Aditi Jain

Romance

4.5  

Aditi Jain

Romance

"हमेशा-हमेशा" - 4

"हमेशा-हमेशा" - 4

6 mins
355


शिमला की ख़ूबसूरती और बदली आबोहवा के साथ, पूजा की दोस्ती ने शमा को कुछ ही हफ़्तों में बेहतर कर दिया। उसके कॉन्फिडेंस और मानसिक स्वास्थ्य का ख़याल मानव बखूबी रख ही रहा था। पूजा के साथ साथ मानव से भी बहुत घुल मिल गयी शमा। अब वो डॉक्टर कम दोस्त ज़्यादा था। मानव के समझाने पर सिर्फ़ किताबों में खोयी न रहकर, इन दिनों वो शाम को वॉक पर भी जाने लगी। गर्मियों के दिन थे पर पहाड़ पर वो भी दिलकश लगते थे। पहली बार गर्मी में लखनऊ वाली तल्ख़ी नहीं थी। शमा सुबह बीएड कॉलेज जाने लगी और दोपहर में अग्रवाल साहब के स्कूल के डे-बोर्डिंग में छोटे बच्चों को पढ़ाने लगी।

इसी तरह एक साल बीत गया और उसकी पढ़ाई पूरी हो गयी। नई शिमला के एक नामी स्कूल में उसे जॉब मिल गयी और उसने कैंपस अकोमोडेशन ले लिया। अग्रवाल साहब और पूजा ने बहुत रोकना चाहा पर अपने पैरों पर खड़े होने की शमा की इच्छा का सम्मान करते हुए मान गये। अब शमा सिर्फ़ वीकेंड्स पर पूजा के घर आती-जाती थी। बाकी वक़्त स्कूल, किताबों और शिमला की ख़ूबसूरती को आँखों में भर लेने में गुज़र जाता था। धीरे-धीरे पांच साल गुज़र गये। अम्मी अब्बू मिलने आते और हर बार घर बसा लेने की मिन्नतें करते, पर न शमा ने हाँ कहा और न लौटकर लखनऊ ही गयी।

यूँ ही एक संडे की शाम टहलते हुए शमा अपने अपार्टमेंट से बाहर आई और वॉक करते-करते थोड़ा दूर निकल गयी। सुनसान सड़क पर ख़ुद को लगभग अकेली पा कर घर जाने का ख़याल मन में आया ही था कि तभी एक लाल सेल्टोस उसके काफ़ी पास आकर रुकी। घबराई शमा दो कदम पीछे हट गयी। तभी विंडस्क्रीन को डाउन करते हुए मुस्कुराता हुआ मानव उसे दिखाई दिया।

"काफ़ी लम्बी लम्बी सैर हो रही है आजकल!"

"क्या मानव! तुमने तो मुझे डरा ही दिया था। ऐसे कोई करता है क्या?"

"हाँ बिलकुल, किडनैपर्स करते हैं न! और अगर वो होते तो तुम अब तक गाडी के अंदर होतीं! फिर क्या होता तुम्हारा शमा?"

"वाकई यहां किडनेपिंग वगैरह बहुत होती है क्या?" शमा ने डरते हुए पुछा।

"हाँ यहाँ लोग यही तो काम करते हैं!" शमा के चेहरे पर आये डर का लुत्फ़ उठाते हुए मानव ठहाका मारकर हँस दिया। "अरे ऐसा आमतौर पर नहीं होता पर हो तो सकता है न, कभी भी, कहीं भी, किसी के भी साथ! यूँ ऐसी सुनसान सड़क पर अकेले टहलना थोड़ा अनसेफ़ हो सकता है इसीलिए कहा।"

शमा अचकचा गयी। मानव कब सीरियस होता है और कब मज़ाक कर रहा होता है, ये उसे कभी समझ नहीं आ पाया।

मानव ने मुस्कुराते हुए गाड़ी को अनलॉक किया और शमा को बैठने का इशारा किया। शमा ने फ़ौरन उसके ऑर्डर को फॉलो किया। सीट बेल्ट लगाते वक़्त अचानक शमा की नज़र डैशबोर्ड पर पड़ी, उसकी पसंदीदा चॉकलेट्स का डिब्बा रखा हुआ था। 

मानव ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा "हां भई, गाड़ी लेकर सरप्राइज़ दो, मैडम के लिए चॉकलेट्स खरीदो फिर भी बधाई मांगनी पड़ती है। ख़ुद तो कुछ मिलने से रहा तुमसे।"

शमा ने फ़ौरन चारों ओर नज़र दौड़ाई और बोली, "उफ़्फ़! नयी गाड़ी ली है जनाब ने! तभी मुझे कुछ अलग-अलग लगा। तुमने इतना डरा दिया कि ध्यान ही नहीं रहा। मुबारक हो डॉक्टर साहब!"

"अब ऐसी सूखी-सूखी मुबारकबाद से काम नहीं चलेगा, कॉफ़ी पिलानी पड़ेगी।"

"ओके, डन! पर मॉल रोड की भीड़भाड़ में नहीं।" शमा ने कहा।

“ठीक है मोहतरमा। वैसे भी आपसे एक ख़ास बात भी करनी है और उसके लिए बहुत ज़्यादा भीड़भाड़ वाली जगह ठीक नहीं होगी।" मानव ने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा।

थोड़ी ही देर में दोनों समर हिल के एक फ़ेमस रेस्ट्रां में बैठे गर्म कॉफ़ी के साथ बातों में मशगूल थे।

"तो फिर आगे की लाइफ़ के बारे में क्या सोचा है?" मानव ने कॉफ़ी की सिप लेते हुए पूछा।

"कुछ ख़ास नहीं। सोच रही हूँ कि चाइल्ड साइकोलॉजी में मास्टर्स कर लूँ। बच्चों का मन समझने में आसानी होगी।"

"सीधे-सीधे क्यों नहीं बोलतीं कि मेरे पेट पर लात मारने का इरादा है?" मानव ने झूठा गुस्सा दिखते हुए कहा।

"अरे तुम तो क्लीनिकल साइकोलॉजी के जाने-माने एक्सपर्ट हो। मैं तो सिर्फ़ आजकल के माहौल में बच्चों को स्ट्रेस में देखकर सोच रही थी। पेरेंट्स वर्किंग होते हैं, उनकी अपनी मजबूरियां हैं। बच्चों को वक़्त नहीं मिलता पेरेंट्स से और......"

"अरे मैडम, बस करो! आप तो हर बात दिल पर ले लेती हो!" शमा को सीरियस देख कर मानव ने तुरंत उसकी बात काटी।

कुछ देर की ख़ामोशी के बाद मानव ने कुछ बे-सिरपैर की बातें कीं और शमा को हँसा दिया। हँसती हुयी शमा को मानव टकटकी लगाकर देखता रहा और शमा की हँसी धीरे-धीरे एक मीठी मुस्कराहट में बदल गयी।

"अब घूरना बंद करो, नज़र लग जाएगी मुझे। अम्मी भी नहीं हैं जो सदका देकर नज़र उतार दें।" शमा ने मानव को छेड़ा।

"ओए, तुम न कोई मिस लखनऊ नहीं हो, वो तो तुम्हारा चेहरा थोड़ा-थोड़ा जेसिका अल्बा जैसा है तो ताड़ लेते हैं कभी-कभी।"

"अच्छा एक शहर की ब्यूटी क्वीन नहीं हूँ, कोई बात नहीं। पर इंटरनेशनल लेवल पर फ़ेमस एक्ट्रेस जैसी दिखती तो हूँ, छोटी बात तो नहीं है।"

"तुमको नाम तक नहीं पता था हॉलीवुड एक्टर्स का। मैंने बताया तुमको।"

"हाँ तो? चेहरा तो मेरा है न? न बताते तुम, कभी कोई और बता देता। वैसे बताने का शुक्रिया।" शमा ने मानव को देखते हुए कहा और दोनों की सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी ये देख कर कि आस-पास की टेबल्स पर बैठे लोग उन्हें ही देख रहे थे। आखिर ऊँची आवाज़ में बच्चों की तरह लड़ जो रहे थे दोनों। मानव ने जल्दी से वॉलेट निकालकर एक पांच सौ का नोट टेबल पर रखा और शमा को लेकर कैफ़े से बाहर निकल गया। दोनों चुपचाप सीधे गाड़ी में बैठे और गाड़ी शमा के घर की ओर दौड़ने लगी। एक मोड़ पार करने के बाद दोनों की नज़रें मिलीं और हंसी का पटाखा फूट गया। ये अक्सर होता था। अपनी बचकानी लड़ाई में दोनों वक़्त और जगह भूल जाया करते थे।

शमा को अचानक याद आया कि वो ख़ास बात तो रह ही गयी जो वो करने आया था! उसने फ़ौरन मानव से पूछा ।

मानव ने सीरियस होते हुए कहा कि बात बहुत ख़ास है, यूँ चलते-फिरते नहीं कह सकता। अगले हफ़्ते लंच पर डिटेल में बताएगा। शमा जानना चाहती थी पर कुछ बोली नहीं। अपना अपार्टमेंट आने पर, वो मानव को बाय बोलकर गाड़ी से उतरी और सीधी लिफ़्ट की ओर चल दी। चलते-चलते शमा अचानक पलटी और मानव को देखकर मुस्कुरा दी। उसे पता था कि जब तक वो अपने अपार्टमेंट तक नहीं पहुँच जाती, मानव वहीँ खड़ा रहेगा।

मानव उसके नज़रों से ओझल हो जाने तक उसे देखता रहा। कुछ ही देर में शमा के फ्लैट की लाइट्स रौशन हुईं और उसने बॉलकनी में आकर हाथ हिलाया। मानव ने उसे वेव किया और मुस्कुराता हुआ, घर की ओर चल पड़ा।

क्रमशः


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