हौसला
हौसला
बाबू खतम हुए तब ललिता तेरह बरस की थी। घर में माई, दादी दो छोटे-छोटे भाई-बहन। उस रात बारिश थमने का नाम ही नहीं ले रही थी।
शायद ललिता के परिवार के भाग्य पर विधाता भी बुरी तरह रो रहा था।माई की लाख कोशिशों पर भी डॉक्टर ऐसी बारिश में आने को तैयार नहीं था।
भोर होते-होते ललिता अपने बाबू को खो चुकी थी। घर चलाने की ज़िम्मेदारी अब नन्ही ललिता के कांधे पर थी।
माई काम नहीं कर सकती थी आठवा महीना चालू था। ऐसे में जिस स्कूल में वो पढ़ती थी। उसी स्कूल ने ललिता पर तरस खाकर, छोटे-मोटे काम के लिए रख लिया।
पर उतना काफी नहीं था।
ललिता सुबह के समय लोगों के घर का काम करती। फिर स्कूल जाती, वहाँ काम के साथ-साथ पढ़ाई करती।
साँझ ढले भाई-बहन को घर छोड़कर फिर और घरों का काम करती। स्कूल वालों का साथ ललिता का हौसला बढ़ा रहा था।
छोटे भाई के जन्म के बाद माँ भी चार पैसे कमाने में ललिता का हाथ बंटाने लगी थी। आज बारहवीं कक्षा का परीक्षा परिणाम घोषित हुआ था।
ललिता ने पूरे जिले में टॉप किया था। अब वह स्कूल में सफाई नहीं, कॉलेज की पढ़ाई के साथ-साथ छोटे बच्चों को पढ़ाने लगी थी।
आज माई की आँखों से आँसू छलक पड़े थे। बरसों से टपकती टूटी हुई छत, आज ललिता के कारण फिर से बन गई थी।
ललिता खुश होकर दादी से कह रही थी। दादी हम छत तो टपकने से बचा लिए। पर माई के आँसू टपकने से कइसे रोके।
ललिता की बात सुनकर रोते-रोते माई हँस पड़ी। विकट परिस्थिति में भी ललिता ने अपना हौसला बनाए रखा।
इस वजह से उसका परिवार भूखों मरने से बच गया। भाई-बहन की पढ़ाई भी नहीं रुकी।