गुस्ताख मोहब्बत
गुस्ताख मोहब्बत
यह कहानी किसी के द्वारा सुनाई हुई है जिसे लेखक ने अपनी काल्पनिक सोच से कहानी को आगे बढ़ाने का प्रयास किया है ... इस कहानी के अंत में आप पढ़ेंगे कि किस तरह से लेखक को उसका प्यार उसे अपने साथ नर्क लोक ले जाती है। वह प्यार जो मरने के बाद भी लेखक को जीने नहीं देती।
पहला प्यार कोई नहीं भुलता,यह हमेशा एहसास कराने की कोशिश कराता रहता है कि मैंने भी कभी किसी से प्यार किया था और वो प्यार के साथ साथ रोमांस भी हो तो भुलाने से भी आप भुला नहीं पाएंगे। ऐसी ही प्रेम कहानी की दास्तान जो जीवन पर्यंत याद रहा।जो अमर प्रेम में तब्दील हो गया ...….❤️
हम जो करने जा रहे हैं वो सही है या गलत,खुद निर्णय लेने में असमर्थ महसूस करते हैं।प्यार के रास्ते पर चलने वाले लोगों को आने वाले भविष्य का आभास नहीं होता, अच्छाई और बुराई में फर्क करना नहीं आता। उसके लिए वो कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं....!वो पराई औरत जिसे मैं मुनिया भाभी कहा करता था।साधारण सी दिखने वाली वो, गरीबों में पली बढ़ी। एक बे - साहारा औरत जिसे कभी पति से प्यार नहीं मिला , जिसके लिए वो उम्र भर तरसती रही।शुरूआत के समय में, मैं उसे जानता भी नहीं था। परिवार वालों के कहने पर मुझे मालूम हुआ कि वह भाभी लगती है। मुनिया भाभी मेरे जीवन का अहम अंग बन चुकी थी। जब से वह मेरी जीवन में आई।
शरीर का वो हिस्सा जो अगर खराब हो जाए तो आदमी बेबस और लाचार हो जाता है। उसकी गैरमौजूदगी में मैंने एक-एक पल तन्हाई में गुजारा है। उसी के ख्यालों में खोए रहना और बेबुनियाद सपने देखना मानों मेरी रोज रोज की नियति बन गई हो।समय के साथ मैंने इंसानों को बदलते देखा है। लेकिन मैं उसकी बात कर रहा हूं , जो आज भी वैसी ही है, जैसे वर्षों पहले हुआ करती थी। बीते लम्हों के साथ बहुत कुछ बदल जाता है, मैंने अपने आसपास रह रहे उन नामचीन हस्तियों को देखा है जो वक्त के साथ अपने को बदलने में ही अपनी काविलीयत समझते हैं ।मेरी उम्र उस समय पंद्रह की रही होगी, जब मैं अपने नाना के घर से आया था। ऐसे तो मेरा पूरा बचपन ननिहाल में ही बीता। वहां के ही रीति - रिवाज और संस्कृति को अपनाकर मेरा बाल्यकाल यौवन अवस्था पर आ पहुंचा। मेरे नाना का घर छोटे से गांव में है , जहां मेरा परवरिश हुआ। स्कूल की पढ़ाई पूरी करके मैं अपने घर आ गया था। यहां पर दादा दादी के रहते हुए भी अकेलापन महसूस हो रहा था क्योंकि मेरे जो साथी, संगी , दोस्त थे।
वो सब वहीं छूट गए थे। जगह और जमीन ज्यादा रहने के बावजूद भी मैं खेतों में काम करने के लिए नहीं जाता था । यह सारी जिम्मेदारी मेरे पिता अपने कंधों पर उठा रखे थे।वो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं होने के बावजूद भी मेरे पिता बहुत ही समझदार थे । खेती करने के हर एक पहलू को बारीकी से समझते थे , इसीलिए मेरा घर हमेशा अनाजों से भरा हुआ रहता था।यहीं पर मेरी मुलाकात पड़ोस वाली भाभी से हुई। जो मेरे जीवन का उबाऊ पन, उसे देख कर दूर होने लगा। जिंदगी में कुछ खुशियां और शगुन मिलने की उम्मीद जगी। उसके पति अक्सर पैसे कमाने के लिए दुसरे शहर जाया करते थे और चार - पांच महीने बाद घर वापस आते। इसी बीच हम दोनों के नैन - मटक्के आपस में लड़ गए। उसकी गोरे जैसी खुबसूरत चेहरे, पतली कमर और मटकाती चाल थी , तो बहुत ही कमाल की। उसकी जितनी भी तारीफ करूं , बहुत ही कम है।
जब वह मेरे पास से गुजरती तो मेरे शरीर में करंट की लहर दौड़ने लगती। मेरे दिल में समुद्र की लहरों की तरह उफान मारने लगता । ये मेरा सच मानना है या मेरे नज़रों का धोखा है, ये मुझे नहीं मालूम , पर मैं इतना जरूर जानता हूं कि प्यार अंधा होता है , जिसमें कुछ भी वास्तविकता नहीं दिखाई देता।
वो अक्सर मेरे घर आ जाया करती थी और मैं उसके आने का बेसब्री से इंतजार करता। सबसे नजरें बचाकर मैं उसे बार-बार देखा करता । जब वो किसी दिन मेरे यहां नहीं आ पाती तो मैं किसी बहाने उसी के यहां मिलने के लिए चले जाते।
उसे जब भी मैं देखता मन करता उसे अपने बाहों में भर लुं । उसके उभरते हुए छाती का वक्षस्थल देखने में ज्यादा ही आनंद आता था। कभी उसके कंधे पर से साड़ी का पल्लू किसी तरह नीचे सरक जाता तो मेरी नजर एकाएक उसी जगह आकर रुक जाता , शायद मुनिया भाभी को इस बात का अंदाजा होने लगा था कि ऐसा करने से किसी को भी लुभाया जा सकता है । जवानी के दहलीज पर कदम रखने वाले सभी लड़कों में सेक्स के लिए कुछ ज्यादा ही उतावले होते हैं।उसे भी इस बात का अंदाजा लगने लगा कि मैं उसे पसंद करने लगा हूं।एक तो चढ़ती जवानी और सेक्स की गर्मी को शांत करने के लिए कोई पुरुष तो चाहिए ही जो उसे अपने पति से नहीं मिल पा रहा था।पहले तो वह हमें नजरअंदाज करती रही , लेकिन तिरछी नजर से देखा करतीं ।
उसे जल्द ही इस बात का एहसास होने लगा था कि मैं उसे पसन्द करने लगा हूं। और धीरे-धीरे उसे भी मुझसे प्यार होने लगा था।धीरे धीरे हम दोनों के बीच मिलना जुलना भी शुरू हो गया । वो हमें कहती - हम दोनों का मिलना जुलना सही नहीं है । किसी को मालूम चल गया तो क्या सोचेंगे मेरे बारे में। मैं पहले से शादीशुदा हूं और आप कुमारे , लोग तो हमें ही बदनाम करेंगे और मेरी बदनामी में आप मेरा साथ नहीं देंगे।मैं उसे अपने बाहों में भर कर उसके होठों पर अपना होंठ रखकर कहता - जब मैं तुम्हारे साथ हूं तो डर कैसा। इस जालिम जमाने से लड़ने के लिए मुझे भली भांति से आता है।कुछ भी हो जाएगा पर मैं तुझे अपने साथ ही रखूंगा।वह हमें अपने से हटाते हुए कहती - आप तो यूं ही बोलते हैं । जब मुसीबत आएगी तो आप पीछे भाग जाएंगे।
लेकिन उसे मैं अपनी बाहों में भरकर जकड़ लेता और वह भी सबकुछ भूलकर मेरी आगोश में खो जाती।और हम दोनों के बदन गर्मी से झुलसने लगता।
सेक्स का भूख इंसान पर किस तरह हावी हो जाता है इससे मैं परिचित हो चुका था।
क्रमशः आगे....

