Padma Agrawal

Inspirational

4  

Padma Agrawal

Inspirational

हौसला

हौसला

4 mins
412


  

ट्रिं ट्रि

“आप ऊषा जी बोल रही हैं “

“जी, बताइये ....”

“आपके लिये शुभ समाचार है ...ओलंपिक में गोल्ड मेडल के लिये ‘पद्म पुरुस्कार ‘के लिये आपके नाम का चयन हुआ है “

प्रसन्नता के अतिरेक में उनकी आंखें छलछला उठीं थीं , उन्होंने अपने मां पापा को यह शुभ सूचना दी तो मां पापा ने उन्हें अपनी बाहों में भर कर उनका माथा चूम लिया था ।

मां और पापा यह आपकी मेहनत लगन और अथक परिश्रम का फल है , जिसने मुझे इस पुरुस्कार के योग्य बनाया ।

ऊषा जी की आंखों के सामने उनका अतीत चलचित्र की भांति जीवंत हो उठा ....

साधारण परिवार की लाडली जब 3 वर्ष की थी तो बुखार ने उसे अपाहिज बना दिया था ,... वह मां पापा की गोद में इस डॉक्टर से उस डॉक्टर के पास दौड़ती रहती । कोई भी दुआ ताबीज और डॉक्टर कुछ भी नहीं कर पा रहे थे । बड़ी होती जा रही थी परंतु शरीर स्पंदनहीन था ।

पापा की छोटी सी दुकान यहां वहां डॉक्टरों के पास जाने के कारण बंद हो गई थी , वह कर्जदार बन गये थे । परंतु यदि कोई भूल से भी उन्हें बेचारी कह देता तो उस पर नाराज हो उठते थे ।

 एक विशेषज्ञ डॉक्टर ने इलेक्ट्रिक शॉक का ट्रीटमेंट करवाने की सलाह दी .... अब मुश्किल यह थी कि 10 साल की लुंजपुंज लड़की को तीन बस बदल कर कैसे लेकर जाया जाये लेकिन पापा ने हार नहीं मानी और दो साल तक लेकर जाते रहे , इसका असर भी हुआ . शरीर के ऊपरी भाग में हरकत होने लगी परंतु निचला हिस्सा निष्क्रिय रहा फिर वहां के डॉक्टरों ने भी हाथ खड़े कर दिये ....

उस समय मां लक्ष्मी और पापा फफक कर रो पड़े थे , यह तो निश्चित हो गया था कि उनकी बेटी ऊषा कभी भी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकेगी । फिर एक डॉक्टर ने आशा की किरण जगाते हुये चेन्नई के ऑर्थोपेडिक सेंटर ले जाने की सलाह दी . उन्होंने बताया कि वहां पर दिव्यांग बच्चों को खेलकूद के लिये प्रोत्साहित किया जाता है । मां पापा वहां लेकर गये और सिसकते हुये उन्हें वहां छोड़ कर आ गये थे

      वहां पर पैरों की हड्डियों की कई बार सर्जरी हुई , सर्जरी , फिजियोथैरेपी और एक्सरसाइज़ का अंतहीन सिलसिला चलता रहा ... वहीं पर दूसरे बच्चों को खेलते देख कर उन्हें भी रुचि उत्पन्न हो गई थी । व्हीलचेयर उनके जीवन का हिस्सा बन चुकी थी लेकिन दूसरे बच्चों को देख कर उनका आत्मविश्वास और जीवन जीने का हौसला बढ गया था ।

वह 15 वर्षों तक चेन्नई के सेंटर में रहीं फिर बंगलुरू में आकर अपना ग्रैजुएशन पूरा किया ... यहीं पर पैराओलंपिक के विषय में मालूम हुआ और फिर यहीं पर शॉटपुट और व्हीलचेयर रेसिंग की प्रैक्टिस शुरू हुई । उनकी कुछ कर गुजरने की लगन और परिवार के सहयोग से उनके खेल में निखार आता गया .... कड़ी मेहनत और बुलंद हौसले के कारण सफलता उनके कदम चूमने लगी ।

स्थानीय स्तर , फिर प्रादेशिक स्तर पर मेडल मिलने का सिलसिला शुरू हुआ तो राष्ट्रीय स्तर के बाद ओलंपिक जीतने का सपना स्वाभाविक हो गया था । उन्होंने किराये की व्हीलचेयर से अपना काम चलाया था ।

जीवन का अविस्मरणीय पल ओलंपिक मेडल जीतने का क्षण था ... हाथ में तिरंगा उठा कर गर्वित हो उठी थी । उन्हें खेल कोटे से बैंक में डिप्टी मैनेजर की नौकरी मिल गई थी । इतने दिनों के बाद घर की दशा बदलने लगी थी । सबको अपने जीवन की कहानी , अपने परिवार के सहयोग की बातें बार बार बताते बताते वह कुशल वक्ता बन गई ।

बंग्लुरू में एक फाउंडेशन की शुरुआत की है जहां गरीब दिव्यांग बच्चों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती है ऒर वहां पर बच्चों के हुनर को निखार कर उन्हें स्वावलंबी और आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जाता है ।

मां की आवाज से वह वर्तमान में लौटीं थीं , बाहर ढोल नगाड़े बजने की आवाज और भीड़ का शोर उनके कानों में पड़ रहा था ...

जब लोगों नें उनसे कुछ बोलने को कहा तो वह बोलीं , ‘इस सम्मान का असली हकदार तो मेरा परिवार है’ जिसने एक दिव्यांग बेटी के मन में विश्वास जगाया , जीवन में स्वयं कभी हौसला नहीं खोया ... इसी परिवार के सहारे सिल्वर , गोल्ड मेडल जीतती चली गई ...

हमारी सबसे बड़ी दिव्यांगता हमारे मन की हीन भावना है । हम दूसरों से कमतर हैं , कमजोर हैं फिर आप मानसिक रूप से कमजोर बन जाते हैं । वह शरीर से दिव्यांग अवश्य थीं परंतु मेरे परिवार ने मुझे दिल से कभी दिव्यांग नहीं बनने दिया । मैं सोचती हूं कि मैं दुनिया की सबसे खुशकिस्मत महिला हूँ । यदि हम दूसरों से शिकायत करने के बजाय यह सोचें कि हम समाज के लिये क्या कर सकते हैं । यदि देने की प्रवृत्ति मन में रखें तो अवश्यमेव यह दुनिया बहुत खूबसूरत और सुंदर बन जायेगी ।

हम सबको कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिये ... यदि मेरे परिवार ने हिम्मत हार ली होती तो वह भी कहीं अंधकार की गर्त में खो गई होतीं ....


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational