गणितोपदेश

गणितोपदेश

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एक विद्यार्थी गणित की कक्षा में गणित के प्रश्नों से भय खाकर विचलित हो जाता है और निराश होकर मन ही मन स्वयं से कहता है कि यह गणित उसके बस की बात नही है और वह अध्यापक से प्रश्न करता है -

"अध्यापक महोदय, गणित मुझसे न होगा। मेरा मन इसे करने को बिल्कुल भी तैयार नही, आप ही बताऐं तब मैं क्या करूँ ?"

तब अध्यापक उसे किस प्रकार समझाते हैं ? पढ़िए - :

" हे बालक ! यह गणित की कक्षा कुरूक्षेत्र है। गणित एक विषय मात्र नही अपितु यह एक धर्मयुद्ध है जिसमें तुझे विजयी होना ही होगा, इस युद्ध में शत्रुओं (प्रश्नों) को देखकर मत विचलित हो, हे पार्थ (विद्यार्थी) इस युद्ध में वीरता (पारंगता) प्राप्त करने हेतु तुझे जो शस्त्र प्रदान किए गए हैं - : कलम, पेंसिल, रबर, कटर, परकार, चाँदा, पटरी, त्रिकोणाकार मापक ; का तू कार्यकुशलता के साथ प्रयोग कर !

परन्तु कुछ शत्रु मायावी (जटिल प्रश्न) भी हैं उन पर विजय प्राप्त करने हेतु तुझे चमत्कारी शक्तियों जैसे कि तार्किक ज्ञान, बौद्धिक क्षमता, गणितीय सूत्र, प्रमेय, रचनाओं, गणनाओं का उपयोग करना होगा।

न केवल उपयोग करना होगा वरन सही समय में सही सिद्धान्त (शास्त्र) का प्रयोग करना होगा !

अत: घबराओ मत ! तुम इस युद्ध (गणित) में यदि धर्म (निरन्तर अभ्यास) का मार्ग पर चलते रहोगे तो निश्चित ही विजयी होओगे । यदि इन सबके उपरान्त भी तुम संशय में रहो तो मेरा स्मरण मैं माधव (गणित शिक्षक) स्वयं तुम्हारे साथ तुम्हें धर्म के मार्ग पर ले जाता रहूँगा।

मैं स्वयं इस युद्ध में तुम्हारा सारथी हूँ !

अत: हे अर्जुन (शिष्य) ! शस्त्र धारण कर, और इस युद्ध भूमि में अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर !

विजयी भव ! "


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