गुलाबी गुलाल

गुलाबी गुलाल

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तुम कितनी सुंदर लगती हो, गुलाबी गुलाल में हाँ यही तो कहाँ तो कहाँ था उसने मुझसे,

मेरे चेहरे को अपने हथेलियों से उठा कर यही तो कहाँ था उसने वह भी ऐन होली वाले दिन कितने छुपते छुपाते हम लोग मिले थे बस एक चाहत या काशिश ही इसको कहते है,फिर सब कैसे इतना खराब हो गया समझ ही नहीं पाती हूँ।

यह कह कर मनिषी का गला भर गया, वह शायद बहुत कुछ कहना भी चाहती है और छुपना भी चाहती है पर उसको शायद नहीं मालूम की उसकी शादी बिखर गयी है यह सब हमको मालूम है,हम दोनो तो साथ में एक सुखद समय बीताना चाहते थे,और वह चाहती थी कि हम दुखी ना हो पर हमने बहुत ही कोशिश करी कि वह कुछ कहे पर जब उदास ही रही तो हमने यही कहाँ कि चलो तुमने जो भी बहुत सोच समझ कर ही कर रही हो,फिर पछतावा काहे का यह तो जीवनऔर सबको जीने का अधिकार है,फिर तुम काबिल हो हर अपना जीवन जी सकती हो ,उसके चेहरे फीकी सी हंसी फिर आँसू जो उसके मन की सहजता को दरसा रहा या बहुत कुछ करने की चाहत बता रहा था फिर हम दोनों ने वाकई में गुलाबी गुलाल से ही होली खेली और खूब हँसे जी भर हँसे।


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