हम्मीर देव
हम्मीर देव
आज हम बात करेंगे राव हम्मीर देव चौहान की जो रणथम्भौर के शासक थे। इनके पिता का नाम जैत्रसिंह था। ये इतिहास में हठी हम्मीर के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। हम्मीर देव रणथम्भौर के चौहाण वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं महत्वपूर्ण शासक थे। इन्होने अपने बाहुबल से विशाल साम्राज्य स्थापित किया था।
हम्मीर का जन्म सात जुलाई, 1272 को हुआ था। बचपन से ही हम्मीर वीर थे। उनकी वीरता से प्रभावित होकर राजा जैत्रसिंह ने अपने जीवनकाल में ही 16 दिसम्बर, 1282 को उनका राज्याभिषेक कर दिया।
राव हम्मीर ने अपने जीवन में 17 युद्ध लड़े, जिसमें से 16 में उन्हें सफलता मिली।
हम्मीर के नेतृत्व में रणथम्भौर के चौहानों की शक्ति काफी सुदृढ़ थी और राजस्थान के विस्तृत भूभाग पर उनका शासन स्थापित था। अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली के निकट चौहानों की बढ़ती हुई शक्ति को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था, इसलिए युद्ध होना अवश्यंभावी था।
अलाउद्दीन की सेना ने सर्वप्रथम छाणगढ़ पर आक्रमण किया और आसानी से अधिकार कर लिया। यह समाचार सुनकर हम्मीर ने रणथम्भौर से सेना भेजी। चौहान सेना ने मुगल सैनिकों को परास्त कर दिया। मुगल सेना पराजित होकर भाग गई, चौहानों ने उनका लूटा हुआ धन व अस्त्र-शस्त्र लूट लिए।
तत्पश्चात् मुगल सेना रणथम्भौर की तरफ बढ़ने लगी। तुर्की सेना नायकों ने हम्मीर देव के पास सूचना भिजवायी, कि हमें हमारे विद्रोहियों को सौंप दो, जिनको आपने शरण दे रखी है। हमारी सेना वापिस दिल्ली लौट जाएगी। लेकिन हम्मीर अपने वचन पर दृढ़ थे। मुगल सेना का घेरा बहुत दिनों तक चलता रहा। लेकिन उनका रणथम्भौर पर अधिकार नहीं हो सका।
अलाउद्दीन ने राव हम्मीर के पास दोबारा दूत भेजा की हमें विद्रोही सैनिकों को सौंप दो, हमारी सेना वापस दिल्ली लौट जाएगी। हम्मीर हठ पूर्वक अपने वचन पर दृढ़ रहे। बहुत दिनों तक मुगल सेना का घेरा चलता रहा और चौहान सेना मुकाबला करती रही। अलाउद्दीन को रणथम्भीर पर अधिकार करना मुश्किल लग रहा था। उसने छल-कपट का सहारा लिया। हम्मीर के पास संधि का प्रस्ताव भेजा जिसको पाकर हम्मीर ने अपने आदमी सुल्तान के पास भेजे। उन आदमियों में एक सुर्जन कोठ्यारी (रसद आदि की व्यवस्था करने वाला) व कुछ सेना नायक थे। अलाउद्दीन ने उनको लोभ लालच देकर अपनी तरफ मिलाने का प्रयास किया। इनमें से गुप्त रूप से कुछ लोग सुल्तान की तरफ हो गए।
दुर्ग का धेरा बहुत दिनों से चल रहा था, जिससे दूर्ग में रसद आदि की कमी हो गई। दुर्ग वालों ने अब अन्तिम निर्णायक युद्ध का विचार किया। राजपूतों ने केशरिया वस्त्र धारण करके शाका किया।
राजपूत सेना ने दुर्ग के दरवाज़े खोल दिए। भीषण युद्ध हुआ। दोनों पक्षों में आमने-सामने का युद्ध था। संख्या बल में राजपूत बहुत कम थे, दूसरी ओर सुल्तान की कई गुणा बड़ी सेना, जिनके पास पर्याप्त युद्ध सामग्री एवं रसद थी। फिर भी राजपूतों की सेना विजयी रही।
राणा ने खिलजी को तीन माह तक जेल में बंद रखा और उससे अजमेर, रणथम्भौर, नागौर शुआ और शिवपुर को मुक्त कराके और एक सौ हाथी व पचास लाख रूपये लेकर जेल से छोड़ा।