dr vandna Sharma

Drama

5.0  

dr vandna Sharma

Drama

गोआ अधिवेशन

गोआ अधिवेशन

3 mins
651


वास्को रेजीडेन्सी में ठहरने की व्यवस्था थी।

मेरा कमरा ४०१ था। मेरी रूम पार्टनर थी हिंदी -उर्दू की गजल साहित्यकार 'इंद्रा शबनम इंदु ', साढ़े ११ बजे हमे लंच के लिए अनन्ताश्रम होटल में एकत्र होना था। अपना सामान रखकर, नहाकर जब मैं वापिस आयी तो सोचा इंदु जी से बात करते हैं। जैसे ही मैंने उनसे बात करना शुरू किया -"डोंट टॉक मी। मुझे अकेला रहना पसंद हैं, तुम्हें जो करना है करो।"

अजीब महिला है सोचते हुए मैं रूम से बाहर आ गयी। जब उन्हें पता चला मैं भी उसी प्रोग्राम में काव्य पाठ के लिए आयी हूँ जिसमें वो आयी हैं तो बड़ी विनम्रता से बोली- देखो मेरी बात का बुरा मत मानना, कभी-कभी परेशान हो जाती हूँ।"

कोई बात नहीं, मैं किसी की बात का बुरा नहीं मानती। मैं तो हमेशा खुश रहती हूँ।"

लंच के बाद डेढ़ बजे सब सेमीनार हाल में एकत्र हुए। सबका एक दूजे से परिचय कराया गया। मुझे राष्ट्रक्षेत्रिय गौरव 'साहित्य भूषण 'से सम्मानित किया गया। पूरे भारत से वहाँ कविगण आये हुए थे। पांच बजे प्रोग्राम समाप्त हुआ। फिर अपने भाई विकास और अदिति के साथ हमने गोवा की सड़कों की सैर की। वहां का मार्किट देखा। पानी-पूरी (गोल-गप्पे) खाये। ८ बजे सम्मलेन था। इतने बड़े हाल में बड़े-बड़े साहित्यकारों के सामने काव्यपाठ करके बहुत ख़ुशी हुई। रात बारह बजे तक समाप्त हुआ कवि सम्मेलन। अगले दिन प्रातः ९ बजे गोवा भ्रमण के लिए निकले।

सबसे पहले हम पहुंचे मिनी गोवा देखने। वहां पचास रुपए टिकिट था। हमने सोचा फ्री में दिखाते तो देख लेते चलो कहीं और घूमते हैं। हम तीनों समूह से अलग हो गए। बराबर में एक पहाड़ी सी थी, दोनों तरफ घने जंगल थे। बीच में ज़रा सा रास्ता गया था, एक आदमी को उधर जाते हुए देखा तो सोचा हम चलते हैं, देखें इधर क्या है ?

तीनों कूदते-फांदते जहाँ पहुंचे वो उसी मिनी गोवा का ऊपरी भाग था। हम तीनों की हंसी नहीं रुक रही थी क्यूँकि फ्री में हम उसी जगह पहुँच गए थे। बड़ा मज़ा आ रहा था। किसी आदिवासी समुदाय का नृत्य चल रहा था। सजीव झांकियां सजी हुई थी। एक बार तो मैं भी डर गयी की पीछे कौन है लेकिन सिर्फ एक मूर्ति थी। पुराने ज़माने की एक डोली थी उसमे बैठकर अदिति और मैंने फोटो खिंचवाए। हम उसी रस्ते से बाहर जाने लगे जहाँ से आये थे लेकिन अब वहां गार्ड खड़ा था। टोका वहीं से जाओ जहाँ से आये थे। हम तीनों हँस पड़े और मेनगेट से बाहर आ गए। फिर हम लोग चर्च देखने गए। उस चर्च के सामने एक चर्च और था उसका बगीचा बहुत सुंदर था। इस बार इंदुजी भी हमारे साथ वहीं मस्ती करने लगी और हम चारों अपने समूह से गए।

बहुत देर हो गयी बस दिखाई न दी तो ड्राइवर को फोन किया पता चला सब लोग तो जा चुके थे। हम चौंक गए। हम वहां खड़े बेबुकफी पर हँस रहे थे। हमें सख्त हिदायत दी गयी थी कि समूह के साथ रहें। उसके बाद हमारी बस पहुंची लवर्स पॉइंट। वहां अक्सर फिल्मों की शूटिंग होती रहती है। अदिति का मन वहां लगा। उसे बीच देखने की जल्दी थी।

ठीक पांच बजे हम क्रूज़ पहुंचे। ऊपर का वातावरण एकदम अलग था। समुद्र में दूर से शिप खिलौने लग रहे थे। पहली बार इतनी नजदीक से समुद्र को देखा और महसूस किया था। मैं देखती रह गयी। क्रूज़ पर डांस का भी प्रोग्राम था। सभी आनंद ले रहे थे। मैं एक कोने में खड़े प्रकति का आनंद ले रही थी। डूबते सूरज को देखना, किनारों पर बसे शहरी होटल को देखना, सब कुछ इतना प्यारा लग रहा था। आकाश और सागर मिलन देखा। सागर किनारे की खूबसूरती को देखा। सात बजे हम वापिस होटल पहुंचे। हम तीनों ने आधी रात तक बातें की और बातें करते हुए कब सो गए याद नहीं। अगली सुबह हम अपने घर बिजनौर। तो खत्म हुआ बिजनौर से गोआ और फिर बिजनौर तक का सुनहरा सफर।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama