पिया का घर.... प्यारा....?
पिया का घर.... प्यारा....?
ओ, मैं तो भूल चली बाबुल का देस पिया का घर प्यारा लगे ।
मुंबई का मायका और प्राइवेट फर्म की नोकरी छोड़ शादी के बाद बिहार में राघव के साथ गयी सरिता जीवन का आनंद लेते हुए इस गाने की नायिका के तरह खुशी के गीत गाने लगी थी।पटना के जानेमाने, पैसेवाले परिवार को देखकर माँ बाप ने बेटी सरिता की शादी राघव संग रचाई थी। शादी के 3 महीने बाद कैंसर के कारण सरिता की सांसू माँ चल बसी। और उसके साथ ही मानो सरिता की शादी का नयापन खत्म होता गया।पंन्द्रह साल पहले अपनी पती के निधन के बाद सरिता की मौसी सांस अपने दो बेटों के साथ बहन के घर, कैंसर की बीमारी में उसकी और उसके घरकी देखभाल करने और खुद के लिए भी सहारा ढूंढते हुए आ गयी थी। जो उसके बाद वही की हो गयी और उसके ससुराल में उसकी बूढ़ी सांसू माँ ने कई बार बुलाकर भी नही गयी थी।सरिता को इस बात से परेशानी नही थी। लेकिन मौसी सांस हर बात में कुछ न कुछ कमी निकालकर सरिता को परेशान करने लगी थी। राघव अपनी माँ को खोने के बाद खुद अकेला पड़ गया था। सालभर मौसी सांस और ससुर जी के साथ, मौसी के लड़कों की भी हिम्मत बढ़ गयी थी और नोकझोक तबतक कभी कबार हातापाई पर जाने लगी थी। राघव को इस बात का अंदाजा न था और सरिता वह देती भी तो, पिताजी के आगे उसकी एक न चलती थी।
आखिरकार इन सब बातों का हल न मिलने के कारण सरिता अपने मायके मुंबई किसी काम से आठ दिनों के लिए आयी,पर कभी लौटी नही।अपनी बेटी की खुशियों के लिए सरिता के घरवालों ने इस समस्या का हल ढूढ़ने का सुझाव सरिता को दिया।राघव अच्छा पति होने के कारण सरिता को इस रिश्ते को एक मौका देते हुए हालातों को सुलझाने का रास्ता निकालना था।मैरिज कोच और सरिता दोनों ने आपस में बातचीत करने के बाद, वह इस नतीजे पर आ गयी थी की, उसे अपने ससुराल जाकर पहले राघव की सहायता करनी होगी।
एक दूसरे के साथ समय बिताकर फिरसे जो दूरियां राघव की माँ के गुजरने के बाद और सरिता के मुंबई लौट आनेसे उनके बीच हुई थी, उन्हें उसे कम करना था।एक ही घर में रहते हुए जो बात सालभर में, सरिता समझ गयी थी,उस बात का राघव को भी थोड़ा अंदाजा तो था। पर पिताजी के आगे उसकी बोलती बंद हो जाती थी। माँ के गुजरने के बाद तो वह पूरा अकेला और कमजोर पड़ने के कारण कभी कुछ बोलने की हिम्मत नही रखता था।
इसलिए सरिता को पहले उसका विश्वास जीतना जरुरी था, जो सरिता महिनेभर में जीत चुकी थी। मौसी सांस और ससुर के बीच के रिश्ते को समझने के बाद उस घर में रहना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। ऊपर से ससुरजी और मौसी सांस दोनों के भी ज्यादा दबंग स्वभाव का शिकार राघव खुद भी था। इसलिये वहाँ एक साथ उस माहोल में रहेने से राघव के साथ सरिता बाहर ज्यादा सुखी रह पाती। नोकरी करने वाले राघव में बस उस हिम्मत की कमी थी, की वह अपने पिताजी से अलग रहने की बात करते हुए सुखी जीवन को अपनाता।
जब शादी के बाद जीवन की डोर सरिता जैसे जीवन साथी के साथ बंध जाए, जो हर कदम पर अपने पती के साथ खड़ी होकर उसकी हिम्मत और ताकत बन जाने को तैयार हो, तो कामयाबी दूर नही रहती।जीवन में हमें कई बार ऐसी उलझनों का सामना करना पड़ता हैं। आपसी समझदारी औऱ प्यार न हो तो रिश्तों की डोर कमजोर होते- होते टूट जाती हैं।सरिता की समझबूझ और राघव की बढ़ी हुई हिम्मत के कारण वह दोनों अपने बलबूते पर आज खुशी से जीवन बिता रहे हैं!
कोच के साथ सरिता के अभी सेशन्स चालू है और इस दौरान उन्होंने अपने लिए एक किराए पर रहने के लिए मकान ढूँढ लिया है । राघव जल्द ही पिताजी से बात कर दशहरे के दिन नए मकान में शिफ्ट होने का मन बना चुका हैं और उसने तैयारी भी कर ली है।एक और जीवन सुखी होते देखने की खुशी पाकर मेरे मन को अपार खुशी मिली हैं।
