घूँघट
घूँघट
"ढोर को बाँध के रखना जरूरी है। दिमाग तो होता नहीं है, इधर -उधर भागकर परेशानी खड़ी कर सकते हैं। ",दादी ने कहा।
"दादी, ढोर की डोर तो दिख रही है, जिससे आपने इन्हें बाँधा है। लेकिन घर की बहू -बेटियों को भी तो पुरानी सड़ी -गली परम्पराओं की डोर से बाँध रखा है। जबकि इनमें तो दिमाग है ;जिसका इस्तेमाल करके अपना और समाज दोनों का हित कर सकती हैं। ",मास्टरनी जी ने कहा।
"राकेश की बहू, आज से घूँघट काढ़ने की जरूरत नहीं। ",दादी ने मास्टरनी जी की बात समझते हुए कहा।