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Neelima Deshpande

Others

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Neelima Deshpande

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अब तो है तुमसे, हर खुशी अपनी

अब तो है तुमसे, हर खुशी अपनी

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अब तो है तुमसे हर खुशी अपनी, तूम पे मरना हैं जिंदगी अपनी....


" खाली दिन रात यह गाना गुनगूनानेसे कुछ नही होने वाला सोहन। अभी भी समय हैं, जाकर सरिता को वापस लेकर आओ।"


डॉक्टर सोहन की माँ अपने बेटे को उनकी बहू सरिता को घर वापस लाने के लिए समझा रही थी। सोहन को सरिता की कही कुछ बाते याद आयी जिनपर उसे अब सोचना था और उसके बाद ही सरिता को लाना हैं या नही यह तय करना था ....


" सोहन, मुझे लगता है कि, तुम कमसे कम एक बार मेरी ईच्छा के लिए इस विषय पर बात करो। हम दोनों ने अपनी पहली असफल शादी को भूलाकर जीवन में आगे बढ़ने के लिए सोच समझकर एक दूसरे से शादी की थी। अब हमारी शादी को सालभर से ज्यादा समय हो गया हैं,फिर भी हमें,हमारी पहली जिंदगी को भुलाने में कठिनाई हो रही हैं। खुश रहने के लिए और मेरी इच्छा के लिए, मुझे लगता हैं की, हमें अपना परिवार बढ़ाना चाहिए। मुझे बच्चों से बहुत लगाव हैं।"


रेडियोलॉजिस्ट सरिता जो, चाहती थी,उस बात के लिए सोहन का मन राजी नही था। सरिता और उसकी माँ के बीच कुछ नोकझोक चलती रहती थी। जिसके कारण सोहन को डर था की यह शादी भी सफल रह पायेगी या नही?जो बात उसने एक दिन कह भी दी थी..


"शादी कोई मजाक नही सरिता। एक बार शादी के कटू अनुभवों से गुजरने के बाद मैं अभी पुरी तरह संभल नही पाया हूँ । ऐसेमें गृहस्थी को आगे बढाना मुझे ठीक नही लगता। जैसे तुम्हारी मुझसे कुछ अपेक्षाएं हैं, वैसे मेरी औऱ मेरी मॉं की भी तुमसे हैं, जिन्हें तुम अनदेखा कर रही हो। क्या फर्क पड़ता हैं अगर त्योहार पर तुम साड़ी पहन लो, उनसे आशीर्वाद लो, रोज थोड़ा समय उनके साथ बिताओ, या घरमें कभी कोई महेमान आए तो घूँघट लेलो। आए दिन यह बातें तुमसे कहने की बजाए मॉं मुझे बताती हैं। पापा के गुजरने के बाद मैं ही उनका मानसिक आधार हूँ। पर अब मेरा मानसिक आधार तुम नही बनोगी और कहोगी की, "पहले भी मुझसे किसीने यह सारी चीजें नही करवाई" और शिकायतों की लट लगातार सुनाकर मुझे परेशान करोगी तो कठिन हो जाएगा सब। मुझे लगता हैं, तुम अपनी पिछ्ली जिंदगी को भूल नही पायी हो अब तक। कई बार मना करने के बाद भी तुम समझना नही चाहती। इससे तो अच्छा हैं की मैं आजसे दूसरे कमरे में शिफ्ट हो जाता हूँ।"

उस दिन गुस्से में सरिता ने भी उसे नही रोका, यह सोचकर कि वह शांत होकर वापस ऊनके कमरे में जल्द ही लौट आएगा। पर बात कुछ ज्यादा बिगड़ गयी। सोहन अकेलेपन में काम में व्यस्त रहने के बजाए शराब के सहारे उसका समय ज्यादा बिताने लगा।

एक दोस्त की सलाह पर सरिता ने, उसकी शादी में फिरसे खुशी के पल वापस लाने में मदत लेने के लिए मैरिज कोचसे मुलाकात की। और जल्द ही सरिता ने उससे जो घरवालों की उम्मीदे थी, वह पूरी कर दी। जैसा सोहन की माँ चाहती थी वह सब करना उसने शरू किया। सासू माँ तो खुश हुई पर सोहन की हालात अभी पूरी तरह नही बदली थी। इसलिए सरिताने अपनी सासू माँ से बात की।


" मैं जानती हूँ की आप भी सोहन के इस रूप से खुश नही हैं। पर आप उन्हें कुछ नही कह पाती। मैंने आपका और उनका दिल जीतने के लिए कई कोशिशें की। आप अभी मुझसे खुश भी हैं और मुझे अच्छी तरह समझने भी लगी हैं। लेकिन सोहन जींद पर अडा हैं। उसे ना मैं पसंद हूँ ना बच्च्चों के लिए मेरा पागलपन। अपने स्वाभिमान के खिलाफ जाकर सोहन ने मुझपर हाथ उठाने के बाद भी मैं उसकी हालत को समझती रही। पर सोहन को केवल अपनी मनमानी करनी, हो तो बेहतर हैं मैं किसी होस्टल में रहने जाऊ। उम्मीद हैं आप मुझे समझोगी। शायद मेरी कमी महसूस होने के बाद सोहन की सोच भी बदले।"


यह बात कहकर, सरिता सचमुच चली गई थी। सोहन को सरिता की कमी महसूस हो रही थी। उसके बगैर जिंदगी रूखी लगने के बाद सोहन भी सरिता के निर्णय से काफी सोचकर सहमत था की उन्हें जीवन में आगे बढ़ना चाहिए। सरिता की सुझाई बात पर ध्यान देकर खुदके बच्चे के रूप में,जीवन में खुशियां लानी चाहिए। माँ ने भी उसे सही गलत क्या हैं यह समझाया और आखिरकार सोहन सरिता को वापस घर लेकर आया।

कभी कभी कुछ पल की बुरी यादें, हमारे आज के जीवन को इस प्रकार प्रभावित कर देती हैं, की रिश्तों की डोर को भी नाजूक बना दे। सही समय पर कदम उठाए जाय तो, उन रिश्तों की डोर को हम प्यार के पक्के धागे में फिरसे बाँध सकते हैं।


सोहन और सरिता ने यही किया। पुराने जीवन की सारी यादें हमेशां के लिए भुलाकर वह आगे बढ़े। सरिता ने करिअर में उन्नति करने हेतू कुछ आगे की पढाई की। दोनों ने मिलकर हँसी खुशी निर्णय लिया और आज वह दोनों डेढ़ साल के बच्चें के माता पिता हैं, और एकदूसरे के लिए यह गीत गाते हैं....


अब तो हैं तुमसे, हर खुशी अपनी.....।



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