हत्यारे की सज़ा
हत्यारे की सज़ा
अनीशा की बॉडी मार्चूरी से अभी अभी लाई गई। अन्तिम संस्कार की व्यवस्था की जा रही थी। डॉक्टर अजीत सेन की आँखे, बिल्कुल शुष्क थी। मशीन की तरह यंत्र वत सारे क्रिया के कर्म सम्पन्न किये जा रहे थे।
शाम के समय बालकनी मे चुपचाप बैठे शून्य की ओर देख रहे थे। ये तुमने क्या किया मेरी बच्ची, एक दोस्त ने प्रेम अस्वीकार कर दिया। तुम्हें धोखा दिया और तुमने आत्म हत्या कर ली। बस इतना ही मूल्य है जीवन का। अपने पापा का जरा भी ख्याल नहीं किया। इतना बड़ा अस्पताल तुम्हें सौंपने जा रहा था। तुम्हारी गायनी में रुचि नहीं थी पर मेरी ही ज़िद पर गायनाकोलोजीस्ट बनी। मैं तुम्हें अपनी गद्दी सौंपना चाहता था।
शहर का सबसे बड़ा अस्पताल"शकुन्तला स्त्री रोग चिकित्सालय" नामचीन अस्पताल और विशालकाय हमारा घर, जिसमें तीन प्राणी मैं,पत्नी शकुन, बेटी अनीशा पर नाम और पैसे का सुरसा सा मुख भरने का नाम ही नहीं लेता था और की चाह में किस रास्ते पर मैं चल पड़ा। कितना रोका था शकुन ने पर मैं यही कहता कि मैं अपनी बीवी और बिटिया को दुनिया के सारे सुख देना चाहता हूँ।
कहाँ भोग पायी शकुन मेरे दिये सुख,उसे राजरोग ने घेर लिया। विदा ले ली दुनिया से उसने और अब अनीशा ने खुद को गोली मार ली। उसके शरीर से निकला खून उनके कपड़े और हाथों में लग गया था। अचानक डॉक्टर अजीत ने अपनी हथेलिया देखी। वो चीख पड़े, दोनो हथेलियां खून से सनी लगी। उन्हें लगाये खून अनिशा का नहींं, उन तमाम कन्या भ्रूण का है जिसे उन्होंने दुनिया देखने ही नहीं दी।
"मै तो उन लोगों के परिवार की स्वीकृति पर लिंग परीक्षण करता हूँ और उनके कहने पर ही कन्या भ्रूण-----"
"क्यों करते है आप। पैसो की खातिर न। क्या करेंगे हम इतने पैसो का,आखिर एक ही तो बेटी है हमारी"शकुन ने गुस्से में कहा।
"मेरी बेटी विदेश जाकर मैडिकल साइंस पढ़ेगी। उसके लिये अपने अस्पताल से अच्छा अस्पताल बनवाऊँगा। शहर की सबसे बड़ी डॉक्टर बनेगी। मैं उसे एक सुनहरा भविष्य देना चाहता हूँ।" मैंने शान से कहा।
"इतनी भ्रुण कन्याओं की हत्या करके, उनके खून से अपना हाथ रंग कर बेटी को सुनहरा भविष्य दोगे। "शकुन क्रोध और घृणा से कांपने लगी थी।
अजीत को अपनी हथेलियों पर उन सभी अजन्मी बच्चियों का खून अनिशा के खून मे मिलता लगा। उसे लगा खून से सनी हथेलियां चीख चीख कर कह रही हों- हत्यारे की यही सज़ा है।