हवा का हंगामा ~और मुरली भूलक्कड़
हवा का हंगामा ~और मुरली भूलक्कड़
हवा का हंगामा ~और मुरली भूलक्कड़
कॉलेज में एक ही नाम था जो हँसी की वजह बनता — प्रोफ़ेसर मुरली, उर्फ़ भूलक्कड़ बॉस।
उनका स्कूटर कॉलेज की पहचान था — पुराना, खड़खड़ाता हुआ, और हमेशा हवा की कमी से परेशान। लेकिन मुरली जी को उसकी हालत से ज़्यादा अपनी याददाश्त की चिंता थी... जो अक्सर छुट्टी पर रहती थी।
हवा निकली, बात बनी
एक दिन एक शरारती छात्र ने मस्ती में मुरली जी के स्कूटर की हवा निकाल दी।
अगले दिन मुरली जी क्लास में आए, चेहरा गंभीर था।
बोले — "आज मैं एक अपराधी को पकड़ने वाला हूँ!"
छात्रों की धड़कनें तेज़ हो गईं।
उन्होंने उस छात्र को स्टेज पर बुलाया।
वो बेचारा काँपता हुआ आया — "अब तो सस्पेंशन पक्का!"
मुरली जी झुके, उसके कान में बोले —
"डर मत... मैं भूल गया हूँ कि तूने मेरी स्कूटर की हवा निकाली थी!"
छात्र हक्का-बक्का — "तो फिर बुलाया क्यों?"
मुरली जी बोले —
"याद दिलाने के लिए... ताकि मैं फिर से भूल सकूँ!"
क्लास का कमाल
एक बार उन्होंने बोर्ड पर लिखा — "Welcome to Organic Chemistry!"
छात्र बोले — "सर, ये तो फिज़िक्स की क्लास है!"
मुरली जी मुस्कुराए — "अरे हाँ! मैं तो खुद के टाइमटेबल से ज़्यादा छात्रों के चेहरे याद रखता हूँ!"
कॉफी और कन्फ्यूजन
स्टाफ रूम में रोज़ उनका मग गुम हो जाता।
एक दिन बोले — "किसने मेरी कॉफी पी ली?"
चपरासी बोला — "सर, आप ही तो दो बार पी चुके हैं!"
मुरली जी बोले — "वाह! आज तो कॉफी भी भूलने की बीमारी से ग्रस्त हो गई!"
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निष्कर्ष:
मुरली जी की दुनिया में लॉजिक नहीं, लाफ्टर चलता है। उनकी भूलने की आदत कॉलेज को रोज़ एक नई कहानी देती है — कभी हवा की, कभी हँसी की। 😄
