हिम्मत की मिसाल
हिम्मत की मिसाल
चारों तरफ धुँआ-धुँआ फैला हुआ था। जिधर देखो तो उधर शव ही शव बिखरे हुए थे। श्मशान घाट के बाहर शवों के अंतिम संस्कार के लिए एक लंबी कतार लगी हुई थी। परिजनों में अपने परिवार के मर चुके सदस्यों के प्रति प्रेम के स्थान पर एक भय ने स्थान ले लिया था। वे मात्र दूर से ही संबन्धों के प्रति अपना दुख प्रकट करते हुए वहाँ से लौट रहे थे।
उस स्थान पर एक व्यक्ति शवों की उचित देखभाल करते हुए उनका उचित अंतिम संस्कार की व्यवस्था कर रहा था। जो शव उपेक्षा के शिकार हुए यूँ ही लवारिस पड़े हुए थे वो उन्हें अंतिम संस्कार कर के उन्हें मुक्ति प्रदान कर रहा था।
उसकी उम्र भी कुछ ज्यादा नहीं थीं। वो भी तीस पैतीस साल से ज्यादा का नहीं था लेकिन उसने जो ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर ले रखी थी, उसकी वजह से उसकी तुलना किसी महापुरुष से करना अतिश्योक्ति नहीं थी। वो निस्वार्थ भाव से अपने कार्य मे तल्लीन था।
एक दूसरा व्यक्ति वहाँ खड़ा हो कर चुपचाप ये सब देख रहा था। जब कुछ देर बाद भोजन करने के लिए विधि करने वाला व्यक्ति बाहर निकला तो उसने बताया कि अपने पूरे परिवार को इसी बीमारी से खोने के बाद उसने अपना दर्द भुलाकर यहाँ आकर इस प्रकार की सेवा करने का निर्णय लिया ताकि उसका दर्द कुछ कम हो सके।
वो दूसरा व्यक्ति सोचने लगा कि आजकल इससे बड़ी हिम्मत की मिसाल क्या होगी जहाँ जब अपने ही परिजन मरने के बाद भी लोगों को अकेला छोड़ कर जाने को विवश थे, वही एक इंसान अपना दर्द भुलाकर उनके दर्द में शामिल था।