Mamta Singh Devaa

Comedy Inspirational

4.5  

Mamta Singh Devaa

Comedy Inspirational

हर शाम दोस्तों के नाम

हर शाम दोस्तों के नाम

4 mins
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आओ एक बार फिर से.....

वही पुराने होकर

फिर से अपने इस बनारस में ,

तुम्हारे बिना सूना है हाॅस्टल का वो कमरा

और ना भूलने वाला फैकल्टी का वो झगड़ा ,

रिक्शेवाले आज भी बैठे हैं हमारे इंतज़ार में

लंका से लंका तक की सवारी के करार में ,

1990 नवंबर का महीना कड़ाके की ठंड पड़ रही थी...आज कॉलेज से सात दोस्तों में से तीन माला , सरिता और मैं थोड़ा पहले आ गईं बड़ी ज़ोरों की भूख लगी थी लंच भी नही खाया था....मैस का नाश्ता तो इस भूख में " ऊँट के मुँह में जीरे " का काम करता दिनभर की थकान के बाद रूम में कुछ बनाने की हिम्मत तीनों में से किसी की नही हो रही थी , सरिता ने बड़े उत्साहित हो कर कहा चलो दोसा खाने चलते हैं " नेकी और पूछ पूछ " मैं और माला भी झट तैयार हो गईं...हॉस्टल के बाहर आ रिक्शा किया पास में ही रेस्टोरेंट था पहुँच गईं पाँच मिनट में " पेट में चूहे जी भर कर दौड़ लगा रहे थे " आर्डर करने के लिये मेनू कार्ड खोला तो देखा की " Cheese pizza " लिखा हुआ है तीनों की ख़ुशी का ठिकाना नही रहा हम तीनों एकसाथ बोल पड़ीं " Pizzzzaa " वो भी बनारस में ? हम ज़ोर से हँस पड़ीं , तीन दोसा और एक पिज़्ज़ा का आर्डर हुआ टाईम से तीन दोसे आ गये...भूख से मरी जा रही हम तीनों खाने पर टूट पड़ीं उस अदने से दोसे की भला क्या औक़ात झट से भूखे पेट में समा गया...माला ने वेटर को आवाज़ लगाई और बोली पिज़्ज़ा कहाँ है ? बस अभी लाया मैडम ! पाँच मिनट दस मिनट पंद्रह मिनट " सब्र का बाँध टूट गया " मैने ने वेटर से कहा रहने दो हम जा रहे हैं वेटर गिड़गिड़ाने लगा मैडम बस ला रहे हैं कह कर अंदर गया और हाथ में एक प्लेट लेकर आया जिसमें पिज़्ज़ा बेस के उपर पनीर जीरे से छौंका हुआ ढेर सारा गरम मसाला डला हुआ जिसके कारण पनीर का रंग काला हो गया था , उसको देखते ही हम तीनों आगबबूला हो दोसे का पेमेंट कर बाहर निकल आईं....रिक्शे पर बैठते ही हम तीनों ने ज़ोर का ठहाका लगाया और बोल पड़ीं " उन चारों को भी भेजते हैं ।

रूम में पहुँचते ही हम तीनों ने देखा चारों बेसब्री से इंतज़ार कर रहीं थीं उनकी तरफ़ से सवाल दागा गया " हम लोगों को छोड़ कर कहाँ गई थी तुम तीनों ? तीनों अपना फैलाया हुआ रायता समेटने में लग गईं....अरे यार इतनी ज़बरदस्त भूख लगी थी और तुम सब कॉलेज से आई भी नही थी हमने सोचा पैक करा कर ले चलते हैं लेकिन हम पैक नही करा सकते थे...क्यों क्यों नही पैक करा सकती थी तुम लोग ? निशा ने ग़ुस्से से पूछा , पैक कराते तो सॉगी हो जाता माला ने जवाब दिया...ऐसा क्या था ? अब रश्मि बोल पड़ी तभी सरिता ने बात में ट्विस्ट डाला सोचो - सोचो...ओहो यहाँ " भूख से बेदम हुये जा रहे हैं " और तुम लोगों को पहेली सूझ रही है अब बात संभालने की बारी मेरी थी चारों से बोली पता है हम Pizza खा कर आ रहे हैं...Pizza हमारे बनारस में ? चारों की आँखें बड़ी हो गईं , बहुत tasty था तुम लोग जल्दी जाओ सरिता ने उसमें और चाशनी लपेटी...जल्दी जाओ से क्या मतलब है तुम लोग नही चलोगे क्या रेनू और लीना दोनों बोल पड़ीं....अभी तो वहीं से खा कर आ रहे हैं तुम लोग जाओ please माला ने समझाया...ठीक है इस बार छोड़ दे रहे हैं रश्मि ने कहा और चारों चल दीं...

उनके जाते ही हम तीनों बिस्तर पर गिर कर हँसते हुये बोलीं " अब आयेगा मज़ा और चारों के वापस लौटने का इंतज़ार करने लगीं...घंटे भर बाद चारों दरवाज़े पर खड़ी बिस्तर पर बैठी हम तीनों को घूर रहीं थीं आठ आँखों में सवाल था " कमीनों ! क्यों किया ऐसा ? सामने से तीनों एक सुर में बोल पड़ीं " सिर्फ़ हम तीनों ही क्यों बेवक़ूफ़ बनते हम तो सात हैं ना ? " इतना सुनना था की सातों की सातों एकसाथ ज़ोर ज़ोर से ठठा कर हँस पड़ीं और वहीं बैठ Pizza की " बखिया उधेड़ने " में मगन हो गईं ।

आज ना खाने में वो स्वाद है

ना बातों में वो राज़ है

ना ही हमारे आस - पास हमारे जैसा कोई बन्दा है

उस वक्त लगता था कि बिछड़ेगें तो मर जायेगें

पर आज बिछड़ कर भी ज़िन्दा हैं ,

आखों के सामने सब तस्वीरें स्थिर हैं

पता नही क्यों ये आगे बढती ही नहीं

इतने सालों बाद भी हमारी दोस्ती किसी से

हाय ! हैलो !...के आगे बढ़ती ही नहीं !


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