हमारा सम्मान स्वयं हमारे हाथ में होता है
हमारा सम्मान स्वयं हमारे हाथ में होता है
"नंदिनी, बहू के घरवालों ने तो तुम्हें मूर्ख बना दिया। हीरे दिखाकर काँच पकड़ा दिए। शादी से पहले तो कैसे कह रहे थे कि हमारी एकलौती बेटी है। जो भी है ;इसी का है। ", खादी सिल्क की साड़ी उलट-पुलट कर देख रही उर्मिला ने अपनी भाभी नंदिनी से कहा।
"क्यों दीदी ? बहू के घरवालों ने तो कोई कमी नहीं रखी। सब कुछ हमारी उम्मीद से बहुत बढ़कर ही किया है। ", उर्मिला की भाभी ने विनम्रता से कहा।
"कहाँ बढ़िया किया है ? देखो मुझे कैसी फीकी सी साड़ी दी है।एक ही तो बुआ सास हूँ ;कुछ ढंग की सी साड़ी दे देती। ", उर्मिला ने हमेशा की तरह नाक भौं सिकोड़कर कहा।
नंदिनी की ननद उर्मिला अपने दोनों भाइयों से बड़ी थी ;लेकिन कहीं से भी उसमें बड़प्पन नहीं था। उर्मिला के पति की कमाई अच्छी थी और कोई सामाजिक जिम्मेदारी नहीं थी। नंदिनी जब से शादी होकर आयी थी ;तभी से उर्मिला के इस प्रभुत्ववादी और घमंडी रवैये को देख ही नहीं रही थी ;बल्कि हँसते -हँसते सहन भी कर रही थी।
उर्मिला, नंदिनी के हर काम में मीनमेख निकाल देती थी। उर्मिला जितने दिन भी पीहर में रहती ;अपने मुँह मियाँ मिठ्ठू बनी रहती। नंदिनी, उर्मिला के लिए कुछ भी विशेष बनाती तो उर्मिला कभी भी उसकी पाककला की प्रशंसा नहीं करती। उर्मिला हमेशा यही कहती कि, "नंदिनी, तुम्हें एक बार मुझसे पूछ लेना चाहिए था । तुमने मसाले थोड़े कम डाले हैं । "
उर्मिला के हमेशा अपनी ही तारीफ करते जाने के रवैए को समझकर, नंदिनी ने अपने व्यवहार में थोड़ा परिवर्तन कर लियाअब जब भी उर्मिला अपने पीहर आती;नंदिनी कुछ भी पकाने से पहले उर्मिला से पूछती जाती, "दीदी, क्या पकाना है ?कैसे पकाना है? कितना पकाना है?"
उर्मिला घर में कोई भी नयी चीज़ देखती ;नंदिनी से उसकी कीमत पूछती और फिर कहती कि, "नंदिनी, तुम्हें तो दुकानदार ने लूट लिया;तुम्हें तो खरीददारी भी नहीं करनी आती। " उर्मिला उन कुछ गिने -चुने व्यक्तियों में थी ;जिन्हें अपनी स्वयं की प्रशंसा के अलावा कोई और काम नहीं होता है। ऐसे लोग स्वयं को श्रेष्ठ दिखलाने के लिए, दूसरों को नीचा दिखाने से एक सेकंड के लिए भी नहीं चुकते।
नंदिनी ने तो अपने सहनशील स्वभाव के साथ उर्मिला को जैसे -तैसे निभा लिया था और निभा भी रही थी;लेकिन नंदिनी की देवरानी यानि की उर्मिला की छोटी भाभी उसे प्रत्युत्तर देने में ज़रा भी देर नहीं करती थी। उर्मिला जब कभी नंदिनी के सामने छोटी भाभी की बुराई करती तो नंदिनी मन ही मन मुस्काती कि, "चलो, शेर को सवा शेर तो मिला। "
आज फिर उर्मिला अपनी आदत के अनुसार एक के बाद एक अपनी भतीजा बहू के घर से आये उपहारों में मीनमेख निकालने लगी।
"अरे बुआ, यह खादी सिल्क की साड़ी है। भाभी क घरवालों ने सोचा होगा कि आप भी हैंडलूम को पसंद करती होंगी। अब वे बेचारे भूल गए कि हैंडलूम पहनना हर किसी के बस का नहीं होता। हीरे की असली परख जौहरी को ही होती है। ", अपनी बुआ की आदत से वाकिफ नंदिनी की बेटी शिवानी ने कहा।
"तू ज्यादा मत बोल शिवानी। अब यह घर मेरे जैसे तेरा भी पीहर ही है। अपनी भाभी की अभी से इतनी तरफदारी करेगी तो भविष्य में पछ्तायेगी। ", उर्मिला ने खिसियाते हुआ।
"पछतावा होगा या नहीं ;वह दूर की बात है। किसी ने आपको प्यार से इतने उपहार दिए हैं और उससे भी बढ़कर अपना सबसे कीमती तोहफा अपन लाडली बेटी आपको दी है तो उसको है बात पर नीचा क्यों दिखाना। ", शिवानी ने कहा।
"लो भई ;मैं कहाँ किसी को नीचा दिखा रही हूँ। नंदिनी ने ही कहा कि आओ दीदी बहू के घर से आये तोहफे देख लो। मैं तो बस देख ही तो रही हूँ। ", उर्मिला ने कहा।
"बस कर उर्मि ;अब तो बदल जा। तू बुआ सास हो गयी है ;बुआ सास। वो तो नंदिनी बहू ने तुझे निभा लिया;नहीं तो आज अपने घर में पड़ी पीहर को याद कर रही होती। पहले बह तुझे समझाया है। ऐसे ही करती रही तो भाई -भाभी तो दूर तुझे पीहर का कुत्ता भी नहीं पूछेगा। ", दरवाज़े से अंदर आती हुई नंदिनी की सास ने कहा।
"अम्मा तुम भी। अपन पोती अउ बहू की ही तरफदारी कर रही हो। ", उर्मिला ने कहा।
"बेटा, अब क्या करूँ ?तुझे सीधी बात समझ नहीं आती। हमारा सम्मान स्वयं हमारे हाथ में होता है। अब तेरे भी बेटे -बेटी की शादी होगी। तूने अपने आपको नहीं बदला तो तुझे बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। मेरी बात पर गौर करना। अब चलो, बहू क मुँह दिखाई की भी तैयारी करनी है। ", अम्मा ने बात क वहीं ख़त्म करने की गरज से कहा।