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Chandra prabha Kumar

Inspirational Thriller

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Chandra prabha Kumar

Inspirational Thriller

हमारे बग़ीचे में मोर

हमारे बग़ीचे में मोर

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    मेरी बेटी सुबह देर से उठकर आती थी, रात में देर तक लैपटॉप पर काम करती थी। या फिर काम कम होता तो मूवी देखती थी। लेकिन देर से सोती थी तो उठती भी देरी से थी। 

   मैंने उससे कहा कि बचपन में तुम जल्दी उठकर बैठ जाती थी और कहती थी कि चिड़िया बोलने लगी सुबह हो गई। तुम्हारी वजह से मुझे भी जल्दी उठना पड़ता था। अब क्या हो गया कि देर तक सोती रहती हो। सुबह का इतना अच्छा नज़ारा मिस कर देती हो। इससे तुम्हारा प्राणायाम करना और व्यायाम करना भी छूट गया। अब देर तक सोकर उठती हो, हड़बड़ाकर तैयार होकर ऑफ़िस भागती हो,नाश्ता तक भी ठीक से नहीं करती। 

     पर बात बनी नहीं। फिर एक दिन क्या देखती हूँ कि उसने सुबह सुबह आकर मेरे से कहा, 'देखो बाहर हमारे लॉन में मोर हैं'। मैंने खिड़की से झांककर देखा सचमुच दो मोर थे। वे लॉन में घूम रहे थे, लॉन में रखे मिट्टी के पात्र से पानी पी रहे थे। आराम से लॉन में टहल रहे थे, कोई ग़मले के पीछे छिप जाता फिर बाहर निकल आता। मोर की लंबी नीली गर्दन और भूरा शरीर था उनके अभी लंबे लंबे सुन्दर पंख नहीं आये थे और छोटे बच्चे जान पड़ते थे। उनमें एक थोड़ा बड़ा और एक थोड़ा छोटा लग रहा था। 

    मैंने बेटी से कहा कि यह मोर नहीं मोरनी हैं। नर मोर के सुन्दर पंख होते हैं मादा के नहीं। ख़ैर जो भी कुछ था वो हमारे आकर्षण के केन्द्र बन गए। बेटी सुबह उठने से बहुत ख़ुश थी, अच्छा नज़ारा देखने को मिल गया। 

    मोर के फ़ोटो लिये। सुबह की मंद समीर अच्छी लग रही थी। चिड़ियों की सुमधुर चहचहाहट सुनाई दे रही थी। एक गुरसल भी नीचे उतार आयी और मोरों के साथ घूमने लगी। 

   फिर मेरी बेटी अपने पिता जी को भी मोर देखने के लिये उठा लाई जो सुबह की लंबी नींद खींचते थे और उठकर नहीं देते थे। मोर देखने वे भी चले आए और बरामदे की कुर्सी पर जम गए। 

    मुझे याद आया कि बचपन के संस्कार कितने मज़बूत होते हैं, कब उभर आएँगे पता नहीं चलता। बचपन में बिटिया बॉटनिकल गार्डन में घूमती थी। उसे वहॉं के जानवर और चिड़ियों से प्यार था। किस हिरण ने बच्चा दिया है, किस लंगूर के पैर में चोट लगी है यह सब उसे मालूम रहता था। और वह जब वहाँ के वैट डॉक्टर से बात करती थी तो उसके मन में भी वैट डॉक्टर बनने का सपना जगता था। बस उसे वेट डॉक्टर बनने नहीं दिया गया, उसकी मज़ाक उड़ाकर कि घोड़ा डॉक्टर बनेगी। तो उसने नाराज़ होकर फिर उधर ध्यान नहीं दिया। 

    'आज सुबह तुम कैसे उठ गई 'मैंने उससे पूछा। वो बोली कि 'आज सुबह पाँच बजे ही ऑंख खुल गई। लगा एकदम नींद पूरी हो गई, बड़ी ताजगी लग रही थी। इसलिए उठकर बैठ गई। उठकर छत पर चली गई। वहाँ प्राणायाम किया, व्यायाम किया। सुबह सुबह का ख़ुशनुमा मौसम था, चांदना हो गया था, हल्की हल्की हवा बह रही थी। तभी नीचे लॉन में मोर घूमते देखे, तो उठकर आकर आपको यह बताने आयी। '

    मोर देखने के बहाने हमारा भी रूटीन चेंज हुआ और एक ख़ुशनुमा वातावरण बना। रूटीन से हटकर कुछ करें तो नवीनता बनी रहती है। 

    हमारे जीवन में पशु पक्षियों को कितना महत्व है। यदि सुबह पक्षियों का कलरव न होता तो आसमान कितना सूना दिखाई देता। चिड़ियों का मधुर कूजन पार्श्व संगीत का काम करता है। और यदि मोर भी आ जाएं तो एकदम सौंदर्य सुषमा से वातावरण दैदीप्यमान हो जाता है।


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