Akanksha Gupta

Drama Thriller

3  

Akanksha Gupta

Drama Thriller

गुप्तचर भाग-2

गुप्तचर भाग-2

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260


मार्गशीर्ष का संदेह और भी दृढ़ हो गया कि वहाँ कोई और व्यक्ति तो था जो उनका पीछा कर रहा था। तभी वह भ्रम यथार्थ बनकर उसके समक्ष प्रस्तुत था। मार्गशीर्ष इस यथार्थ को देखकर भयभीत से अधिक चकित हो गया।

"तुम इतनी गहन रात्रि में यहाँ पर क्या कर रही हो?"मार्गशीर्ष ने यह प्रश्न ऐसे भाव से पूछा जैसे कि उसने कोई भूत प्रेत देख लिया हो।

"इस राज्य के उपसेनापति की कुशलता के समाचार जानने प्रस्तुत हुई थी किन्तु इसमें इतना भयभीत होने की क्या आवश्यकता थी?"एक मधुर स्वर ने उत्तर के साथ प्रश्न भी किया।

"तुम्हें हर समय मात्र उपहास ही क्यों सूझता है?तुम्हें आने वाली परिस्थितियों का आभास भी है?जीवन मे अब गम्भीर होने का समय आ गया है। युद्ध का वातावरण है तो उसे मिलकर बदलने का प्रयास करना होगा। "मार्गशीर्ष समझा रहा था।

"जीवन की प्रत्येक कठिन परिस्थिति मे इतनी गम्भीरता उचित नहीं है। फिर यह तो युद्ध की स्थिति है। यदि प्रत्येक व्यक्ति गम्भीर रहेगा तो यह उचित नहीं है। न ही सेना के लिये,न ही युद्ध के लिए। "कहते हुए मधुर आवाज हवा में ओझल हो गई।

"सिध्रदना सुनो तो सही। मुझे ज्ञात है कि यह कन्या कभी भी मेरी बात नहीं सुनेगी। किसी दिन कोई भारी संकट आएगा और तब इसे इन जटिल स्थितियों का ज्ञान होगा। "मार्गशीर्ष विचार करने लगा।

सिध्रदना उसके बाल्यकाल की सखा थी। उसके माता-पिता कौन थे और वह इस राज्य में किस प्रकार से आई,यह बात कोई नही जानता था लेकिन एक अकेली कन्या शीघ्र ही राज्य की प्रजा की प्रिय बन गई थी। सभी उसे समान स्नेह और सम्मान दिया देते थे। वह अत्यंत चंचल किंतु उच्च विचारों वाली शिक्षित कन्या थी। बचपन में एक निःसन्तान दम्पति द्वारा गोद ली गई एक सात वर्षीय कन्या थी वह। मार्गशीर्ष से तीन वर्ष छोटी थी लेकिन सभी विद्याओ का ज्ञान था उसे। पुरुषों के स्वामित्व वाले क्षेत्र में उसकी भागीदारी कम नही थी। उसे यह ज्ञान उसके माता पिता के कारण ही प्राप्त हुआ हो,ऐसा प्रतीत होता था परन्तु वह अपने माता पिता के विषय में कुछ भी बताने में असमर्थ थी। मार्गशीर्ष का अनुसरण करते हुए उसे ग्यारह वर्ष बीत चुके थे। कलिंग में युद्ध की परिस्थितियों के चलते हुए वह विवाह करने के लिए सहमत नहीं थी।

मार्गशीर्ष जब प्रातःकाल उठा तो देखा सिध्रदना भोजन का प्रबंध कर रही थी।

" तुम यह सब क्या कर रही हो। "मार्गशीर्ष चौक कर बोला।

"अपनी सेना को तृप्ति भरा भोजन करवाया है ताकि युद्ध के समय उनकी शारीरिक शक्ति कम न हो। "सिध्रदना अपनी रौ में बोले जा रही थी।

"उसके लिए यहाँ विशेष रसोइया है। फिर भी अगर तुम्हें भोजन बनाने की इच्छा है तो तुम्हें विवाह कर लेना चाहिए। "मार्गशीर्ष ने उपहास किया।

"इस विषय पर हमारी चर्चा समाप्त हो चुकी है। हमें किसी और नए विषय को ढूंढना होगा चर्चा के लिए। "सिध्रदना गम्भीर मुद्रा में बोली।

"तुम विवाह की बात सुनते ही गम्भीर क्यो हो जाती हो?यहाँ कितना असुरक्षित वातावरण है,इसका तुम्हें आभास तक नहीं है। "मार्गशीर्ष ने इतना कहा ही था कि वहाँ कुछ अकल्पनीय घटित हुआ।

  क्रमशः


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