गुनहगार कौन
गुनहगार कौन


घर में शादी की चहल - पहल थी। शहनाईयाँ बज रही थी। सब मदमस्त होकर घूम रहें थे।
डोली - भाभी ! क्या तुम्हारा मनचला भाई रवि भी आ रहा है शादी में ?
जी बीवी जी आ रहा है। वह तो आने के लिए बहुत उत्सुक है। क्योंकि वह अपनी नयी - नवेली दुल्हन को पहली बार जो लेकर आने वाला है।
डोली - क्या बात कर रही हो, भाभी ? उसकी शादी हो गयी ? वह तो अभी बहुत छोटा है। घर वालों ने अभी से उसके पर काट दिए क्या ?
बीवी - हमने क्या काट दिए। उसने खुद ही कटा लिये।
इतने में मेरी बहन भावना तपाक से बोली - अपने से दो साल बड़ी लड़की से शादी की है। शादी से पहले ही लड़की ने मुँह काला कर रखा था। पेट से है, और इसके माथे मंढ दिया अपनी कालख को। बेचारा क्या करें, इधर पड़े तो कुआँ और उधर पड़े तो खाई। मरता क्या न करता, अपना लिया उसी को।
डोली - क्या मतलब ? किरण पेट से है ?
भावना - हाँ ! कहते हैं, प्यार करते थे दोनों। एक दिन बहक गए। बस फिर क्या था , लगा दिया रवि का नाम। क्या पता कहाँ - कहाँ मुँह काला करवाया होगा।
डोली - तुम्हें लड़की होकर यह शोभा नहीं देता कि एक लड़की की इज़्ज़त यूँ सरे - आम निलाम करों। क्या अकेली लड़की का ही दोष होता है ? लड़का भागीदार नहीं होता है क्या ? लड़की ही कलंकिनी क्यों कहलाती है, जबकि दोनों ही सामान रूप से भागीदार होते हैं।
भावना - अरे ! रवि तो किरण से नज़रें चुराने लग गया था। परन्तु एक दिन जब यह अपने घर की सीढ़ियाँ चढ़ रहा था, तो किरण और किरण के घरवालों ने रवि को अपने घर के अंदर खींच लिया, और लगाये तड़ाके। कहते हैं, खूब पिटाई की रवि की।
किरण ने कहा - मैं तो मरूँगी लेकिन तुम्हें भी ज़िंदा नहीं छोड़ूँगी। रवि ने अपनी गलती मानते हुए, शादी के लिए हाँ कर दी। समाज में इज़्ज़त बनायें रखने के लिए, घर - वालों को भी हाँ करनी पड़ी।
डोली, तुम जानती तो हो, रवि की करतूतों को, कितनी लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनाया है इसने, भेड़िया है पूरा भेड़िया, समाज में ऐसे भड़ियों का खुले आम घूमना, सभी के लिए घातक होता है। सही कदम उठाया किरण और किरण के घरवालों ने, हिम्मत दिखाई और कुकर्म के विरुद्ध आवाज़ उठाई। कोई और लड़की होती तो हवस का शिकार होने के बाद आत्महत्या की कगार पर पहुँच जाती। और फिर यह दरिंदा किसी और को अपना शिकार बनाता। ऐसे दरिंदों का विवाह की ज़ंजीरों में जकड़ना ही समाधान है। अब भी क्या पता यह अपनी हरकतों से बाज़ आयेगा या नहीं। अगर लड़की और उसके घरवालें हिम्मत दिखायें, तो इन हवस के पुजारियों को तो छटी का दूध याद आ जाये।
"शकुन" हमारे समाज़ को किरण जैसी साहसी लड़कियों की ही जरूरत है।