dr vandna Sharma

Drama

4.5  

dr vandna Sharma

Drama

मायका बहुत याद आता है

मायका बहुत याद आता है

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180


'क्या हुआ सीमा सब ठीक तो है ?आज तुम्हारा मन शांत नहीं लग रहा !"सीमा रोहन के गले लग बहुत देर रोती रही फिर खुद को सँभालते हुए बोली -रिश्तो में पैसों को नहीं लाना चाहिए लेकिन पैसा ही रिश्तो की बुनियाद तय करता है. यह पैसा इंसान की औकात बता देता है. पैसा ही सब कुछ नहीं होता लेकिन पैसे के बिना भी कुछ नहीं होता सिर्फ प्यार के सहारे जिंदगी नहीं चलती पेट की भूख क्या से क्या बना देती है इंसान को.! रक्षाबंधन में भैया दूज पर मेरे मायके में विवाह उत्सव जैसे भीड़ होती थी. तीन बुआ जी उनके बच्चे दो ताऊ जी की बेटियां उनके बच्चे चाची के साथ दो बच्चे और 6 हम मम्मी-पापा चार भाई बहन कुल मिलाकर 22 सदस्य हो जाते थे.! यह सब एक ही घर में 3 दिन तक बड़े प्यार से रहते थे खूब चहल-पहल होती थी घर में तीन बड़े कमरे एक बड़ा सा आंगन और एक दो मंजिला बना हुआ था| 22 सदस्यों को खाना मैं अकेले बनाती थी ऐसा नहीं है कि कोई सहायता के लिए पूछता नहीं था. मैं ही मना कर देती थी क्योंकि रसोई में दो से ज्यादा महिलाएं बातें ज्यादा करती हैं काम कम। वैसे भी एक व्यक्ति के हाथ से काम अधिक निपुणता से हो जाता। मैं खुद ही मना कर देती आप सब बहुत दिनों बाद मिले हो, बातें कर लीजिए, रसोई में मैं हूं ना। सारी औरतें एक कमरे में बच्चे एक कमरे में और सारे बड़े आदमी अलग अपने कमरे में कहीं भी स्थान घर पर देखकर स्थान ग्रहण करते। इतनी चहल पहल देखकर मेरी बैटरी दोगुनी चार्ज हो जाती। पूरी रात बात चलती रहती।मेरी नींद जरा से शोर से खुल जाती है.. सब बातें करती हुई मिलती। मुझे कहना पड़ता -"तुम सोते नहीं हो क्या जब देखो बात ही खत्म नहीं होती ". बुआ हंस कर कहती -"रोज-रोज कहां सब इकट्ठे होते हैं पूरे साल की बातें इन दो रातों में ही करते हैं". जब तीनों बुआ वापिस जाती तो अनजाने ही मेरी आंखों से आंसू बरसने लगते। मुझे अपनी तीनों बुआ से बहुत लगाव था। बुआ की आवाज सुनते ही दौड़ी चली जाती गेट पर उनको लिवाने। जैसे जैसे हम बड़े होते गए ,आधुनिकता की होड़ में संयुक्त परिवार बिखरते चले गए. रिश्तों में अब प्यार की जगह को पैसो ने बेदखल कर दिया था. अब सभी के बच्चों की शादी हो चुकी थी. सब अपने घर में व्यस्त हो गए।

अब मैं खुद बुआ बन गई थी.दो - ढाई घंटे के लिए ही जाना होता था मायके भाई दोज पर। दो बुआ ने आना बंद कर दिया था.बस बड़ी बुआ अब भी आती है,उनकी मान्यता है एक बार दोज शुरू कर दी तो बीच में छोड़नी नहीं चाहिए। आज जब मैं खुद बुआ के रूप में मायके जाती हूँ ,समझ आता है अपनी बुआओँ से लगाव का कारन। कितना अजीब लगता है ना अपने ही घर में मेहमान बन कर जाना ,आजकल अभिभावकों की सोच में बदलाव हो रहा है. लड़की को पराया नहीं समझते हैं. पर मेरे पापा पुराने विचारों के हैं उनके अनुसार अपने ही घर में मेहमान बन कर आती हूं.कोई हक़ नहीं मुझे अपनी मर्जी जताने का ,कोई ज़िद करने का। इस बार लॉकडाउन की वज़ह से 2 महीने रुकना पड़ा मायके। पर इतने कड़वे अनुभव हुए कि रिश्तो पर से विश्वास उठ गया और अब मैंने स्वीकार कर लिया है कि मेरा मायका मेरा घर नहीं सिर्फ मायका ही है. 10 मार्च 2020 को होली पर गई थी। बच्चे की छुट्टियां हो गई थी.दो -चार दिन ज़्यादा रुकने के लालच ने लॉकडाउन में फसा दिया। 22 तारीख को हो वापिस आने की योजना थी पर कोरोना के चलते २२ से ही लॉकडाउन की लम्बी सजा हो गई थी. २२ मार्च तक का समय तो बढ़िया रहा ,रोज़ घूमना ,चाट खाना ,गप्पे मारना ,नए -नए पोज़ में फोटो सेसन करना ,शॉपिंग करना ,खूब मन लगा ,लेकिन लॉकडाउन में घूमने नहीं जा सकते।कोरोना के डर से घर में ही रहना। चाट -पकौड़ी , घूमना मस्ती सब बंद। उस पर भाभी के रूखे व्यवहार ने माहौल को बोझिल कर दिया। बात इतनी बड़ी नहीं थी ,जितना बड़ा उसे बना दिया गया था. गुस्से में कहे गए ताने ज़ख़्मी कर देते हैं। रिश्तों में दरार पैदा करते हैं जो कभी नहीं भरती। पता नहीं क्यों लोग सीधी बात का सीधा जवाब ना दे कर व्यंग्यबाणों की वर्षा कर देते हैं। बात को कहां से कहां ले जाती है ईर्ष्या। कुछ ऐसा ही हुआ उस दिन। मेरे आगे के बालों की कटिंग छोटी है. खाना बनाते हुए आंखों पर आ रहे थे। मैंने अपनी 12 वर्षीय भतीजी से हेयर बैंड लाने के लिए कहा जो पिछले दिन भाभी ने लगा रखा था। शायद उसे मिला नहीं ढूंढने पर। उसने आकर मना कर दिया। तभी किसी काम से भाभी रसोई में आई. मैंने उनसे भी पूछ लिया जो हेयरबैंड कल लगाया था ,कहां है दे दो बस इतना ही कहा था मैंने सीधा सा सवाल था सीधा सा उत्तर देना था। " टूट गया या नहीं मिल रहा ". पर वह तो जैसे लड़ने के लिए तैयार बैठी थी फट पड़ी और एक जरा सी बात को मेरी औकात मेरे बाप तक पहुंचा दिया। एक बार जो बोलना शुरू किया 15 मिनट तक बुरा भला कहती रही मुझे। "मैं बड़े बाप की बेटी हूं तुम्हारी तरह नहीं--- यही औकात है तेरी------"!! सब कुछ लिख नहीं सकती पुराने जख्म हरे हो जाएंगे कुछ बातों को भुला देना ही ठीक है। पर मेरा रिश्तो पर से विश्वास उठ गया. जिस भाभी के हक के लिए मैंने हमेशा आवाज उठाई। हमेशा सहायता के लिए खड़ी रही उनके बच्चों को भी अपने से ज्यादा प्यार किया। उन्होंने हेयर बैंड के ऊपर मुझे मेरी औकात दिखा दी। मन बहुत दुखी हुआ पर रिश्तो में बहुत बड़ी खाई बन गई जिसे भर पाना बहुत मुश्किल है। मम्मी पापा भी चुप रहे उन्होंने भी कुछ नहीं कहा. मुझे मेरा मायका पराया लगने लगा। पर मायका तो मायका ही होता है. बहुत याद आता है.


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