो बता यह बांसुरी की क्या कहानी है पहले तू तो यह नहीं बजाता था और पढाई का क्या हुआ. तेरी पढ़ाई बंद हो गई क्या.

चलिये मैडम जी बताता हूँ. मैने इस साल इंटर परीक्षा पास की है. आपकी मेहनत यूँ ही बर्बाद नहीं होने दूंगा.पुलिस में भर्ती होकर अपने बापू को जरूर खोजूगा.यह बांसुरी उन्हीं की है.मै तो इसी के सहारे अपना घर चलाता हूँ.

एक मिनट क्या हुआ तुम्हारे बापू को. स्निग्धा से पूछा.

मैडम जी बहुत साल पहले उन्हें पुलिस पकड़ कर ले गई.क्योंकि पुलिसवालों को यह लग रहा था कि वो उग्रवादियों मदद कर रहे थे. हमेशा से ही वो बांसुरी बजाकर अपना घर चला रहे थे. एक शाम को वो इसी चौराहे में बांसुरी बजारहे थे. कई सैलानी आये और बापू के पास बैठ कर बांसुरी की धुन सुनने लगे. तभी पुलिस का छापा पडगया .उनके पास से हथगोले बरामद हो गये. और इसी की शंका में बापू को मारे पीटे और जेल में बंद कर दिया गया. वो गिडगिडाते रहे पर कोई सुनवाई नहीं हुई. कुछ साल पहले मैने पता किया तो पता चला कि वह किसी शहर की जेल में आतंकी होने की सजा भुगत रहें है और उसकी आंखे नम हो गई.

     स्निग्धा ने उसकी दर्दनाक दास्तां सुनकर उसको गले लगा लिया. और उसके गालों को चूम कर उसके आंसू पोछे. उसने छोटू से वादा किया कि वो पुलिस में जाकर उसके बापू को ढूढने में उसकी जरूर मदद करेगी.उसके बाद वो मेला गये.वापस लौटते समय उसने छॊटू से एक जगह रुकने के लिये कहा.

     छॊटू रुक थोड़ा मुझे कुछ कहना है.

     क्या मैडम जी बताइये

     मै अब पुलिस की तैयारी के लिये बाहर जा रही हूँ. शायद मै पुलिस में सेलेक्ट भी हो जाऊँ. यार छॊटू मै अकेली हूँ इस समय. कोई नहीं है मेरे साथ. चल ना हम दोनो शादी कर लें. देख तू भी पढ़ लिख रहा है. इंगलिश भी बोल लेता है. चल मेरे साथ तू भी पढाई के साथ पुलिस की तैयारी करना,और बाद में दोनो शादी कर लेंगें. क्या कमीं है मुझमें. हाँ मै तुझसे तीन चार साल बडी हूँ पर क्या फर्क पडता है. चल ना.क्या तू मुझसे प्यार नहीं करता.मै तुझसे दिलो जान से प्यार करती हूँ.

     पर मैडम जी मेरी दादी उनका क्या. मै भी आपको बहुत चाहता हूँ.पर यह रिस्ता मेरे समझ में नहीं आता. यदि आपके ताऊ जी को पता चला तो वो हम दोनो और मेरी दादी को कब्र में जिंदा गाड देगें. मैडम जी मै आपके लायक नहीं हूँ. रुपये पैसे में भी नहीं और दुनिया दारी में भी नहीं.

     दोनो खामोश हो गये.

     छोटू मै कल जा रही हूँ. इसके बाद शायद ही हमारी मुलाकात होगी.पर तू मुझे बहुत याद आयेगा. मै अब भी तुझसे कह रहीं हूँ चल मेरे साथ दोनो साथमें किसी और शहर मे रहेंगें. किसी को कुछ नहीं पता चलेगा.

     मैडम जी मुझे माफ कर दो. मै आपके परिवार से बेइमानी नहीं कर सकता.मै जानता हूँ आप भी सही हो. पर मै भी मजबूर हूँ.

स्निग्धा आंखों में आंसू लिये अपनी हवेली की ओर चल दी. चलने से पहले एक बार वो छॊटू को बांहो में भरकर खूब रोई थी. हवेली की तरफ जाते जाते उसने एक बार पीछे मुडकर देखा ,तब भी छॊटू अपनी भीगी पलकों से उसकी ओर हाथ हिला रहा था

 इधर पुलिस में उसका सेलेक्शन हो गया.और पहली पोस्टिंग जीस जेल में हुई. उसमें एक से एक खूँखार अपराधी थे. पर वह जब अपराधियों से मिलती थी. तो जेल में एक कोने मे बरगद के चबूतरें मे एक पहाड़ी वेशभूषा पहने एक बुजुर्ग बैठा मिलता था. उसे आज तक किसी ने लड़ते -झगड़ते और चिल्लाते नहीं देखा. इस बार के स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम के अंतिम कड़ी में हर साल की तरह उसकी बांसुरी की तान  सुनाई पडी. वह धुन जानी पहचानी थी. शायद जिस बांसुरी वाले छोटू को वह छोड़ आई थी अल्मोड़ा में उससे मिलती जुलती  तान थी. उसको छॊटू से किया अपना वादा याद आगया. अगले दिन वह उस पहाड़ी बाबा की फाइल से उसका केस जानने की कोशिश की. तब पता चला कि वो छोटू के बापू ही है. फिर क्या उसने सिफारिस,सजा माफी, और अच्छे व्यवहार के दम पे उसकी रिहाई के लिये आवेदन किया ,और उसे इस काम में सफलता भी मिल गई. २६ जनवरी को जब पहाड़ी बाबा रिहा हुये तो स्निग्धा उन्हें अपने घर ले आई और उन्हे कुछ रुपये ,नये कपड़े दिलवाए,साथ में एक चिट्ठी छोटू के लिये दी और उन्हेंअल्मोड़ा के लिये अलविदा किया. और यह भी कहा कि जब वो अल्मोड़ा पहुचें तो छोटू से कहें कि वो मुझे पत्र लिख कर सूचित करे.

     आज काफी समय गुजर चुका था.स्निग्धा ने अपनी यादों पर वक्त और व्यस्तता की धूल जमा कर ली थी. आज उसे यह लगता है कि सबको अपना सब कुछ मिल गया सिर्फ वो ही अकेली की अकेली रह गई एक उम्मीद के साथ. कि कभी छॊटू पुलिस में आयेगा और फिर से उसकी वीरान दुनिया आबाद हो जायेगी. पर इस खत ने थोड़ा ही सही पर कुछ धूल साफ तो की.वादे कुछ प्यार के लिये पूरे किये गये.और वादे कुछ मजबूरियों के लिये पूरे नहीं हो सके.जैसे बाँसुरी की तान  भी किसी ना किसी वादे को याद दिलाने में मन को कभी बहलाती है या कभी रुलाती है.यही उम्मीद उसे आज भी एक तान  को सुनने के लिये बेकरार करती है और वह धुन थी प्यार की धुन.


    



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