Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

3  

Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

हर नारी बने राधा -तो नारी की मिटे बाधा

हर नारी बने राधा -तो नारी की मिटे बाधा

8 mins
395


साहित्य समाज का दर्पण होता है जिसमें समकालीन समाज की दशा प्रतिबिंबित होती है। सिनेमा के माध्यम से तत्कालीन समय का सजीव चित्रण प्रस्तुत किया जाता है। कुछ फिल्में कालजयी होती हैं। इन फिल्मों की पटकथा, कलाकारों का अभिनय लंबे समय तक समाज के लोगों के दिलों पर ऐसी गहरी अमिट छाप छोड़ जाती हैं । इनकी शिक्षा बहुत ही लंबे समय तक लोगों के दिल और दिमाग पर अपना प्रभाव स्थापित किए रहती हैं ।लंबे समय तक समाज में एक सीमा तक होने वाले उतार-चढ़ाव से ये अछूती रहती हैं ।समय की कसौटी पर भी ये लम्बे समय पर अपनी प्रेरणादायी पैमाने पर खरी उतरती है।एक लम्बी अवधि के बाद भी समाज के लोग इन्हें बड़े चाव के साथ देखकर इन से प्रेरणा लेकर बड़े ही हर्ष और गौरव का अनुभव करते हैं ।


नरगिस ऐसी ही काल जयी फिल्मों की एक अविस्मरणीय अभिनेत्री हैं जिन्होंने 1957 में उस समय के मशहूर निर्देशक महबूब खान के निर्देशन में बनी फिल्म 'मदर इंडिया' में 'राधा'की भूमिका अदा की थी और राधा के किरदार को अमर कर दिया ।आज भी राधा का किरदार उसी शान और शौकत के साथ लोगों के बीच में नारी संघर्ष की गाथा गा रहा है। जिस प्रकार ब्रिटिश साहित्यकार विलियम शेक्सपियर के नाटकों में उनकी नायिकाएं नायकों से कहीं ज्यादा सशक्त नजर आती हैं ठीक उसी प्रकार फिल्म मदर इंडिया की राधा का प्रभाव पूरे समय तक फिल्म मे नज़र आता है ।नरगिस को इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार भी मिला था। फिल्म में राधा की भूमिका एक गरीब किसान परिवार की महिला के रूप में लेकिन नैतिकता के दृष्टिकोण से बिल्कुल ही उचित और सशक्त महिला के रूप में प्रस्तुत की गई थी। गरीबी से पीड़ित राधा संघर्षों से जूझती है और उचित समय पर उचित निर्णय लेती है।यह फिल्म 1940 में बनी फिल्म औरत का रीमेक है जिसे 1958 में तीसरी सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।


मेरी श्रीमती जी को यह फिल्म बहुत ही पसंद है। विगत वर्षों में अक्सर उनके साथ  बच्चों सहित पूरे परिवार ने इस फिल्म को अनेक बार देखा है लेकिन जब भी हम इसे देखते हैं तो यह फिल्म हमें एक नई अनुभूति और नई प्रेरणा देती है। नारी के सम्मान को होने वाली क्षति के बारे में विचारमग्न कर देती है। जब अबोध बच्चियों के साथ भी दुष्कर्म की घटनाओं की खबरें आती हैं हमारी श्रीमती जी का मन बहुत ही अधिक व्यथित हो जाता है।वे प्राचीनकाल की सीता की अग्निपरीक्षा फिर गर्भावस्था की स्थिति में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान कहे जाने वाले पुरुष की पत्नी होने के बावजूद अनेकानेक कष्ट सहकर भी समाज को असंतुष्ट पाती हैं। पाॅंच महारथियों की पत्नी होने पर भी इंद्रप्रस्थ की महारानी द्रौपदी भरी राजसभा में अपने वरिष्ठ परिजनों के बीच बलात निर्वस्त्र किए जाने की घृणित कोशिश का शिकार होती हैं। आज भी आर्यों की पुण्यभूमि भारत पर संविधान की सुरक्षा के बावजूद नारी बहशी दरिंदों की कुत्सित निगाहों ,विचारों और कुकृत्यों  का शिकार होती है।इन कष्टदायक  स्थितियों के बीच दुर्गा के रूप को याद करते हुए वे कहती हैं कि इस दुनिया का सीधा-साधा नियम ही है कि  खुद मरने पर ही स्वर्ग मिलता है इसलिए हर प्राणी को अपनी अस्मिता को बचाने के लिए स्वयं को सशक्त करना होगा। नारी त्याग और ममता की मूर्ति है इसलिए वह प्यार और स्नेह तो बरसाती ही है लेकिन जरूरत पड़ने पर वह संहारक रूप धारण करके अपने सम्मान की रक्षा और पापियों को दंडित भी करती है । शक्तियां अर्जित करके उन शक्तियों का सही अर्थ में प्रयोग करना आज की नारी का कर्तव्य है। नारी यदि अबला बनकर रहती है तो उसे अनेक कष्ट भोगने ही होंगे इसलिए इन कष्टों से मुक्ति के लिए उसे सबला बनना ही होगा।  प्रकृति का नियम है शक्तिशाली को सभी प्रणाम करते हैं। शक्ति अर्जित करके उसे अपने सम्मान की रक्षा करते हुए समाज को भी सही दिशा दिखाते हुए उसकसे सशक्त बनाना होगा।


निर्भया कांड के समय श्रीमती जी उस समय अत्यधिक विचलित हो उठीं जब निर्भया का जीवन से जंग हार जाने का समाचार आया।वे अपने रूदन पर नियंत्रण न रख सकीं। रोते-रोते बोलीं-" सरकार को ऐसा कानून बनाना चाहिए कि ऐसे लोगों पर अदालती कार्यवाही में ज्यादा समय बर्बाद न करके शीघ्र अति शीघ्र मृत्युदंड की सजा दी जानी चाहिए और इनकी फांसी किसी बंद परिसर में नहीं बल्कि चौराहे पर होनी चाहिए। मीडिया के माध्यम से इसे देश में ही नहीं बल्कि सारे संसार में प्रसारित किया जाना चाहिए ताकि लोगों के मन में ऐसे घिनौने अपराध के प्रति एक ऐसा संदेश जाए कि ऐसा अपराध करना तो दूर ऐसे अपराध की कल्पना से ही उनकी आत्मा कांप उठे।"


मैंने समझाया-" लोगों के मन में समाज के हर व्यक्ति के प्रति प्रेम -भाव विशेषकर महिलाओं के प्रति विशिष्ट सम्मान और आदर की भावना होनी चाहिए। लोग देश के संविधान को और संविधान में वर्णित नियमों को हृदयंगम करें और इन नियमों को पूरी ईमानदारी के साथ उनका पालन करें। बलात्कार करने वाला युवक भी हमारे समाज का एक हिस्सा है। ऐसी दुर्घटनाएं विकृत मानसिकता का प्रतीक होती हैं। बच्चों का पालन पोषण करते समय हर मां-बाप अपने पुत्र को हर नारी का सम्मान करने की शिक्षा दे। उनका पालन पोषण ऐसा हो कि वह अपने घर की मां और बहन की दृष्टि से ही समाज की दूसरी बेटियों और नारियों को देखें। कानून में भी परिवर्तन होना चाहिए लेकिन कानून भी कानून मानने वालों के लिए ही होता है। कुछ लोग धन पद बल के मद में चूर रहते हैं।समाज के कुछ तथाकथित ठेकेदार जिन्हें हम वकील कहते हैं। बहुत से मामलों में उनकी भी बड़ी अजीब सी भूमिका रहती है। जिस प्रकार प्राचीन धर्म ग्रंथों की कुछ कमजोरियों का लाभ उठाकर तथाकथित प्रबुद्ध समाज के ठेकेदारों ने निर्बल लोगों का शोषण किया आज भी संविधान नाम के ग्रंथ की कुछ बातों को अलग ढंग से प्रस्तुत करके दोषियों को बचाया जाता है और निरपराधों को फंसाया जाता है ।आज के समाज में आवश्यकता है कि आमजन शिक्षा और ज्ञान से युक्त होकर इन ग्रंथों का दुरुपयोग होने से रोके।जब निर्भया के साथ दुष्कर्म की घटना हुई थी उसके बाद  जो जन आक्रोश दिखाई दिया उससे तो यही लगता था कि इन कुकर्मियों के बचाव के लिए कोई भी बुद्धिजीवी वकील आगे नहीं आएगा। कोई भी वकील केस नहीं लड़ेगा लेकिन यह धारणा भी निर्मूल साबित हुई। वकील ने अपने अध्ययन,विचार मंथन और विशेष जानकारी के माध्यम से इन दुष्कर्मियों को बचाने की अंतिम समय तक चेष्टा की और अंतिम समय तक इनकी फांसी को रुकवाने का प्रयास किया। यह दुर्घटना निकृष्ट से निकृष्टतम की सूची में आती थी इसलिए वह गुनहगार फांसी के फंदे से बच नहीं पाए। हां ,उनकी फांसी की सजा को कई बार कानूनी दांवपेचों की मदद से कुछ समय के लिए टाल देने में सफलता अवश्य मिली।


राधा का पति खेत में काम करते समय दुर्घटना का शिकार होने के कारण अपने दोनों हाथ खो देता है। अपनी इस असहाय स्थिति में वह परिवार पर बोझ नहीं बनना चाहता है और वह घर से चुपके से कहीं चला जाता है। राधा उसे बहुत ढूंढती है लेकिन उसका कोई पता नहीं चलता तब राधा अपने दो बच्चों का इस प्रकार पालन पोषण करती है कि वह समाज में साहूकारों के द्वारा बनाई गई लूट -खसोट और धोखा देने की अव्यवस्था का विरोध कर सकें।


आज भी समाज में वहशी भेड़िए हैं जो लोगों की और विशेष तौर ग़रीबी और करते के दलदल में फंसी महिलाओं की कमजोरी और सीधे पन का नाजायज फायदा उठाते हैं उनकी गरीबी मजबूरी और लाचारी का फायदा उठाकर व धोखा देकर उन पर शासन करना चाहते हैं।उनकी मजबूरी का फायदा उठा कर यौन शोषण जैसी अपराधिक और कुत्सित मानसिकता अपनाते हुए अत्याचार करते हैं।दुख की बात तो यह है कि एक लंबे समय से नारी शोषित और पीड़ित रही है। आजादी के पहले से ही समाज सुधारकों ने नारी की स्थिति को सुधारने के लिए अनेक प्रयास किए। आजादी के बाद अब लोकतंत्र अर्थात जनता का अपना राज्य है तब भी नारी के सशक्तीकरण की बात केवल नारों में, बहस-वार्तालापों में सेमिनारों में और बड़ी-बड़ी सभाओं में केवल चर्चा में ही सिमट कर रह गई है। समाज के तथाकथित ठेकेदार राजनेता केवल चुनाव के समय ऐसे मुद्दों को जोर-शोर से उठाते हैं और चुनाव जीतने के बाद वे भूल जाते हैं क्योंकि उन्हें समस्या के समाधान से नहीं वोटों से मतलब होता है फिर वे शायद यह भी सोचते हैं कि अगर समस्या का समाधान कर दिया तो अगली बार वोट मांगने के लिए उन्हें एक नया मुद्दा तलाशना पड़ेगा ।समाज के लोगों की भी याददाश्त बहुत ही कमजोर होती है। समाज के लोग इस पर लंबे समय तक ध्यान नहीं दे पाते। इतने वर्षों के बाद भी आए दिन समाज में कन्या भ्रूण हत्या, दहेज के लिए नारी का उत्पीड़न ,यौन शोषण, बलात्कार जैसी मानवता को शर्मसार कर देने अमानवीय दुर्घटनाएं मानव मन को झकझोरती हैं। जब कोई निर्भया कांड जैसी नारी शोषण के चरमोत्कर्ष शिखर को छू लेने वाली भयावह दुर्घटना होती है तो समाज में इन वहशी दरिंदों के विरुद्ध कार्रवाई करने एक भूचाल सा आता है। लोग घरों से निकलते हैं । शांति जुलूस, कैण्डल मार्च निकाले जाते हैं। कुछ समय तक मुद्रा गर्माया रहता है लेकिन धीरे-धीरे फिर यह शांत हो जाता है। लोग ऐसी घटनाओं को धीरे- धीरे भूल जाते हैं और कुछ समयांतराल पर समाज में ऐसी घटनाएं आए दिन सुनने को मिलती रहती हैं।


कई बार नारी का ममतामयी मन विचलित हो जाता है ।मदर इंडिया फिल्म में बाढ़ के समय सब कुछ बह जाने पर जब राधा का छोटा बेटा बिरजू भूख से व्याकुल हो रहा होता है उसी समय गांव का साहूकार सुक्खी लाला उन्हें खाने के लिए चने देना चाहता है। राधा उसे चने लेने से रोकती है ।राधा का बेटा भूख से व्याकुल होकर उससे लेता है लेकिन मां के कहने पर उन्हें फेंक दिया जाते है। जब बेटा भूख से व्याकुल होकर मूर्छित होने लगता है सब राधा सुक्खी लाला के पास अपने बेटे की बुरी हालत को ध्यान रखते हुए मदद मांगने पहुंचती है जहां सुक्खी लाला उसे मदद करने को सहर्ष तैयार होता है लेकिन इसके बदले वह उसकी आबरू से खेलना चाहता है। राधा का मां की ममता वाला मन एक बार विचलित होने लगता है लेकिन उस समय नारी की इज्जत मां की ममता पर भारी पड़ती है और वह लाला के यहां से आ जाती है। किसी ना किसी प्रकार अपने बच्चे का पेट भरने का प्रयास करती है। धीरे-धीरे अपने बच्चों की मदद से खेतों में काम करती है और अपना जीवन यापन शुरू कर देती है।


समय बीतता है ।राधा का छोटा बेटा बिरजू एक आ्वारा और बदमाश किस्म का लड़का बनता है ।फिल्म के अंतिम दृश्य में राधा का बेटा बिरजू जब गांव की लड़की को अगवा करके भाग रहा होता है ।राधा उसको चेतावनी देती है लेकिन बिरजू को लगता है कि वह उसकी मां है और मां का मां का ममतामयी हृदय उसको विशिष्ट नुकसान नहीं पहुंचाएगा। चेतावनी देने के बाद जब बिरजू नहीं रुकता तो नारी के नारी के सम्मान को मां की ममता से अधिक महत्व देती है। राधा अपने बेटे को गोली मार देती है ।नारी सम्मान को प्राथमिकता देने की इस भावना के लिए ही गांव में नहर के उद्घाटन के लिए राधा को चुना जाता है राधा नहर का उद्घाटन करती है जो इस फिल्म का शुरुआती और अंतिम दृश्य होता है।


जब हम लोग इस फिल्म को देख चुके होते हैं तो हर बार श्रीमती जी जो कहती हैं उनके कहने का सारांश यही होता है कि आज समाज में नारी ही नारी की दुश्मन है। एक नारी के शोषण ,उसके उत्पीड़न में भी अलग-अलग रूप में कुछ महिलाओं का भी सहयोग मिलता है। अगर हर नारी सभी नारियों के सम्मान के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हो। प्रत्येक नारी के मन में नारी के सम्मान की भावना हो । नारी के सम्मान की रक्षा के लिए नारी के सम्मान को क्षति पहुंचाने वाले उनका शोषण करने वालों के प्रति दूसरे सभी रिश्ते नातों को भुला दिया जाना चाहिए क्योंकि इज्जत और सम्मान से बढ़कर कोई चीज इस दुनिया में नहीं है। नारी के सम्मान की रक्षा के लिए उन समस्त कारकों को मिटाना होगा जो नारी के सम्मान को तार-तार करते हैं। तब ही जाकर नारी का सशक्तिकरण होगा आदि के सम्मान की रक्षा हो सकेगी और तब ही वह कथन सार्थक होगा कि जहां नारियों की पूजा होती है वही देवता निवास करते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational