गणित

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गणित ...

शासन द्वारा यध्यपि सेवा निवृत्ति की उम्र बढ़ा दिए जाने से, तब मुझे 3 वर्ष और, सेवा के अवसर थे, किंतु सेवानिवृत्त होकर पद रिक्त करने से किसी युवा के लिए जॉब का अवसर बनेगा, ऐसा विचार कर मैंने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ली थी।

इस निर्णय पर पहुँचने के लिए मेरा एक और विचार सहायक हुआ था कि'अब तक के जीवन में, जो प्रमुख रूप से मेरे कार्य अपने एवं परिवार के हित से प्रेरित रहे थे, उन्हें समाज हित दिशा में मोड़ना, रहा था।

वस्तुतः इस विचार के पीछे मुझमें उस 'जिम्मेदारी के अहसास' की भूमिका थी, जो मुझे यह अनुभव कराती थी कि 'गणेश शर्मा ', तू जिस समाज की सहायता से, इतना जीवन देख सका है, उसके अनुग्रह की भरपाई के लिए तुझे समाज परिवेश को पुष्ट करने के लिए परोपकार के उदाहरण बनते तरह के, कुछ कर्म अपने सामर्थ्य अनुरूप करने चाहिए।

सेवा निवृत्ति के दूसरे दिन से ही मैंने अपनी कार्य योजना का 'शाब्दिक रूपांकन', जिलाधीश महोदय को जानकारी देने के लिए, उनके कार्यालय में जमा किया था। उसमें, मेरे अनुरोध अनुसार जिलाधीश महोदय द्वारा मुझे तीन दिन बाद, कार्यालय बुलाया था। मेरी योजना के, मेरे द्वारा सफल रूप से क्रियांवित किये जाने के लिए, उन्होंने मुझे, शुभकामनायें दी थी।

छोटी सी इस योजना के लिए जिसमें किसी से कोई वित्तीय सहायता आवश्यक नहीं थी में, अन्य प्रकार से किसी भी मेरी अपेक्षित सहायता को प्रशासन द्वारा सुनिश्चित किये जाने का उन्होंने भरोसा दिलाया था।

तत्पश्चात, मैंने महीने भर के भीतर, एक कमरा, तीन हजार के किराये पर लिया था। उसमें क्लास रूम में लगने वाला वाला, कम खर्चीला फर्नीचर लगभग 50 हजार रूपये व्यय कर व्यवस्थित कराया था।

साथ ही मैंने पर्चों (पम्पलेट्स) के माध्यम से योजना का प्रचार किया था।तदुपरांत गणित विषय की पढ़ाई के लिए, एक शैक्षणिक सत्र के 2400 रूपये के शुल्क पर साक्षात्कार के जरिये, कक्षा 6 से 9 तक के, बारह-बारह बच्चों का चयन, किया था।

मेरे द्वारा चयन का आधार, पिछली कक्षा में बच्चों का गणित विषय में स्कोर 60% से 70% का होना निश्चित किया गया था। मैंने, चयन में बालिकाओं को प्रमुखता दी थी, जिनके मन में गणित के कठिन होने का भय ज्यादा होता है। जिससे, चयनित 48 बच्चों में 32 बालिकायें एवं 16 बालक थे।  

इस सबके उपरांत, जुलाई माह से, मैंने सप्ताह में छह दिन, प्रतिदिन 4 घंटे अध्यापन के लिए देना आरंभ कर दिया था।

मैं प्रति सोम, बुध एवं शुक्र में कक्षा 6 एवं 8 तथा रवि, मंगल एवं गुरुवार को कक्षा 7 एवं 9 को 2-2 घंटे के कालखंड में उस शैक्षणिक सत्र भर शिक्षण देता रहा था। किन्हीं किन्हीं कारणों से, तीन बच्चे, सत्र के बीच ही मेरे क्लॉस रूम की, पढ़ाई छोड़ चले गए थे, जिन्हें उनके जमा शुल्क का कुछ अंश, मैंने लौटा दिया था।

मेरी क्लॉस में जुलाई से फरवरी तक 45 बच्चे नियमित रहे थे। जिनके स्कूल परीक्षा परिणाम, मार्च में आये थे। जिनमें, 18 बच्चों ने 90% से ज्यादा अंक प्राप्त किये थे। जिन्हें योजना में निर्धारित अनुसार मैंने, उनका जमा शुल्क वापिस कर दिया था।

शेष 27 में से 22 बच्चे 80% से ज्यादा स्कोर करने में सफल हुए थे। 5 बच्चे ऐसे रहे थे जिनके परिणाम ज्यादा बेहतर नहीं हुए थे।  

जिलाधीश महोदय की जानकारी के लिए, तब मैंने अपनी रिपोर्ट तैयार की थी, जो यूँ थी

आय 

बच्चों से प्राप्त शुल्क (48X2400)                 115200 रूपये

व्यय 

शिक्षण त्याग किये बच्चों को लौटाया शुल्क            3900 रूपये

प्रोत्साहन के लिए बच्चों को लौटाया शुल्क (18X2400)  43200 रूपये

क्लॉस रूम किराया                             36000 रूपये

बिजली बिल, राशि                             10800 रूपये

अन्य व्यय                                    6400 रूपये

अध्यापन सहायक का वेतन                      40000 रूपये

कुल                                       143000 रूपये

इस तरह 'बिना लाभ हानि' के आधार पर बच्चों के अध्ययन सहायता की योजना में वित्तीय हानि 27800 रूपये थी।

जिलाधीश महोदय ने मेरी रिपोर्ट पर यह टिप्पणी देते हुए, मूल प्रति अपने कार्यालय में रख, छाया प्रति मुझे लौटाई -

"आदरणीय गणेश शर्मा जी, आपने 27800 की राशि ,मानवता को पुष्ट करने के पावन कार्य के लिए निवेशित की है। प्रशासन आपके इस वर्ष के इस कार्य को इस आशा से प्रचारित/प्रसारित करेगा कि मानवता को पुष्ट करने के लिए और भी ,हमारे वरिष्ठ नागरिक, अपने अपने प्रयोग के साथ आगे आयें जिनसे हमारे समाज में सकारत्मकता सशक्त हो सके। "मैं जिलाधीश महोदय की टिप्पणी से भाव अभिभूत हुआ - मुझे प्रतीत हुआ कि बच्चों को गणित में प्रावीण्यता दिलाने के अपने प्रयास में, मैं मानवीय जीवन-गणित को समझने में प्रवीण हुआ।


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