Saroj Prajapati

Inspirational Others

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Saroj Prajapati

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गंवार नहीं, दिलदार है ये!

गंवार नहीं, दिलदार है ये!

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गर्मियों की छुट्टियां शुरू हो गई थी और बच्चे बाहर घूमने जाने के लिए सभी बहुत उत्साहित थे।

उनका उत्साह देख नीरज ने कहा "हर बार हम पहाड़ों पर तो जाते ही हैं। चलो इस बार अपने दादा दादी के पास गांव चलो। वह सबको देखकर खुश हो जाएंगे !"

यह सुनकर नीरज की बेटी रुचि बोली "हां हां पापा चलो। वैसे भी मैडम ने इस बार प्रोजेक्ट दिया है कि गांव के बारे में लिखकर लाना है । इस तरह मेरे दोनों काम हो जायेंगे।"

अपनी बहन की हां में हां मिलाता हुआ 5 साल का रौनक बोला "यस पापा ! मैं वहां पर तालाब और खेत भी देखूंगा।"

"क्यों नहीं मेरे लाल ! तुम चलो तो एक बार ,फिर देखना कितना मजा आता है वहां !"

नीरज व बच्चों को प्लान बनाते देख, नीरज की पत्नी कोमल ने कहा

"क्या नीरज ,पता है ना गांव में कितनी गर्मी होगी। बच्चे वहां सरवाई नहीं कर पाएंगे। चलो भैया भाभी के पास चलते हैं। बहुत शानदार कोठी बनाई है उन्होंने।"

"अरे अभी तो मिली थी उनसे ! वहां पर फिर कभी चल पड़ेंगे।"

"तुम भी तो पिछले महीने ही गांव हो कर आए थे । अच्छा चलो गांव चलूंगी लेकिन पहले भैया भाभी से अपनी थोड़ी खातिर करवा आते हैं। फिर जाकर गांव में तो काम करना ही है !"

कोमल की ऐसी बातें सुन नीरज ने बहस करना उचित ना समझा और उसने सहमति में सिर हिला दिया।

2 दिन बाद ही सब कोमल के भैया भाभी के घर के दरवाजे पर थे। दरवाजा खुलते ,कोमल उनसे गले मिलते हुए बोली "सरप्राइज़ भैया सरप्राइज ! ! !"

उनकी आवाज सुन उसकी भाभी भी बाहर आ गई और बोली "अरे तुमने तो कोई खबर भी नहीं दी आने की !"

"अरे भाभी फिर मजा ही क्या रहता। अब तो मैं तीन-चार दिन रुक कर ही जाऊंगी।" कह वह सोफे पर बैठ गई।

कोमल को आए 1 दिन ही हुआ था लेकिन वह देख रही थी। भाभी कुछ उखड़ी उखड़ी सी है। उसे लगा शायद भैया भाभी की आपस में कुछ कहासुनी हो गई। होगी इसलिए उनका मूड ऑफ होगा। यही सोच कर वह भाभी के पास जाने के लिए उठी कि जाकर उनसे कुछ देर बात करेगी तो शायद उनका मूड सही हो जाए।

वह कमरे के बाहर पहुंची ही थी कि भाभी की आवाजों ने उनके कदम रोक दिए । "'उसकी वजह से हमारा बाहर जाने का प्रोग्राम डिले हो रहा है। इतनी गर्मी में आना जरूरी था क्या !"

"अरे अब आ गई तो क्या भगा दे। छुट्टियों में तो सभी जाते हैं अपने मायके !"

"जाते हैं ना ! तो मैं भी जा रही हूं अपने मायके ! तुम ही संभालो अपनी बहन को !"

यह सब सुन कोमल दरवाजे से ही लौट गई और अपने कमरे में जाकर सामान की पैकिंग करने लगी। यह देख नीरज बोला "अरे कोमल यह क्या कर रही हो !"

"चलो गांव चलते हैं !" कोमल ने कहा।"पर अभी तो हमें एक ही दिन हुआ है इतनी जल्दी !"

"हां मिलना, था मिल लिए सब से"उसकी आवाज कि नमी से वह समझ गया था कि कुछ बात हुई है इसलिए उसने आगे कुछ नहीं कहा।

शाम को उन्होंने विदा ली। भैया भाभी ने उन्हें एक बार भी रोकने की कोशिश भी नहीं की। उनका ऐसा व्यवहार देख कोमल की आंखों में आंसू आ गए।

अगली सुबह सभी गांव पहुंच गए । नीरज के माता-पिता ने बेटा बहू, पोता पोती का दिल खोलकर स्वागत किया। नहाने धोने के बाद जब कोमल रसोई में जाने लगी तो नीरज की मां ने कहा

"बहु कितने दिनों बाद आई है तू। तुझ से काम ना कराऊंगी। वहां भी तेरा सारा दिन घर दफ्तर के कामों में निकल जाता है। यहां तो तू बस घूम फिर, आराम कर।"

"अरे नहीं मांजी ! आप काम करोगी और मैं बैठकर खाऊंगी। अच्छा लगता है क्या ! लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे !"

"तू लोगों की छोड़ ! मुझे मेरे मन की करने दे।"

कह वह रसोई में जा, झटपट उनके लिए मेथी के पराठे,मक्खन व छाछ ले आई। बहुत प्रेम से सभी को उन्होंने परोसा

। उनका यह भाव देख कोमल को अपनी सोच पर शर्मिंदगी हो रही थी।

शाम को वह बच्चों के साथ घूमने खेतों की तरफ निकले। रास्ते मे सभी गांव वाले उनसे बहुत ही स्नेह से मिल रहे थे और बच्चों को खूब प्यार कर आशीर्वाद देते।

खेतों में लगे ट्यूबवेल के ठंडे पानी में नहाकर व अपने हाथों से खीरे, ककडी तोड़कर में बच्चों को बहुत आनंद आ रहा था।

वापसी में नीरज सभी को अपने चाचा के घर ले गया। पूरा परिवार उन्हें देखकर बहुत खुश हुआ और सभी उनकी सेवा पानी में लग गए। चाची ने कहा "बेटा तुम सब खाना खा कर ही जाना।"यह सुन नीरज बोला "चाची अब तो नहीं ।मां ने बना लिया होगा""अरे ऐसे कैसे ! ऐसे तो ना जाने दूंगी मैं ! कह उन्होंने सभी के लिए खाना परोस दिया।""

कोमल एक हफ्ता गांव में रही। इस 1 सप्ताह में गांव वालों से इतना प्यार मिला जो शायद अपनो ने भी ना किया हो।गांव में अपने पराए का भेदभाव ना था। जिस घर जाओ वही सेवा सत्कार के लिए तत्पर था।। कितने खुले दिल से मिल रहे थे सभी गांव वाले। लगा ही नहीं वह यहां की बहू है।

गांव के शुद्ध हवा, पानी की तरह यहां के लोगों का मन भी निर्मल व स्वच्छ था। जिसमें कोई छल कपट ना था।हम शहरी , गांव में रहने वालों को अक्सर गंवार समझते हैं । लेकिन वह गंवार शहर में रहने वाले उन गंवारो से कहीं बेहतर है, जो भावहीन हो केवल अपने लिए जी रहे हैं। जिन्हें दूसरों की दुख तकलीफ से कोई फर्क नहीं पड़ता। रिश्ते उनके लिए बेमानी है। मायने रखते हैं तो बस धन दौलत रुतबा वा स्टेटस !

गांव वालों के रूपये पैसे भले ही कम हो, पर उन जैसे दिलदार शायद ही शहरों में मिले।

आज कोमल की नजरों में गांव वालों के लिए मान सम्मान बहुत बढ़ गया था। साथ ही नीरज के लिए भी। जिसने शहर में रहते हुए भी अपने विचारों में अपने गांव की सभ्यता, संस्कृति व संस्कारों को सहेज कर रखा हुआ था।


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