"हज का पुण्य"
"हज का पुण्य"
इस्लाम धर्म की मान्यतानुसार जो व्यक्ति(शख़्स) हज अदा कर लौटता है उसके सारे पाप (गुनाह) हज करने से धुल जाते है ।वह इस तरह पवित्र (पाक) हो जाता है मानो अभी अभी माँ के पेट से पैदा हुआ हो।उसी प्रकार जिस व्यक्ति (शख़्स) के घर तीन बेटियों का जन्म हुआ हो और उसने उन तीनों बेटियों का पालन-पोषण (परवरिश) सही ढंग से कर उन्हें शिक्षा दिला उनका ब्याह रचाया हो उस शख़्स को भी एक हज करने जितना सवाब मिलता है।
गाँव के जागीरदार के इकलौते बेटे की पत्नी ने जब तीसरी बार भी बेटी को जन्म दिया तो जागीरदार व उनकी पत्नी को चिंता सताने लगी कि ,अगर बहू को बेटा पैदा न हुआ तो वंश का नाम आगे कैसे बढ़ेगा? जागीरदारी कौन चलाएगा? और उनके पुत्र को बुढ़ापे में लाठी बन सहारा कौन देगा? यही सब सोच जब चौथी बार बहू गर्भवती हुई तो बेटे-बहू पर दबाव बना बहू को शहर लेजा उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण का लिंग परीक्षण करवाया गया। रिपोर्ट में भ्रूण के लड़की होने का पता लगने पर बहू का गर्भपात करवा दिया गया।पांचवीं, छटी तथा सातवीं बार भी क्रमशः यही प्रक्रिया दोहराई गई। आठवीं बार जब गर्भ में पल रहे भ्रूण की जाँच में लड़के के होने का पता चला तो बेपनाह ख़ुशियाँ मनाई गई। बहू को तो जैसे पलकों पर बिठाया गया।लंबे इंतेज़ार के बाद वह घड़ी भी आ गई जब बहू ने वंशबेल बढ़ाने वाले वारिस को जन्म दिया। जागीरदार के घर गाँव के तमाम लोगों के साथ नाते रिश्तेदारों का मानो ताँता लग गया।अब जागीरदार व उनकी पत्नी हर बधाई देने आने वाले आगंतुक से कहते न थकते कि ,"हमारे घर वंश चलाने वाला वारिस आया है तथा हज का पुण्य दिलाने वाली तीन पोतियाँ।" किन्तु जितनी हत्याएं बहू के कोख में पल रहे कन्या भ्रूणों की करवाई उसका पाप (अज़ाब) किसके सर?"