Aditi Jain

Romance Tragedy

4.5  

Aditi Jain

Romance Tragedy

हमेशा-हमेशा - 6

हमेशा-हमेशा - 6

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270


उधर अपने अपार्टमेंट में पहुँचकर शमा ने दरवाज़ा बंद किया और सोफ़े पर बेजान सी लुढ़क गयी। उसे खुद पर गुस्सा भी था और दया भी आ रही थी। आज अपनी ही फीलिंग्स समझ नहीं आ रहीं थीं। वो बढ़कर अकरम को गले लगाना चाहती थी पर जब वो आगे बढ़ा तो उसे रोक दिया।

पिछले पांच सालों में स्कूल और बच्चे ही शमा की ज़िन्दगी थे बाकी सब भुला चुकी थी। पूजा और मानव की दोस्ती का सहारा था कि वो फिर से हंसने मुस्कुराने लगी थी वरना उसने खुद को काम में जैसे झोंक सा दिया था। कभी कभी अकरम की याद आती थी। पर वो खुद को किसी और तरफ़ बिज़ी कर दिया करती थी। गुज़रे सालों में एक अकरम के प्यार की यादें ही तो थीं जो उसकी वीरान ज़िन्दगी में हौसला अफ़ज़ाई किया करती थीं मगर फिर भी कभी अकरम से मिलने की उसने कोशिश नहीं की थी।

लेकिन आज अचानक ग्रीन वैली में उसे देख कर शमा की धड़कनों की रफ़्तार ठीक वैसे ही बढ़ी थी जैसे सात साल पहले लखनऊ में पहली बार अकरम से टकराने पर बढ़ी थीं। बारहवीं में पूजा के टॉप करने पर सेलिब्रेशन के लिए दोनों फिल्म देखने गयी थीं। सहारागंज से "मर्दानी" देखकर निकली दोनों अपनी ही दुनिया में थीं कि जोश जोश में शमा अकरम से जा भिड़ी। ग़लती अपनी थी तो क्या कहतीं, बस दोनों खिसक लीं। फिर एक दिन अचानक चौक में मुलाकात हुयी तो दोनों ने जाकर माज़रत की और फिर दोस्ती हो गयी और वो एक मुलाक़ात जल्द ही मुलाक़ातों के सिलसिले में बदल गयी थी।

अकरम दिल्ली IIT में पढाई कर रहा था तो उसे वापस जाना ही था पर फ़ोन पर खूब बातें होती थीं और गहरी दोस्ती ने दोनों के दिलों में घर बना लिया था। ये तो शमा जब फ़ाइनल ईयर में कुछ दिनों के लिए शादी में अलीगढ़ गयी और दोनों दस दिन बात नहीं कर पाए, तब दोनों को अहसास हुआ था कि बात दोस्ती से आगे बढ़ चुकी थी। समझते दोनों थे पर इज़हार किसी ने नहीं किया था।

आज ही के दिन यानि 16 अगस्त को शमा का ग्रेजुएशन का रिजल्ट आया था और अकरम ने वो कहा था जो शमा भी कहना चाहती थी। पर उसके बाद ज़िन्दगी बहुत तेज़ चली। इतना तेज़ कि शमा के लिए उसकी रफ़्तार से कदम मिलाना मुश्किल हो गया था। भागते भागते हांफकर गिर पड़ी थी। अब जाकर थोड़ा दम में दम आया ही था कि आज फिर दिल की धड़कनो से छेड़छाड़ हो गयी।

शमा की ठहरे पानी सी शांत ज़िन्दगी में अकरम ने दोबारा हलचल मचा दी थी। जज़्बात पूरे उफान पर थे। शमा समझ ही नहीं पा रही थी कि क्या करे। पिछली बार माँ बाप के कहने पर उसने ख़ामोशी से अपना दिल खुद ही तोड़ लिया था। अब बहुत मुश्किल से उसके टुकड़ों को जोड़ा था और एक बार फिर अपने दिल को टुकड़ों में बिखेर देने की हिम्मत शमा नहीं जुटा सकती थी।

सोच में डूबी शमा की सोच की श्रंखला फोन की रिंगटोन की आवाज़ से टूटी। अम्मी का फोन था। उन्होंने बताया कि शमा के निकाह के बाद अकरम दो साल तक लखनऊ वापस नहीं आया था। अपने बड़े भाई के निकाह में पांच साल पहले जब वो आया तो उसे शमा के तलाक और उसके साथ हुई बदसलूकी के बारे में पता चला। उसने तभी अपनी बड़ी बहन और बहनोई को सब कुछ बताकर मना लिया था लेकिन कुरैशी साहब के खानदान की हैसियत, रसूख और शमा की उस वक़्त नाज़ुक हालत के बारे में जान कर उन लोगों की हिम्मत नहीं हुई बात करने की। और फिर अग्रवाल साहब शमा को शिमला ले आये तो उन लोगों की रही सही उम्मीद भी ख़त्म हो गयी ये सोच कर कि शायद वहीं शमा सेटल हो गयी होगी उन्होंने किसी और से कुछ नहीं कहा। शादी के बाद वो लोग वापस टोरंटो लौट गये और अकरम मुंबई चला गया।

अकरम के घरवाले उसकी शादी करना चाह रहे थे इसलिए उसने फिर से लखनऊ आना छोड़ दिया। जब अग्रवाल साहब के समझने पर कुरैशी साहब ने अकरम के अब्बू से बात की तब जाकर सारा माजरा सबके सामने साफ़ हुआ। अकरम को उसकी बहन ने टोरंटो स्पांसर कर लिया था। कमाल बात ये थी कि लॉटरी के ज़रिए उसे PR स्टेटस भी मिल गया था। अकरम की कंपनी की सिस्टर कंसर्न में इंटरव्यू देकर वो टोरंटो में ही जॉब के लिए सलेक्ट भी हो गया था। वो सिर्फ़ फ्लैट और सामान का सेटलमेंट करने के लिए मुंबई में रुका था। अगले हफ़्ते उसकी फ्लाइट थी कैनेडा की।

यानि उसकी लाइफ़ में अचानक सब बहुत अच्छा हो गया था। जैसी किसी ने जादू की छड़ी घुमा दी हो!

आज सब कुछ दांव पर लगाकर वो आया था सिर्फ़ शमा के लिए।

तभी पूजा ने उसे फोन किया था और उसने अपनी टिकट्स एक्सटेंड करवा ली थीं और सीधा चला आया शिमला।

अम्मी ने शमा को बतया कि आने से पहले अकरम ने उनसे और शमा के अब्बू से इजाज़त ली और कहा कि अगर वो हाँ कहेंगे तभी वो शमा से मिलेगा क्योंकि फिर से उसे टूटता हुआ नहीं देख पाएगा।

अब्बू और अपने ग़लत फैसले की माफ़ी मांग कर अम्मी ने शमा को बताया कि अकरम ने सब से कहा था कि वो पिछली बार की तरह अपनी मंज़िल तक पहुँचकर उसे नहीं खोना चाहता इसीलिए सब की हामी चाहता है और अब सब राज़ी हैं। और अम्मी ने फ़ोन रख दिया।

- क्रमशः 


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