हारने के डर को हराने की जंग
हारने के डर को हराने की जंग
यह उन दिनों की बात है जब पढ़ाई तो सब करते थे ,पर नंबर सबके कम ही आया करते थे ! आजकल के जैसे नहीं कि किसी को 99.8 तो किसी को 97.5...इतना तो उस समय बुखार आता था ! उन्ही दिनों एक छोटे से कस्बे में एक प्यारी सी लड़की संध्या रहती थी ! उन दिनों साइंस विषय में पढ़ाई करना मानो जंग जाने जैसा होता था ! संध्या ने हिंदी मीडियम से जब दसबी की परीक्षा पास की ,तो उसके परिवारवाले उसके प्रथम आने पर बहुत खुश थे ! संध्या का बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना था ! इसलिए उसने मेडिकल विषय पढ़ना ही उचित समझा !
जिस लड़की ने शुरू से हिंदी मीडियम से पढ़ाई की हो उसको एकदम से इंग्लिश मीडियम में विज्ञान पढ़ना बहुत मुश्किल हुआ ! पर उसने पूरी जिम्मेदारी से पाई की ! उन दिनों कोचिंग का इतना रिवाज भी नहीं था ! और जब परिणाम सबकी उम्मीदों के विपरीत आया कयोंकि संध्या उस साल क्लास में फेल हो गयी थी !अब उन दिनों रिजल्ट जिसके घर में आता था ,उससे अधिक उत्सुकता पड़ोसियों को होती थी !
अपने रिजल्ट से संध्या एक दम से टूट गयी ! बिलकुल घर की चार दीवारी में कैद हो गयी ! धीरे धीरे उसके पड़ोसियों तक यह बात पहुँच गयी कि संध्या फेल हो गयी है ! उन पड़ोसियों के सामने संध्या जाना तो क्या उसके बारे में सोच भी नहीं सकती थी ! घर वालो ने बहुत समझाया कि एक हार से ज़िन्दगी खत्म नहीं होती ! पर संध्या बाहर निकल कर समाज से लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी ! संध्या को हिम्मत नहीं थी कि स्कूल बस की लड़कियों और खास कर उनकी मम्मीयोँ से नजर मिला सके ! कुछ दिन संध्या चुपचाप से घर में बैठी रही !
पर एक दिन सुबह जल्दी उठकर उसने स्कूल की यूनिफार्म निकाली प्रेस की और मम्मी को गले लगाते हुए बोली ," माँ बिना हिम्मत के में डॉक्टर कैसे बनूँगी?" इसलिए आज से फिर से स्कूल शुरू ,और आज में अकेली ही बस स्टॉप तक जायूँगी! यह कहकर संध्या निकल गयी ! संध्या का घर से तो निकलना आसान था मुश्किल था तो दूसरो की नजरो से बचना ,फिर भी संध्या बड़ी हिम्मत से बस में चढ़ी !
जो लड़कियां उसको एकटक देख रही थी ,संध्या ने उनको कहा," हाँ में एक क्लास में फेल हुई हूँ , पर अभी ज़िन्दगी के इम्तिहान अभी बाकी है," यह सुन सबकी नजरें झुक गयी और जो औरतें उसे बस के बाहर खिड़की से देख रही थी उनको भी संध्या ने ऊँची आवाज़ में सुना दिया, "हां आंटी जी में फिर से कक्षा 11 में जा रही हूँ ! यह सब कह संध्या अपने हारने के डर को हारने की जंग जीत चुकी थी ! आज वही संध्या बहुत बड़ी डॉक्टर है !
कई बार लोगों के डर से हम अपने ज़िन्दगी के गलत फैसले ले लेते है ! अगर हारने के डर को हरा दिया जाये तो ज़िन्दगी का कोई फैसला गलत नहीं होगा !
