dr vandna Sharma

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सिंधारा

सिंधारा

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सावन का महीना और तीज का त्यौहार सभी महिलाओ के मन में नयी ऊर्जा का संचार कर देता है। चारों तरफ फैली हरियाली, बारिश की फुहार, और उस पर मायके का दुलार सब कुछ रोमांचित करता है। आज नेहा भी अपनी सखी सुहानी के घर तीज मनाने गयी थी। सुहानी अपने मायके से आया सिंधारा दिखा रही थी। बड़ी चहक रही थी दिखाते हुए। सुहानी की सास तो साठ साल की बुढ़िया हो चुकी थी फिर भी उनके भाई के यहां से अभी तक कोई ना कोई ज़रूर आता है तीज का सिंधारा लेकर। नेहा को भी अपने मायके की याद आने लगी, उसकी आँखें गीली हो गयी तो सुहानी ने पूछा -"क्या हुआ नेहा ??" " कुछ नहीं सुहानी बस यूँ ही "'


कोई मुझे लालची समझे या स्वार्थी पर अपेक्षा हो ही जाती है। एक उम्मीद होती है अपनों से। मेरे पास किसी चीज की कमी नहीं है भगवान का दिया सब कुछ है पर कभी-कभी मन करता है मेरे पापा मुझे कुछ दे। मुझे अपनेपन का एहसास कराएं। आज फेसबुक पर अपने चचेरे भाई भाभी की फोटो देखी कैप्शन में नीचे लिखा था बहन के घर सिंघारा लेकर जा रहे हैं। दिल में एक टीस सी उभरी , मुझे तो कोई सिंधारा नहीं भेजता। मेरे मम्मी पापा भाई किसी को मेरी याद नहीं आती। कोई मुझे गलत ना समझें मैं अपने मायके से कुछ लेना नहीं चाहती। बस एक परायापन सा फील होता है। पिंकी उसकी तो मम्मी भी नहीं है फिर भी उसके पापा को याद रहती है सारी रस्में। एक मैं हूं मेरे घरवाले तो शादी कर के जैसे भूल ही गए। मेरी सास भी हर तीज पर हर रक्षाबंधन पर अपने बेटों को जबरदस्ती भेजती है अपनी बेटी के घर चाहे उन्हें याद हो यान हो ,या जाना ना चाहे पर अपनी बहन के घर तीनों बेटे पहुंच जाते हैं। एक मेरे भाई हैं उन्हें कभी मेरी याद नहीं आती। एक चुभन होती है सीने में। मैं खुद ही कहती हूं किसी से कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। अपना फर्ज निभाना चाहिए फिर भी ना जाने क्यों कोई उम्मीद रखती हूं। अपने मायके से क्या पता मैं ही गलत हूं कोई मजबूरी भी तो हो सकती है मम्मी पापा की बस पेंशन ही तो मिलती है उन्हें ऐसे में अपना खर्चा ही मुश्किल है। बेटियों को कहां से दे। पर मुझे उनसे कुछ लेना नहीं है बस यूं ही आँख भर आई सोच कर मुझे कोई सिंधारा क्यों नहीं भेजता???


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