हम दो दीये

हम दो दीये

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अरे शाम होने को आयी चाय-वाय बनेगी की नहीं, उन दोनों के आने का समय.हो गया, चलो छाया कुछ बढ़िया सा बना लो चाय तो जब वह लोग आ जाये।

तभी बनना सुनो चाय में अदरक डाल देना मौसम बदल रहा है, चलो जरा साडी भी बदल हो।

आज सोचते हैं नया कुछ ट्राई करो ना वह आसमानी वाली पोशाक जो अरूण ले कर आया था, छाया चुपचाप सुन कर ना सुनने का भान करते हुये उठी और तैयार होने लगी। उसको मालूम हैं कि माँ उसको खुश करने का अभिनय करती हैं और छाया माँ को खुश करने का अभिनय करती है।

कितना खुशहाल हैं था यह परिवार चार लोगों का, जब से आयी पता ही ना चला कि मायका और ससुराल कैसा होता किसी घर की बेटी थी यहाँ पर भी बेटी बन कर रही पर हाय रे शिव आप किसके लिये कया करते हो आप ही जाने, पिता फौजी था तो बेटा भी फौजी बना देश के लिये शहीद हो गया। पिता भी इस चोट को ना सह सका और चला गया बेटे के पास।

दो जनाजे निकले उस परिवार से पूरा शहर रो पड़ा तब से जैसे माँ बदल गयी बस छाया और छाया दिन भर पढ़ाई-लिखाई, घूमना-फिराना, चुन-चुन कर कपड़े लाना और मजबूत बनाने की पुरजोर कोशिश माँ से अकेले मिलो तो कहती हैं, मैं अपनी बेटी को जीवन जिलाना चाहती हूँ और छाया से मिलो तो कहती है कि माँ ने बहुत कुछ खोया। हमारे अलावा है कि उनके जीवन कहने का मतलब एक दूसरे के जीवन के पूरक, एक दूसरे के जीवन के झिलमिलाते हुये दीये इसी लिये हमने नाम दिया।


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