Akanksha Gupta

Classics

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Akanksha Gupta

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गुप्तचर भाग-5

गुप्तचर भाग-5

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अगली सुबह मार्गशीर्ष शांत था।सिध्रदना उसके निकट आती है।सिध्रदना-(डरते हुए)-क्षमा करना शीर्ष।कल रात तुमसे भेंट नही हुई।मैं बहुत अधिक थक गई थी इसलिए आते ही सो गई।मार्गशीर्ष शिविर में बने कक्ष में आ जाता है।सिध्रदना उसके पीछे जाती है।वहाँ पर पहुंच कर सिध्रदना चौक जाती है।

मार्गशीर्ष-(गुस्से में)"तुम ही थी न वह भेदी,वह गुप्तचर।किस प्रकार कर सकती हो तुम ऐसा?"

सिध्रदना-(दृढ़ता से)"हाँ मैंने किया है यह सब अपने मगध साम्राज्य के लिये,अपनी मातृभूमि के लिये।"

मार्गशीर्ष-"तुमने ग्यारह वर्ष इस राज्य के मानचित्र को अपनी आँखों में बसाया,अपना परिवार छोड़ा,अनाथ बनकर रही,सबका विश्वास प्राप्त किया।क्यों?इस युद्ध के लिये।"

सिध्रदना-"यह युद्ध नही हमारा वर्चस्व स्थापित करने का साधन है।समस्त संसार चक्रवर्ती सम्राट अशोक के अधिकार में होगा इस राज्य पर विजय के पश्चात।"

मार्गशीर्ष-"तुम्हारे भीतर मानवता शेष है इसमें संदेह है मुझे।यदि ऐसा होता तो तुम इस कार्य के लिये कभी इतनी तत्पर नही होती।"

सिध्रदना-"एक गुप्तचर के जीवन में भावनाओं का कोई स्थान नही होता।उसे मात्र अपने सम्राट के सम्मान की चिंता होती है,फिर चाहे वह उसकी व्यक्तिगत जीवन से सम्बंधित ही क्यो न हो।"

मार्गशीर्ष-"तो उस दिन अपने ही रचाये गये छदम युद्ध से क्यो रक्षा की मेरी?क्यों वध नही किया मेरा?"

सिध्रदना-(लम्बी साँस भरते हुए)"शायद हमारी मित्रता ने मुझे बांध दिया था किंतु अब नहीं।"

इतना कहते हुए सिध्रदना तलवार निकाल कर युद्ध करना प्रारंभ कर देती है।मार्गशीर्ष अपनी रक्षा करते हुए युद्ध करता है।युद्ध लम्बे समय तक चलता है।फिर अचानक सिध्रदना के हाथ से तलवार छूटकर गिर जाती है और मार्गशीष की तलवार उसकी गर्दन को चीरकर निकल जाती है।इस अप्रत्याशित घटना से मार्गशीर्ष स्तब्ध रह जाता है।सिध्रदना जमीन पर गिरने ही वाली होती है कि मार्गशीर्ष उसे आगे बढ़ कर थाम लेता है।सिध्रदना के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी।शरीर में उठ रहे असहनीय दर्द के बाद भी वह एक शान्ति का अनुभव कर रही थी।मार्गशीर्ष की दृष्टि मात्र उस पर टिकी हुई थी।दोनों एक दूसरे को देख रहे थे।

मार्गशीर्ष को प्रतीत हुआ जैसे सिध्रदना कह रही हो कि मैं तुम्हारे प्रेम के विषय में जानती थी और मुझे तुम्हारा प्रेम स्वीकार था इसीलिए की तुम्हारी रक्षा।एक गुप्तचर के जीवन में इन भावनाओं का कोई स्थान नही होता लेकिन मेरे समक्ष तुम्हें कोई और तुम्हें हानि पहुंचाने का प्रयास करे,यह असहनीय है।ना तो मैं अपने प्रेम से विश्वासघात कर सकती थी और ना ही अपने सम्राट से।

यह भी सत्य है कि यह युद्ध अब स्थगित होना सम्भव नहीं है किंतु यह मेरा विश्वास है इस युद्ध के पश्चात ही सम्राट अशोक शान्ति के मार्ग पर अग्रसर होने को बाध्य होंगे।हमारे प्रेम का त्याग व्यर्थ नहीं होगा, कभी नहीं।

इसी के साथ सिध्रदना मृत्यु को प्राप्त होती है और उसके कुछ समय पश्चात कलिंग युद्ध प्रारंभ होता हैं,जिसमें असंख्य जीवन वीरगति को प्राप्त होते है।उनके असहाय परिवारों के चीत्कार सम्राट अशोक के जीवन मे भयंकर अशांति का कारण बनी।तब उन्हें बुद्ध के रूप मे प्रेम का वह पाठ पढ़ने का सौभाग्य मिला जिसका स्वप्न सिध्रदना ने देखा था और शायद मार्गशीर्ष ने भी।


        



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