गीतिका
गीतिका


अदावते सियासत में सदाएँ ढूँढ़ते हो ।
अहमक हो बड़े कुरूपताएँ ढूँढ़ते हो ॥
बरसों से बनी जो अब तक बात ही नहीं है।
क्यूँ तुम ..बेवजह ही .. वार्ताएँ ढूँढ़ते हो ॥
छल कपट हैं बड़े ही सदाओं में जिनकी तो
फिर नई क्यूँ ..उनमें .. आशाएँ ढूँढ़ते हो ।।
खाएं हैं..धोखे ही अब तलक जिनसे तुमने...
फिर क्यूँ उनमें इस कदर ..वफ़ाएँ ढूँढ़ते हो ।
फरेबी हैं ..अंदाजे बयां.. जिनके सदा से ।
मुहब्बत की फिर क्यूँ भावनाएँ ढूँढ़ते हो ।।
चेहरे से टपकती है धूर्तता ..जिनके ही।
क्यूँ-कर वायदे फिर वह निभाएँ ढूँढ़ते हो ।।
हों गर दिल में जज्बात कुछ खिदमत के लिए ।
क्यूँ फिर ..तो इंसान में ..खताएँ ढूँढ़ते हो ।।
साँझे हों गर ..प्रयास जो उनके भी 'भारती'
मिलके सब हम मसले सुलझाएँ ढूँढ़ते हो ।।