dr vandna Sharma

Drama

5.0  

dr vandna Sharma

Drama

एक खूबसूरत दिन

एक खूबसूरत दिन

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मेरा सी टेट का एग्जाम था। मम्मी और मैं सुबह ही साढ़े तीन बजे उठ गए थे। पेपर तो १२ बजे से था पर नीतू दी (जिनके साथ मुझे जाना था) ने साढ़े पाँच का टाइम दिया था। लेकिन हम लोग प्रातः ७ बजे निकले देहरादून के लिए। नीतू दी की पूरी फॅमिली साथ थी। उनकी योजना परीक्षा के बाद देहरादून घूमने की थी। बिजनौर से हरिद्वार का रास्ता तो यूँ ख्वाबों में ही कट गया। परीक्षा का डर, समय से पहुँचने की चिंता। पर हरिद्वार से देहरादून तक दो घंटे मुझे मेरी सपनीली दुनिया में ले गए। सड़क के दोनों ओर बंदरवार की तरह स्वागत करते पेड़, ऊँचे -ऊँचे पहाड़ दूर से बहुत सुहावने लग रहे थे।

कहीं कहीं कुछ पहाड़ों के बीच में बादल ऐसे ठिठके हुए थे जैसे किसी ने रुई बिखेर दी हो। मौसम भी सुबह से सुहाना था। धूप नहीं थी, बारिश भी नहीं थी पर इंतज़ार था बारिश का। दस बजे फिर मुझे कॉलेज की याद आयी। मैं थोड़ा घबरा गयी स्कूल का कोई बोर्ड भी नहीं दिखा ,नेट पर चेक किया तो पता चला विधान सभा के पास है नेहरू कॉलोनी में। बड़ी मुश्किल से मिला मानव भारती इंडिया इंटरनेशनल स्कूल।

"यहाँ से कहीं मत जाना ,यहीं रहना हम ढाई बजे तक तुम्हारे पास आ जायेंगे। "ऐसा कहकर नीतू दी मुझे मेरे स्कूल पर छोड़कर चली गयी। वहाँ भीड़ बहुत थी। कुछ लड़किया समूह में पेड़ के नीचे बैठी बतिया रही थी। भीड़ से मुझे डर लगता है तो मैं स्कूल गेट के सामने ही एक घर के बाहर जहाँ कोई नहीं था वहीं खड़ी हो गयी। एक अमरुद का पेड़ था एक नन्हा सीप और एक नन्हा सा शंख पड़े हुए थे। मैंने उस शंख को उठाया सोचा यहाँ कैसे आया ये तो समुद्र में पाए जाते हैं।

जिस घर के सामने मैं थी ,बहुत बड़ा घर था ,अंदर एक गाड़ी खड़ी थी। थोड़ा सा गेट खुल रहा था, सोचा गेट के पीछे खड़े होकर बाल ठीक कर लेती हूँ। तभी उस घर में से एक लड़की आयी, उसे देखते ही मेरा कंघा गिर गया, वो हँस पड़ी। "कोई बात नहीं,आराम से। आज पेपर है ?" उसने पूछा तो मैंने सिर्फ हाँ में सिर हिलाया। उसने मुझे प्यार से अंदर बुलाया और मेरा परिचय पूछा। कुछ देर बात करने के बाद हम दोनों पुराने दोस्तों की तरह साथ गप्प्पे लड़ा रहे थे, लगता ही नहीं था पहली बार मिले हैं।

१२ बजे मैं अपना बैग ,मोबाइल ,बोतल सब सामान उसके घर छोड़ पेपर देने चली गयी। इतना विश्वास पहली मुलाकात।

जैसे ही घर से बाहर निकली बारिश शुरू हो गयी। स्कूल तो सामने था पर क्लास तक जाते जाते भीग चुकी थी। वहाँ बरामदे में टीन पड़ी हुई थी उस पर टकराने से बारिश का शोर तेज हो रहा था। जब तक मुझे कॉपी नहीं मिली बारिश को निहारती रही। प्रश्नपत्र मिलते ही लिखने में इतनी खोयी कब २ बज गए पता ही नहीं चला। परीक्षा समाप्त होते ही पुनः मैं अम्बिका के घर नीतू दी का इंतज़ार करने लगी। करीब तीन बजे नीतू दी आयी और हम पुराने दोस्तों की तरह गले मिलकर जुदा हो रहे थे।

"जिंदगी ने चाहा तो फिर मुलाकात होगी कहीं न कहीं किसी मोड़ पर।" ऐसा कहकर मैं नीतू दी के साथ वहाँ से सहस्रधारा घूमने के लिए रवाना हुए। वहाँ बहुत भीड़ थी। बड़ा ही सुन्दर दृश्य था। ऊपर पहाड़ों में कहीं मंदिर, कही पार्क तो कही गुफाएँ बनी हुई थी। वहाँ पर एक गंधक कुंड जल था जिसमे गंधक मिश्रित पानी था। ऐसी मान्यता है इस कुंड में नहाने से सारी बीमारियाँ दूर हो जाती है।

नीतू दी और उनकी फॅमिली ने वहाँ स्नान किया और बहुत खुशनुमा वक़्त एक साथ बिताया। मैंने तो बस हाथ मुहँ धोये और एक कोने में बैठे सभी नजारों को देखा। साढ़े पांच बजे हरिद्वार के लिए निकले। आठ बजे हम हर की पीढ़ी पर पहुँचे। वहाँ पानी का बहाव तेज था और पानी बहुत ठंडा था। कुछ देर बाद हम बिजनौर के लिए चले क्यूँकि पूरे दिन की थकन हावी हो रही थी तो कब नींद आई कब घर पहुँचे कुछ पता ही नही चला। घर के सामने ही आँख खुली।


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