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Neelima Deshpande

Romance Tragedy Classics

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Neelima Deshpande

Romance Tragedy Classics

गुम हैं किसी के प्यार में .

गुम हैं किसी के प्यार में .

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" रागिणी, तुम बेटी को लेकर मायके तो लौट आयी हो लेकिन,अभी भी तुम्हारा मन सुधीर के पास और तुम्हारे ससुराल में ही हैं। कुछ समझ में नही आ रहा आखिर बात क्या हो गयी जो तुम्हे यह कदम उठाना पड़ा ?"

" कुछ नही माँ,आप चिंता मत करो। धीरे धीरे मेरा मन लग जायेगा यहाँ। हमारा कोई झगड़ा नही हुआ। मेरी परेशानी कुछ और हैं।ससुराल मे सब आपस मे जब बात करते हैं, तब मैं कुछ बोल ही नही पाती। इस कारण कई बार कुछ चीजें तय करने में मेरा रोल नही होता। ना मेरे प्यार का इजहार करना मुझे आता हैं और नाही किसी बात पर मेरी राय देना। लेकिन अब इसके कारण मैंने अपनी उलझने बढ़ा ली हैं ... "

रागिणी से बात करने बाद उसकी माँ को बेटी के अकेलेपन का अंदाजा तो आने लगा था। इसलीए,रागिणी को बिना बताए उन्होंने डॉक्टर सुधीरसे याने रागिणी के पती से बात कर उनके बीच के मनमुटाव की वजह को समझने की कोशिश की।

"मैं आपकी बात समझ सकता हूँ आंटी, लेकिन मैं आपको कैसे समझाऊ की हम सब साथ में बैठकर हर चीज पर विचार करते हैं। रागिणी को हमने अपनी बातों में शामिल करने की हमेशा कोशिश भी की। उसे खुद ही शांत बैठना पसंद हैं, ऐसा लगने के बाद हमने आग्रह करना छोड़ दिया। वह चाहे तो चर्चा में शामिल होकर अपनी राय दे सकती हैं। पर हमारी बात करना शुरू होतेही उसे गुस्सा आता हैं। उसके बाद वह हमारे कमरे में जाकर बैठ जाती हैं।कई बार हमने उसे बोलने के लिए कहा। शुरूवात में उसे केवल हम सब बोलते हैं इस बातसे तकलीफ थी पर अब तो हम हमारी बेटी के लिए भी हम कुछ कर नहीं सकते। उसकी सारी बाते तैय करने का हक हमे नही दिया जाता। मेरे पेरेंट्स भी अपनी पोती की देखभाल करना जानते हैं। परंतु रागिणी के अनुसार केवल वह खुद बेटी के लिए हर चीज सही कर सकती हैं। हमारी पूरी फैमली डॉक्टर की होकर भी हमें हाइजीन का ध्यान रखना नही आता ऐसा उसका कहना हैं। मुझे लगता हैं कि, यह उसका केवल एक बहाना हैं। वह हमारी बेटी को लेकर काफी पजेसीव होने लगी हैं। लेकिन आप चिंता मत करो, मैं सब ठीक कर दूंगा जल्दी। "

जमाई से बात करते वक्त रागिणी की माँ ने रागिणी के दिल में क्या चल रहा हैं यह भी उसे बताया। सुधीर भी इस बात को समझने की कोशिश कर रहा था, जिसमें उसे सहायता हुई। एक मैरिज कोच से मिलकर उसने रागिणी के मन की बात जो उसे अपनी सांसू मॉं से पता चली थी वह बताई...

" मेरी समझ में नही आ रहा हैं कि मेरे पैरेंट्स और मैने कभी भी रागिणी का दिल नही दुखाया, फिर भी उसे ऐसा क्यों लगता हैं कि वह उस घर में अकेली पड़ गयी हैं और हम सब एक टीम बनकर उसके विरोधियों जैसे बर्ताव करते हैं। वह कम बोलना पसंद करती हैं। इसलिए हमारे साथ बैठकर भी वह अपनी राय नही देती इनमे हमारी क्या गलती हैं?"

कोचने सुधीर से कई बातें समझी और रागिणी के बारे में यह सिलसिला कबसे शुरू हुआ ऐसा सुधीर से पूछा। सुधीर ने उन्हें सारी बात विस्तार से बताई,

" मैं एक एमडी हूँ और मेरी पत्नी रागिणी एक डेंटिस्ट। मेरे माता पिता भी डॉक्टर हैं। हमारी आपस में अच्छी दोस्ती होने के बाद हमनें शादी की थी। हमारे सारे दोस्त इस बात के गवाह हैं की हम एकदूसरे का कितना सन्मान करते हैं। मैं एकलौता होने के कारण हमेशा से अनेक बातों के निर्णय बचपन से लेने लगा। हम सब एकदूसरे से बहोत बाते करते हैं। पर रागिणी शांत स्वभाव की लड़की हैं। बाद में उसका कहना था कि वह बोलना चाहती हैं, लेकिन हम उसे अवसर नही देते। जल्दी जल्दी सब तय करते हैं। उसे इतने जल्दी अपनी बात रखना नही आता। "

थोड़े सेशन्स के बाद सुधीर ने अपनी सुनने की क्षमता को बढ़ाया। उसने खुद में काफी बदलाव किए और अपने पैरेंट्स को भी रागिणी की परेशानी बताई। सबने एकजुट होकर, रागिणी का दिल जीता और उसे वापस ससुराल लेकर आए। सब समझ गए थे कि कई बार कुछ लोग अपनी भावनाओं को तुरंत सबके सामने नही बोल पाते। सब एक जैसे न होने के कारण,उन्हें सबकी बात जब तक जान नही लेते तब तक रुकना चाहिए। रागिणी केवल अपनापन चाहती थी। कोई उसकी राय को भी समझे, सुने इन बातों की अपेक्षा में थी पर यह भी वह खुलकर नही कह सकी थी।

आपस के अलग स्वभावगुण समझने की छोटीसी कोशिश भी टूटे दिलों को फिर से मजबूतीसे जोड़ सकती हैं।

सुधीर और रागिणी सबके साथ आज खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं।


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