रोटियों की गिनती
रोटियों की गिनती
"राज़ रोटियां खाओगे ?" राज हमेशा से इसी कशमकश में रहता था कि क्या बोले ? क्योंकि पेट तो हमेशा से अपने मन अनुसार चलता है।
जिंदगी कैसी अजीब सी है ना ....नीता और मां की सोच भी कितनी अलग है। मां जो आज चाहे इस दुनिया में नही हो ,पर जहां भी होगी और अगर इस बात में अगर सच्चाई है कि मरने के बाद आदमी अपनों को देख सकता है ,तो मां को बहुत दुख होगा कि उनकी बहु उनके बेटे की रोटियां गिन के देती है। जब बचपन में खाना खाने बैठते थे तो जब मां को राज पूछता था कि मां ,मैंने 6 रोटियां खा ली हैं ,और मत देना तो वो गुस्से से बोलती । खबरदार जो रोटियां गिनी तो ! मेरी 6 रोटियां 2के बराबर हैं ! रोटी गिनने से वो शरीर को नहीं लगती हैं! और अन्न को कभी भी मापना नहीं चाहिए ।
आज राज को अपनी मां जो पढ़ी लिखी तो थी ,पर उसे रोटियां जिंदगी के अंतिम वक्त तक गिननी नही आई। नीता की सोच अपनी जगह सही हो सकती है ,पर मां तो गाय की,कुत्ते की,कौए की ,भिखारी की और ना जाने कितनों के लिए रोटी रखती थी। जब कभी पिता जी रोटी के डिब्बे में रोटियों का ढेर देख कर गुस्सा करते तो मां बड़े ही शांत स्वर में जवाब देती थीं कि कोई बात नही अन्न है जिसके पेट में जाएगा आशीष ही देगा ! राज को मां के जाने के बरसों बाद भी इस प्रश्न का उत्तर बहुत भारी लगता है कि ,आज तुम कितनी रोटियां खाओगे? कभी कभी हमारे अपने हमें सीख देकर तो जाते हैं, पर वक्त , हालात और आधुनिकता के चक्कर में हम उन संस्कारों की बलि चढ़ा रहे हैं!