हत्यारे
हत्यारे
वे दो थे। मिल कर चोरी करते, डाके डालते, नोच खसोट करते। कई बरस से इकटठे थे। एक दूसरे के सुख दुख के साथी। कोई भी दूसरे के खिलाफ मुँह न खोलता।
अंधेरा गहरा रहा था। दोनों धंधे पर इक्कट्ठे निकले हुए थे। तभी किसी बच्चे के सुबकने की आवाज़ आई। पास जा कर देखा, 9-10 साल की लड़की थी। दूर दूर तक कोई न था। लड़की शायद सुनसान जगह भटक कर आ गयी थी। इन्हें देखते ही उसकी जान में जान आयी। बोली," अंकल, मुझे घर जाना है। छोड़ आओ प्लीज"।
राकू ने आंखों आंखों में लखन से बात की। फिर लखन के कान में फुसफुसाया," पहले मज़ा फिर हत्या।" किसी को पता न चलेगा।
लखन को बच्ची के चेहरे में कोमल दिखाई देने लगी। उसके जिगर का टुकड़ा, उसकी अपनी बेटी कोमल। वह धीरे से बोला," ये अपने धंधे का उसूल ना है राकू।" चल छोड़।
राकू दृढ़ता से बोला, उसूल तो बदलते रहते हैं। मौके का फायदा उठाते हैं। बोल पहले तू या मैं ?
लखन ने राकू की आंखों में छाई हैवानियत को देखा। वह आवाज़ में बदलाव ला कर बोला," तू मज़ा ले दोस्त, हत्या वाला काम मैं करूँगा।"
राकू बच्ची का मुंह दबाते हुये, उसे उठा कर कोने की तरफ चल दिया।
लखन ने पीछे से पूरा दम लगा कर राकू पर वार किया। वह कटे वृक्ष सा ज़मीन पर गिर गया।
हत्यारा लखन बेहोश बच्ची को गोद मे उठा कर धीरे धीरे पुलिस स्टेशन की तरफ बढ़ने लगा।
