Priyanka Gupta

Inspirational

4.0  

Priyanka Gupta

Inspirational

हिंदी भाषा का अंग्रेजी लेखक

हिंदी भाषा का अंग्रेजी लेखक

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"अरे यार ,थोड़ा जल्दी करो न। मेरे फेवरेट लेखक का 'बुक रीडिंग सेशन ' है। कितनी मुश्किल से पासेज अरेंज किये हैं। तुम्हें पिछले एक हफ्ते से याद करा रही थी। और कितना टाइम लगाओगे ?", ऋचा ड्रेसिंग रूम के बाहर खड़े होकर अपने पति अनिरुद्ध को बार -बार बोल रही थी .

"अरे यार ,बस २ मिनट और। ",अनिरुद्ध ने जवाब दिया।

"पता नहीं लोग ऐसा क्यों कहते हैं कि औरतों को तैयार होने में ज्यादा समय लगता है ?यहाँ तो बीवी कब से तैयार होकर बैठी है और पति महोदय का सजना संवरना ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा। " , ऋचा ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा।

अनिरुद्ध हर काम को परफेक्शन से करता था। पेंट में अगर एक भी सिलवट दिख जाए तो दोबारा आयरन करता था। इन सब चीज़ों में अक्सर अनिरुद्ध को ऋचा से ज्यादा समय लग ही जाता था। ऋचा के जो हाथ में आता ;वही पहन के तैयार हो जाती थी ;उस पर सब अच्छा भी लगता था।

अनिरुद्ध इंजीनियर था ;जिसकी ज़िन्दगी समीकरणों ,मशीनों ,इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स में थी ;किताबों और साहित्य के आसपास तक वह नहीं फटकता था। ऋचा को साहित्य से लगाव था ;किताबों में उसकी जान बसती थी। उसकी और किताबों की अपनी एक अलग ही दुनिया थी। वह हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओँ की किताबें पढ़ती थी। वह फिक्शन और नॉन -फिक्शन दोनों ही टाइप्स की किताबें पढ़ती थी। वह हिंदी लेखकों की फिक्शन किताबें पढ़ना पसंद करती थी ;क्यूंकि उनके चरित्रों ,कथानक ,पात्रों ,भावनाओं से वह खुद को कनेक्ट कर पाती थी।अंग्रेजी लेखकों की वह नॉन -फिक्शन किताबें पढ़ना पसंद करती थी ताकि वह नए विचारों को जान सके।

ऋचा की एक फ्रेंड ने उसे प्रभात झा द्वारा लिखी गयी एक बुक पढ़ने के लिए दी थी। बुक इंग्लिश में थी ;फिक्शन थी; रोमांटिक उपन्यास था । ऋचा ने वह बुक पढ़ी और उसे पढ़कर वह प्रभात झा के लेखन की दीवानी हो गयी थी। प्रभात झा अब तक विभिन्न विषयों पर ५ उपन्यास लिख चुके थे। उनके पाँचों उपन्यास बेस्ट सेलर रहे थे। आज उनके लेटेस्ट उपन्यास का ही रीडिंग सेशन था ; जिसके लिए ऋचा और अनिरुद्ध जा रहे थे।

"अरे ,तुम्हें पता है प्रभात झा काफी यंग है और IIT से पढ़े हुए हैं। " ,ऋचा ने चहकते हुए बताया।

"अच्छा। " ,अनिरुद्ध ने मोबाइल पर गेम खेलते हुए कहा।

"अरे सुनो तो ,वह भी शायद IIT ,कानपुर से ही पढ़े हुए हैं। ",ऋचा ने याद करते हुए बताया।

"ग्रेट ,मेरा अलुमनी है। क्या नाम बताया तुमने ?", अनिरुद्ध ने फ़ोन एक तरफ रखते हुए कहा।

"तुम मेरी सुनते कहाँ हो ?प्रभात झा ,क्या बढ़िया लिखते हैं ? उनके अंग्रेजी में लिखे हुए फिक्शन उपन्यासों से प्यार हो गया है मुझे ??", ऋचा ने आँखें बंद करते हुए कहा ,मानो प्रभात झा के पात्र उसे बंद आँखों से दिखाई दे रहे हों।

" अरे ,इस नाम का तो मेरा एक क्लासमेट ही था। लेकिन वह अंग्रेजी उपन्यास कहाँ से लिखेगा। अंग्रेजी से तो उसे डर लगता था। इंग्लिश फोबिया था उसे। अंग्रेजी में बात करनी पड़ेगी ;यह सोचकर वह ऐसे किसी कैंपस सिलेक्शन में हिस्सा ही नहीं लेता था ;जहाँ वर्बल इंटरव्यू हो। किसी PSU में शायद सेलेक्ट हो गया था। उसके बाद उससे कोई कांटेक्ट नहीं हुआ। तुम्हारा प्रभात शायद किसी और साल का पास आउट होगा। ", अनिरुद्ध ने कहा।


ऋचा और अनिरुद्ध कार्यक्रम स्थल पर टाइम से पहुँच गए थे। आगे बैठते हुए ऋचा ने चहकते हुए कहा ," चलो ,आज तुम्हारे परफेक्शन के कारण देर नहीं हुई। अब मैं आराम से प्रभात झा को सुन और देख सकूंगी। "

नियत समय पर खादी का कुरता -पायजामा और उसके ऊपर गमछा डाले हुए एक व्यक्ति ने प्रवेश किया। इवेंट के होस्ट ने उसका परिचय प्रभात झा के रूप में करवाया।

उस व्यक्ति को देखते ही ज्यादातर व्यक्तियों समेत अनिरुद्ध का मुँह भी खुला कि खुला रह गया। यह प्रभात झा वही,इंग्लिश फोबिया वाला प्रभात झा था।

अनिरुद्ध ने ऋचा से कहा ," यह तो मेरा क्लासमेट प्रभात झा ही है। "

"फिर तो आज तुम मुझे उनसे मिलवा देना। ",ऋचा ने ख़ुशी से चहकते हुए कहा।

प्रभात ने भी अनिरुद्ध को देख लिया था और पहचान लिया था। तथा आँखों ही आँखों में अभिवादन करते हुए उसे सेशन के बाद मिलने का निमंत्रण भी दे दिया था।

प्रभात के देशी अंदाज़ ने लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया था। हम लोग कई बार व्यक्तियों को उनके पहनावे से जज करते हैं या किसी की उपलब्धियों के आधार पर उसके पहनावे की कल्पना करते हैं। इंग्लिश के ५ बेस्ट सेलर उपन्यास लिखने वाला ऑथर सूट -बूट में आएगा ;ऐसी सबकी कल्पना थी।

प्रभात झा ने अपने लेटेस्ट नावेल के कुछ हिस्से पढ़कर सुनाये और उसके बाद पूछे गए सभी सवालों का जवाब हिंदी में दिया। दोनों ही भाषाओँ पर उनकी पकड़ से सभी उपस्थित व्यक्ति मंत्रमुग्ध थे। सेशन के बाद अनिरुद्ध और ऋचा की प्रभात झा से मुलाक़ात हुई।


अनिरुद्ध जो इतनी देर से अपनी उत्सुकता दबाये हुए था ;प्रभात झा से मिलते ही उसने आखिर पूछ ही लिया ," इंग्लिश फोबिआ से इंग्लिश नॉवेलिस्ट कैसे ? और तुमने प्रश्नों के उत्तर हिंदी में क्यों दिए ?"

" इंग्लिश ने बोलने के कारण मैं हमेशा अपने आपको हीन समझता था। इंग्लिश से डर मुझे अपनी बात ठीक से नहीं रखने देता था। मैं हमेशा सोचता था कि इंग्लिश में न बोलने के कारण लोग मेरा मज़ाक बनाएंगे। लोग मेरी बुद्धिमत्ता पर सवाल करेंगे। ",प्रभात ने कहा।

"फिर ,फिर क्या हुआ ?", अबकी बार ऋचा ने उत्सुकता दिखाई।

"तब मैंने कहीं पढ़ा ;अपने डर से भागो मत ;उससे लड़ो। बस फिर क्या था ?मैंने ठान लिया कि इंग्लिश पर विजय प्राप्त करनी है। विजय प्राप्त करने के अपने अनुभव को नावेल का रूप दिया। कई पब्लिशर्स के चक्कर काटने के बाद एक पब्लिशर उसे छापने के लिए तैयार हुआ और उसके बाद तो पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा। " ,प्रभात ने मुस्कुराते हुए कहा।

" और आपका यह पहनावा और हिंदी में अपनी बात कहना ?", ऋचा ने आखिर पूछ ही लिया।

" कॉलेज में पढ़ते हुए ;मैं हमेशा अपने नसीब को कोसता था कि मुझे इंग्लिश मध्यम स्कूल में पढ़ने को क्यों नहीं मिला ?मेरे मम्मी -पापा इंग्लिश क्यों नहीं बोल पाते ?अगर मुझे इंग्लिश बोलने का वातावरण मिलता तो मैं भी अपनी बात बेबाकी से इंग्लिश में रखता और लोग मुझे विद्वान् मानते। ", प्रभात ने कहा।

"तो अब आपको क्या लगता है ?",ऋचा ने पूछा।

" मैं गलत था। भाषा अभिव्यक्ति का एक माध्यम मात्र है। आप किस भाषा में बोलते हो ,उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि आप क्या बोलते हो और कितने आत्मविश्वास से। मैं अपनी सोच के कारण अपनी बात आत्मविश्वास से नहीं रख पाता था। मैं हिंदी बोलने के कारण स्वयं को हीन समझता था। अब मुझे अपनी मातृभाषा हिंदी और अपने पहनावे पर गर्व है। हिंदी ही मेरे लिए श्रेष्ठ थी और श्रेष्ठ है। अब मैं चाहे हिंदी में बोलूं या इंग्लिश में ;आत्मविश्वास के साथ बोलता हूँ। जब हम खुद को हीन मानेंगे तो लोग भी हमें हीनता की नज़रों से ही देखेंगे। ",प्रभात ने कहा।


"तो आप हिंदी में क्यों नहीं लिखते ?",ऋचा ने पूछा।

" हिंदी में मैं अपना सर्वश्रेष्ठ लिखना चाहता था ;अब आत्मविश्वास उस स्तर पर पहुंच गया है कि हिंदी में लिख सकूं। अपनी मातृभाषा को अपना सर्वश्रेष्ठ जो देना है। ",प्रभात ने मुस्कुराते हुए कहा।

"आप बिलकुल सही कह रहे हैं। हिंदी हमारी मातृभाषा है और उसकी किसी अन्य भाषा से कोई प्रतिद्वन्द्विता नहीं है। इसीलिए हिंदी भाषा को श्रेष्ठ साबित करने की जरूरत भी नहीं है ;क्यूंकि वह श्रेष्ठ है। " ,ऋचा और अनिरुद्ध ने कहा।

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