Anshu Shri Saxena

Inspirational

2.4  

Anshu Shri Saxena

Inspirational

गृहलक्ष्मी

गृहलक्ष्मी

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“मुझसे नहीं होगा ये सब, मैं रोज़ रोज़ के इन झंझटों से तंग आ गया हूँ, तुम अपनी माँ से कह दो कि मैं रोज़ ऑफ़िस से छुट्टी लेकर अस्पताल के चक्कर नहीं लगा सकता और न ही उनकी मंहगी दवाइयों का ख़र्च उठा सकता हूँ।“

राजेश ने निधि पर चिल्लाते हुए कहा और तेज़ी से ऑफ़िस के लिये निकल गया।

निधि की आँखों में आँसू आ गये, वह सोचने लगी,

“क्या मेरी माँ, राजेश की कुछ नहीं लगती ? क्या राजेश की अपनी माँ बीमार होतीं तो क्या वह उनका इलाज नहीं कराता ? क्या तब भी वह डॉक्टरों की फ़ीस और दवाओं पर होने वाले ख़र्चों को ऐसे ही जोड़ता ? जब मैं अपनी सास को अपनी माँ जैसा आदर दे सकती हूँ, उन्हें अपनी माँ जैसा समझ सकती हूँ तो राजेश क्यों नहीं ऐसा कर पाता ? मेरी माँ का मेरे सिवाय है ही कौन ? क्या शादी के दस सालों बाद भी यह घर मेरा नहीं है जिसमें मैं अपनी मर्ज़ी से अपनी माँ को रख सकूँ ?   

निधि अपने माता पिता की इकलौती संतान थी। उसके माता पिता ने बड़े अरमानों से और धूमधाम से राजेश के साथ उसका विवाह किया था। निधि के पिता की छोटी सी मिठाइयों की दुकान थी। शादी के बाद निधि अपनी दुनिया में बहुत ख़ुश थी। उसे भरा पूरा ससुराल मिला था। देवर और ननद ने उसके भाई और बहन की कमी को पूरा कर दिया था। पलाश के जन्म के बाद तो उसकी ख़ुशियाँ दूनी हो गयी थीं।

पर सदा समय एक सा कहाँ रहता है ? लगभग छ: महीने पहले अचानक ही निधि के पिता की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हो गई। पिता की मृत्यु के पश्चात निधि की माँ बिलकुल अकेली पड़ गई थी। उसके पिता की दुकान भी निधि के चचेरे भाइयों ने मिल कर हड़प ली थी। पूरी तरह बेसहारा हो चुकी माँ को निधि अपने साथ ले आई थी। उनकी तबियत भी ठीक नहीं रहती हाँलाकि माँ उसके साथ रहना नहीं चाहती थीं पर निधि अपनी उस माँ को कैसे छोड़ देती जिन्होंने उसे जन्म दिया था,अपनी उँगली पकड़ कर चलना सिखाया था।

शुरू में तो सब ठीक चल रहा था परन्तु कुछ समय बाद ही निधि की सास को छोटी छोटी बातें बुरी लगने लगी थीं।

“तुमने अपनी माँ को चाय पहले क्यों दे दी ? “

“अपनी माँ को दूध क्यों दिया ?”

“मेरे पोते को अपनी माँ से दूर रखा करो, पता नहीं उन्हें क्या बीमारी है।“

“कब तक तुम्हारी माँ यहाँ रहेंगी ? उन्हें किसी वृद्धाश्रम में क्यों नहीं डाल देतीं ? कब तक वे मेरे बेटे के पैसों पर ऐश करेंगी ?“ इत्यादि इत्यादि।

निधि ख़ून का कड़वा घूँट पीकर रह जाती पर उसे कोई उपाय न सूझता। राजेश भी उसकी कोई बात न सुनता और अपनी माँ की ही हाँ में हाँ मिलाता। अब राजेश भी उससे खिंचा खिंचा ही रहता।

आज भी राजेश ने कितनी बड़ी बात कह दी थी। निधि को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, क्या करे वह ? क्या सच में अपनी माँ को किसी वृद्धाश्रम में डाल दे ? पर वह जब अपनी माँ के बारे में सोचती तो उसका मन स्वयं को धिक्कारने लगता।

“क्या मेरी माँ के प्रति मेरी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है ? क्या माँ का क़सूर सिर्फ़ ये है कि वे एक विधवा हैं और एक बेटी की माँ हैं ?“ 

बहुत देर तक सोचने के बाद निधि एक निर्णय पर पहुँच गई। शाम को जब राजेश वापस आया तो निधि को अपने कमरे में देख हैरान रह गया। निधि ने अपना सारा सामान बाँध लिया था और अपनी माँ के साथ घर छोड़ने के लिये तैयार थी। उसने बड़े सधे शब्दों में राजेश से कहा-

“आज तुमने मुझे इस बात का अहसास करा दिया है राजेश कि यह घर सिर्फ़ तुम्हारा है, मेरी इच्छाओं और भावनाओं का तुम्हारे जीवन में कोई मोल नहीं, तुम्हारा घर छोड़ कर मैं अपनी सहेली चित्रा के घर के घर जा रही हूँ। उसने मुझे अपने स्कूल में पढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। अपने जीते जी मैं अपनी जन्मदात्री माँ को किसी वृद्धाश्रम में नहीं छोड़ सकती।“

राजेश ने तो इस स्थिति की कल्पना भी नहीं की थी। वह निधि को कमजोर समझता था। उसे लगता था कि उसके ऊपर पूरी तरह से आश्रित निधि उसे छोड़ कर जाने का सपने में भी नहीं सोचेगी, पर यह क्या।

“यह क्या कह रही हो निधि ? घर छोड़ कर कहाँ जाओगी ? तुम्हारे बिना पलाश को कौन संभालेगा ? घर की देखभाल कौन करेगा ? राजेश ने सकपकाते हुए कहा। 

“ सोच लो राजेश यदि तुम्हें पलाश की माँ चाहिये तो उसकी माँ की माँ को भी पूरा सम्मान देना होगा, जहाँ मेरा और मेरी माँ का सम्मान नहीं वहाँ मैं एक पल भी नहीं रहूँगी। जहाँ तक पलाश की बात है, मेरी ममता मेरे आत्मसम्मान के सामने तुच्छ है। तुम सब मिल कर उसका अच्छा ध्यान रखोगे ऐसा मेरा विश्वास है “ निधि ने दृढ़ शब्दों में राजेश को जवाब दिया और अपनी माँ का हाथ थामे दरवाज़े की ओर बढ़ चली। 

“मुझे माफ़ कर दो बेटी, मैं अपने पुराने विचारों के आवरण को हटा नहीं पा रही थी। आज मैंने तुम्हारी जगह अपने को रख कर सोचा तो मुझे अहसास हुआ कि मैं कितना ग़लत सोचती थी। आगे से मैं और तुम्हारी माँ अच्छी सहेलियों की तरह एक साथ एक घर में रहेंगे। तुम कहीं मत जाओ बेटी क्योंकि बिना गृहलक्ष्मी के कोई भी घर सदा बिखर जाता है।“ 

निधि की सास ने बड़े प्यार से निधि को समझाते हुए कहा। 

आज राजेश और उसके परिवार को गृहलक्ष्मी का महत्व समझ आ गया था। 


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