Laxmi Yadav

Inspirational

4.3  

Laxmi Yadav

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गुरु दक्षिणा

गुरु दक्षिणा

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आज पुरा गाँव दुल्हन की तरह सजा था। रँग- बिरंगी कागज की पताका लहरा रही थी। कही बिजली के दीप की झिलमिल देखते ही बन रही थी। स्वच्छ ता का विशेष ध्यान रखा जा रहा था। बात ही कुछ ऐसी थी। 

विदेश के एक उच्च पद पर आसीन होने वाले प्रथम भारतीय माननीय गुलशन प्रजापति ने अपनी सफलता के सफर मे शुरुआत का वर्णन करते हुए इस गाँव के बहुत पुराने शिक्षक श्री ज्ञान सागर जी का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया था और उनका आशीर्वाद लेने भारत आने की सूचना भी अपने विजयी भाषण मे दिया था। तब से मानों मिट्टी भी अपने इस लाडले पर गर्व महसूस करते हुए राह निहार रही थी। मास्टरजी जिनको अधिकतर लोग 'बुढ्ढे ', पागल' या सनकी इसी संबोधन से चिढ़ाते थे। कुछ पुराने गिने चुने ही उनको मास्टरजी बुलाते थे। पर अब तो मानों हर कोई उनका चरण- स्पर्श करके ही जाता था। औरते दोनों समय खाना पहुँचा जाती। 

आखिर वो दिन आ ही गया। मास्टरजी का घर औरतों ने गोबर से लीप कर चमका दिया था। मिट्टी के मडाइ की तो मानो दिवाली हो गयी थी। मास्टरजी ने बरसों पुराने बक्से मे से एक बहुत महीनों से रखा खादी का कुर्ता व किसी जमाने की तह की गई एक बंबई से भेजी मोरारजी मिल की धोती का पैकेट खोलकर अपना परिधान पहन लिया। कंधे पर धुला व नील दिया हुआ गमछा सुशोभित था। खिस्सा मे गोल्डन पेन लटका रखी थी। 

एक बड़ी सी सफेद बी एम डब्लू गाड़ी मे गुलशन जी गाँव मे आगमन करते है, पूरा गाँव पूरे जोश के साथ स्वागत सत्कार करता है। अतः वो अपने गुरु जी की कुटिया मे जाते है। परात मे पानी लेकर स्वयं अपने गुरु के चरण पखार रहे थे। सारा गाँव अचंभित व नई पीढी लज्जित थी। पर हैरान गी तो तब हुई जब ज्ञान सागरजी को अपना यह शिष्य याद ही नहीं आ रहा था। 

आखिर मे गुलशन जी ने सजल नेत्रों से कहना शुरू किया। " गुरुजी, मै आपका वही दुबला- पतला गुल्लु हूँ। जिसके पिताजी के पास गरीबी के अलावा कुछ नहीं था। फिर भी आप के कहने पर मुझे विद्यालय भेजने लगे। आप बिना फीस के पढ़ाने लगे। मेरा पढ़ाई या पुस्तकों मे मन नहीं लगता। आप मुझे तरह तरह से समझाते। इतिहास कहानी की तरह सुनाते। आपकी बात आज भी मेरे स्मृति पटल पर है। ज्ञान मे बड़ी शक्ति होती है। अंधेरे की रोशनी होती है। जीवन मे सिर्फ ज्ञानी ही सर्वत्र सम्मान पाता है। मेरे माता- पिता दोनों काल के ग्रास बन गए। दो साल आपने मुझे अपने पास रखा ताकि मेरी पढ़ाई ना रुके। और फिर मेरे मामा मुझे यहाँ से ले गए। मैंने बहुत महंगे विदेश के महाविद्यालय मे भी पढ़ाई की पर आप जैसा ज्ञान का साधक मुझे कही नहीं मिला। आपका कहा वाक्य जो आपने मेरे दाखिला करते समय मेरे पिताजी से कहा था, ये गुलशन एक दिन देखना अपने ज्ञान की खुशब् जरूर बिखेरेगा। "

सभी की आँखें नम थी। गुलशन जी ने अपने सहभागी से कहकर कुछ मंगवाया। एक छोटा सा सुटकेस जिसमें से कागजात निकालकर गुलशन जी ने अपने गुरू के चरणों को छूकर वो कागजात देते हुए बोले " यहाँ एक जमीं खरीदी है विद्यालय के लिए आपके नाम पर। विद्यालय का नाम ज्ञान सागर विद्यालय रखा जायेगा। जिसकी पूरी जिम्मेदारी मैं निभाऊँगा। ये आज शिक्षक दिवस के दिन मेरी गुरू दक्षिणा समझकर स्वीकार कर लीजिये। 

सारा गाँव इस अनोखी गुरू दक्षिणा के लिए करताल ध्वनि रोक ही नहीं पा रहा था। 


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