गर्म रोटियाँ !!
गर्म रोटियाँ !!
जब भी माँ रोटियाँ बनाती तो नन्ही सुम्मी रोटियों की खुश्बू सूंघ रसोई में पहुंच जाती और धीरे से माँ का आँचल खींचती।
क्या है सुम्मी? सब कुछ जानते हुए भी अनजान बन माँ पूछती क्या चाहिए मेरी गुड़िया को? मुस्कुराती सुम्मी कहती माँ रोटी दो ना वो भी घी लगी, और माँ एक नर्म सी रोटी बना खूब सारी घी चुपड़ रोल बनाती और बीच से तोड़ सुम्मी के दोनों हाथों में पकड़ा देती।
हाथों में रोटी ले ख़ुश हो सुम्मी खेलने दौड़ जाती जैसे कोई खजाना मिल गया हो। ये रोज़ का नियम था "रोटियाँ बहुत पसंद थी सुम्मी को और वो भी माँ के हाथों की नर्म नर्म रोटी खूब सारी घी लगी।"
कभी सब्ज़ी पसंद की नहीं बनती तो सुम्मी के भाई बहन सौ नखरे करते खाना खाने में लेकिन सुम्मी वो तो अपनी घी लगी रोटी खा के ही ख़ुश हो जाती। माँ कहती मेरी रानी बेटी है सुम्मी कभी माँ को परेशान नहीं करती।
देखते देखते नन्ही सुम्मी अब सयानी सुम्मी हो गई पर उसकी पसंद और आदत बिलकुल भी नहीं बदली वही माँ के आँचल को खींच एक रोटी ले जाना।
दीदी की शादी के बाद एक बहुत अच्छा रिश्ता आया सुम्मी के लिए शिव का। माँ पापा ने जल्दी ही हाथ पीले कर दिए सुम्मी के। ससुराल में सास, ससुर और शिव ही थे। शिव इकलौते बेटे थे और ससुर जी बैंक में अच्छे पोस्ट पे थे। शादी के बाद शिव, सुम्मी को अपने साथ दिल्ली ले जाना चाहता था जहाँ उसकी नौकरी थी। लेकिन सुम्मी की सास ने ये कह रोक दिया की दीवाली तक बहु को रहने दे घर के रीती रिवाज भी समझ लेगी सुम्मी।
बुझे मन से शिव अकेला ही चला गया। ससुराल में किसी बात की परेशानी नहीं थी। लेकिन माँजी सुम्मी को एक पल बैठने ना देती। कभी कहती सुम्मी चाय बना तो कभी टीवी का रिमोट दे तो कभी पर्दा लगा दे तो कभी पर्दा हटा दे। दिन भर के इन छोटे छोटे कामों से सुम्मी थक जाती। ये सब तो फिर भी ठीक था लेकिन उसे अपनी माँ की उनके हाथ की रोटियों की बहुत याद आती कभी पेट भर खाना खा ही नहीं पाती।
रात को जब पापाजी ऑफिस से आते तब सुम्मी रोटियाँ सेंक दोनों को खिलाती, फिर रसोई साफ कर खुद खाने बैठती तब तक तो रोटियाँ ठंडी हो जाती। एक निवाला भी ठीक से खाया नहीं जाता सुम्मी से। बहुत रोना आता पर चुपचाप आंसू पी जाती।
एक दिन सास ससुर को खाना खिला दिया और दोनों सोने चले गए। टेबल पे सुम्मी अपनी प्लेट लिए खाने बैठी। ठंडी हुई रोटी बिलकुल खाई नहीं जा रही थी और भूख भी बहुत लगी थी। धीरे से प्लेट सरका सिर टेबल पे टिका दिया...., "आज माँ की बहुत याद आ रही थी आँसू खुद ही आँखों से बहने लगे दिन भर की थकी सुम्मी टेबल पर ही सो गई।"
नींद में सुम्मी बड़बड़ा रही थी "माँ भूख लगी है गर्म रोटी खिलाओ ना घी वाली ", तभी लगा जैसे कोई सिर सहला रहा है जैसे माँ ही हो, माँ माँ करते सुम्मी की नींद खुल गई देखा तो पापाजी थे।
पनीली आँखों से सुम्मी के सिर पे हाथ फेर रहे थे। पापाजी आप....सॉरी पता नहीं कब सो गई.. "सुम्मी ने थोड़ी सकुचाहट से कहा।" खाना नहीं खाया बेटा प्लेट की और देखते हुए पापा जी ने कहा। वो पापाजी वो... सुम्मी को कुछ जवाब ही नहीं सूझ रहा था। पापाजी ने प्लेट उठाई और रसोई की और चल दिए उनके पीछे डरी सहमी सुम्मी भागी पता पता नहीं क्या होगा आज सोच सोच के सुम्मी की जान निकली जा रही थी।
पापाजी ने फ्रिज से आटा निकला और रोटियाँ बनाने लगे, ये क्या कर रहे है आप पापाजी...? "सुम्मी ने रोकना चाहा, लेकिन आज तो जैसे सुम्मी के ससुर जी ने ठान ही लिया था की अपनी बहु को गर्म रोटी खिला के रहेंगे।" देख बेटा गोल तो नहीं पर कच्ची रोटी नहीं खिलाऊंगा तुझे ये पक्का है..। जब पापाजी ने कहा तो सुम्मी खिलखिला के हँस पड़ी।
रसोई से आती आवाज़ों को सुन सुम्मी की सास की नींद खुल गई जब रसोई में आयी तो अपने पति को रोटियाँ बनाते देख चौक गई। ये क्या आप इस समय ये क्या कर रहे है? वही जो तुम्हें करना चाहिए था.., मतलब आश्चर्य से सुम्मी की सास ने पूछा। बेटी बना के लाये थे ना सुम्मी को हम फिर तुम माँ से सास कब बन गई शिव की माँ।
आज नींद में अपनी माँ को याद कर रही थी सुम्मी खाली पेट सो गई रोते रोते, " पता है क्यूँ क्यूंकि ठंडी रोटी इससे खाई नहीं जाती और यहाँ इसकी माँ तो है नहीं, यहाँ तो सास है जो अपनी बहु को गर्म खाना कैसे दे सकती है।" शर्म से सुम्मी की सास ने सिर झुका लिया।
आज से सुम्मी तुम्हें और तुम सुम्मी को गर्म रोटी सेंक के खिलाओगी और हाँ घी जरूर लगाना मेरी बेटी की रोटियों में। सुम्मी डबडबाई आँखों से झुक गई अपने प्यारे से पापाजी के पैरो पे।
