हम अपना ख्याल क्यों नहीं रखते
हम अपना ख्याल क्यों नहीं रखते
आज सुबह से ही प्रबोध के फ़ोन कॉल के बाद मेरा मन बहुत ही विचलित था, मेरी सबसे अच्छी दोस्त हम सबको छोड़कर एक दूसरी दुनिया के सफर पर निकल गयी थी, कोरोना के कारण मैं उसके अंतिम दर्शन तक नहीं कर सकती थी।
उसकी मृत्यु की खबर सुनकर मैं विचलित थी और मैंने क्रोधित होते हुए प्रबोध को कहा भी कि, "मीनाक्षी की मृत्यु नहीं हुई, तुम सबने मिलकर उसकी हत्या कर दी। खुद बीमार होते हुए भी वह तुम्हारी सेवा करती रही और आज मर गयी। "
प्रबोध मेरी सबसे अच्छी दोस्त मीनाक्षी का छोटा बेटा था, मीनाक्षी की बड़ी बेटी प्रज्ञा की शादी हो चुकी थी। कोरोना काल में जहाँ किसी को वर्क फ्रॉम होम मिला हुआ है, किसी को ऐज फैक्टर के कारण छुट्टी मिली हुई है, वहीं हम महिलाओं के कार्य में वृद्धि हो गयी है।
मीनाक्षी के 25 वर्षीय पुत्र प्रबोध को वर्क फ्रॉम होम मिला हुआ था और पति भी सेवानिवृत्ति का आनंद उठा रहे थे। वहीं कोरोना के कारण मीनाक्षी को तो घरेलू सहायिका की सुविधा मिलना भी बंद हो गया था।
कोरोना से बचने के लिए, हर गृहिणी की तरह मीनाक्षी भी अपने परिवार के खाने -पीने पर विशेष ध्यान दे रही थी। काढ़ा, फल, सलाद, अंकुरित मूँग आदि सभी नियमित रूप से खिला रही थी। इसी बीच उसके पति को कोरोना हुआ, उन्हें घर में ही आइसोलेट कर दिया गया था। मीनाक्षी अपने पति की पूरी देखभाल कर रही थी, बार -बार उनका ऑक्सीजन लेवल चेक करती, टेम्परेचर चेक करती, लगातार डॉक्टर से ऑनलाइन कंसल्टेशन ले रही थी, पति को स्टीम देने के लिए बार -बार पानी गर्म करती, कभी उन्हें जूस बनाकर देती, कभी काढ़ा बनाकर देती, वह दिन -रात उनकी देखभाल में लगी हुई थी। इसी बीच प्रबोध में भी कोरोना के कुछ सिम्पटम्स उभरे। मीनाक्षी ने अपने पति और बेटे की देखरेख में दिन -रात एक कर दिए थे।
मीनाक्षी ने अपने आपको पूरी तरीके से भुला दिया था। उसके बेटे और पति ने भी उस पर ध्यान नहीं दिया। लॉक डाउन के कारण प्रज्ञा दूसरे शहर में थी, चाहकर भी मीनाक्षी की मदद के लिए नहीं आ पा रही थी। उसने मुझे फ़ोन करके कहा भी था कि, "आंटी, आप मम्मी को समझाओ, थोड़ा अपना भी ध्यान रखें। पापा और भाई को तो उनकी को फ़िक्र नहीं है, उन्हें मम्मी की तकलीफ भी नहीं दिखती। "
मैंने मीनाक्षी को समझाया कि, "तुम अपना ध्यान रखो। "
मीनाक्षी का वही रटा -रटाया जवाब था, "मैं बिल्कुल ठीक हूँ। मुझे क्या हुआ है ?"
मीनाक्षी के पति और बेटे प्रबोध भी मीनाक्षी की बात को ही सच मानते रहे क्यूँकि उसे सच मानने में ही उनका हित था। उन्होंने मीनाक्षी की तकलीफ को पूरी तरीके से इग्नोर कर दिया था।
मीनाक्षी ने खुद ने तो अपनी उपेक्षा कर ही रखी थी और उसी कोरोना ने मीनाक्षी की जान ले ली। हम महिलाएँ अपना ध्यान क्यों नहीं रखती ? हमारी लिस्ट में हम हमेशा पीछे क्यों रह जाती हैं ?अगर हम अपना ध्यान नहीं रखेंगे तो और कौन रखेगा ? मैं मीनाक्षी की मृत्यु को बलिदान नहीं मान सकती, ये बेवकूफी है, जो अक्सर हम औरतें करती हैं।
